Saturday, December 21, 2024
spot_img

प्राक्कथन – दिल्ली सल्तनत की दर्दभरी दास्तान

भारत आदिकाल से हिन्दुओं का देश है। सृष्टिकर्ता ने इस देश को प्राकृतिक सम्पदा, मेधा एवं संस्कृति की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध बनाया है। जिस समय संसार के अधिकांश देश मानव-सभ्यता की आदिम अवस्थाओं में जी रहे थे, भारत भूमि पर भव्य नगरों, गगनचुम्बी प्रासादों, विशाल यज्ञशालाओं एवं राजपथों का निर्माण हो चुका था और वेदों एवं उपनिषदों से लेकर रामायण एवं महाभारत जैसे महाकाव्यों की रचना हो चुकी थी। उस काल में भारत की सामाजिक रचना संसार भर में श्रेष्ठ थी जिसके कारण प्रजा सम्पन्न एवं सुखी थी। लोगों का जीवन सरल था और वे परिश्रमी एवं आमोद-प्रिय थे।

प्रकृति ने भारत को पूर्व में बंगाल की खाड़ी, दक्षिण में हिन्द महासागर, पश्चिम में अरब की खाड़ी, उत्तर-पश्चिम में हिन्दुकुश पर्वत एवं उत्तर में हिमालय पर्वतमाला खड़ी करके एक अद्भुत सुरक्षा-चक्र का निर्माण किया था किंतु भारत की भौतिक सम्पदा की कहानियाँ दूर-दूर तक व्याप्त हो जाने से दूरस्थ देशों के लोग भारत को लूटने के लिए लालायित रहने लगे। यही कारण था कि ईसा के जन्म से सैंकड़ों साल पहले पश्चिमी आक्रांताओं ने हिन्दुकुश पर्वत को पार करके भारत पर आक्रमण करने आरम्भ कर दिए।

इन आक्रांताओं में यूनानी, शक, कुषाण, हूण, पह्ल्लव, बैक्ट्रियन आदि प्रमुख थे। इन आक्रांता-जातियों ने थलमार्ग से हजारों मील की यात्राएं करके भारत पर आक्रमण किए और विभिन्न कालखण्डों में न केवल भारत की अतुल सम्पदा को लूटने में सफल हुए अपितु भारत के विभिन्न प्रदेशों पर अधिकार जमाने में भी सफल रहे किंतु भारत की उदार सामाजिक व्यवस्था एवं शत्रु के प्रति भी सहिष्णु रहने वाली संस्कृति ने सैंकड़ों साल की अवधि में इन विदेशी आक्रांताओं को भारतीय बनाकर आत्मसात कर लिया। इस कारण भारतीय समाज की शांति बनी रही।

चौथी शताब्दी ईस्वी से लेकर छठी शताब्दी ईस्वी तक के कालखण्ड में जो हूण कबीले भारत पर आक्रमण किया करते थे और जिन्हें गुप्त शासकों ने भारत से मार भगाया था, उन्हीं हूण कबीलों में से एक कबीला छठी शताब्दी ईस्वी के आसपास तुर्क कहलाने लगा तथा कई शाखाओं में बंट गया। जब सातवीं शताब्दी ईस्वी में इस्लाम का उदय हुआ तो ये तुर्क, इस्लाम का विरोध करने लगे किंतु नौंवी शताब्दी के आते-आते तुर्कों ने अरब के मुसलमानों की सेनाओं में भर्ती होना तथा इस्लाम स्वीकार करना आरम्भ कर दिया।

To purchase this book, please click on photo.

जब मध्यएशिया में इस्लाम का प्रसार हो गया तो अरब, तुर्क एवं अफगान जातियां नए उद्देश्यों के साथ भारत पर आक्रमण करने को लालायित हुईं- (1) वे भारत की सम्पदा को लूटना चाहते थे। (2) वे भारत के लोगों को पकड़कर गुलामों के रूप में बेचना चाहते थे। (3) वे भारत में इस्लाम का प्रसार करना चाहते थे। (4) वे भारत में अपने राज्य स्थापित करना चाहते थे।

ई.712 में भारत पर इस्लाम का पहला आक्रमण अरबी मुसलमानों द्वारा किया गया था। उसके बाद ई.977 से लेकर ई.1192 तक अर्थात् पूरे 215 साल की दीर्घ अवधि तक अनेक तुर्की एवं अफगान कबीले उत्तरी भारत पर आक्रमण करते रहे। वे विशाल सेनाएं लेकर भारत में घुस आते और यहाँ की सम्पदा लूटकर तथा मनुष्यों एवं पशुओं को लेकर भाग जाते। ई.1192 में एक तुर्की कबीला भारत में अपना राज्य स्थापित करने में सफल रहा। ई.1192 से ई.1526 तक अर्थात् पूरे 334 साल तक मध्य-एशिया एवं अफगानिस्तान से के विभिन्न तुर्की कबीलों ने पश्चिम में हिन्दुकुश पर्वत से लेकर पूर्व में बंगाल की खाड़ी तक तथा उत्तर में हिमालय की तराई से लेकर दक्षिण में हिन्दमहासागर तक छोटे-बड़े कई राज्य स्थापित कर लिए जिनमें सबसे बड़ा एवं सबसे प्रमुख राज्य ‘दिल्ली’ सल्तनत के नाम से विख्यात था।

इस पुस्तक में ई.622 में इस्लाम के उदय से लेकर, भारत में तुर्की आक्रमणों की बाढ़, ई.1192 में दिल्ली सल्तनत की स्थापना एवं ई.1526 में दिल्ली सल्तनत के अवसान तक का इतिहास लिखा गया है। इस पुस्तक का लेखन यूट्यूब चैनल ‘ग्लिम्प्स ऑफ इण्डियन हिस्ट्री बाई डॉ. मोहनलाल गुप्ता’ पर प्रसारित ‘दिल्ली सल्तनत की दर्दभरी दास्तान’ नामक लोकप्रिय वी-ब्लॉग धारावाहिक के लिए किया गया था। इस धारावाहिक की कड़ियां यूट्यूब चैनल पर उपलब्ध हैं।

भारत में तुर्कों के आगमन एवं तुर्की सल्तनत के इतिहास की वे छोटी-छोटी हजारों बातें जो आधुनिक भारत के कतिपय षड़यंत्रकारी इतिहासकारों द्वारा इतिहास की पुस्तकों का हिस्सा बनने से रोक दी गईं किंतु तत्कालीन दस्तावेजों, पुस्तकों एवं विदेशी यात्रियों के वर्णनों में उपलब्ध हैं, इस धारवाहिक के माध्यम से देश-विदेश में रह रहे लाखों हिन्दीभाषी दर्शकों तक पहुंचीं। बहुत से दर्शकों की मांग थी कि इस धारवाहिक की कड़ियों को पुस्तक के रूप में प्रकाशित करवाया जाए। उन दर्शकों की भावनाओं का सम्मान करते हुए, मैं इस धारावाहिक की कड़ियों को मुद्रित पुस्तक के रूप में आप सबके हाथों में सौंप रहा हूँ। शुभम्।

-डॉ.मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source