आदमी द्वारा किए गए आविष्कारों और खोजों की सूची आग और पहिए से आरम्भ होती है। इस सूची में घोड़े की पीठ का कहीं भी उल्लेख नहीं मिलता, जबकि घोड़े की पीठ ने दुनिया को बनाने में उतनी ही महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है जितनी कि आग और पहिया ने। रोमन साम्राज्य का निर्माण भी केवल आग और पहिए के बल पर नहीं, अपितु घोड़े की पीठ के बल पर भी हुआ था। घोड़ा आदमी का सहचर कब बना, कहा नहीं जा सकता किंतु घोड़े और आदमी के सहचरत्व ने पूरी दुनिया को बांधकर छोटे-बड़े साम्राज्यों में बदल दिया। रोम साम्राज्य भी उन्हीं में से एक था।
घोड़ा अनी पीठ पर तलवारें लेकर चलता था। पहिया उसके पीछे क्रीत दास की तरह दौड़ता था तथा तलवारें ढोने वाला घोड़ा जिस मानव बस्ती में पहुँचता था, वहाँ आग लग जाती थी। आदमी का लहू धरती पर बहता था तथा घोड़े पर बैठा हुआ आदमी अचानक सम्राट बन जाता था और दशों दिशाएं उसके जयघोष से गूंजने लगती थीं। ठीक यही वह क्षण होता था जब धर्म नामक संस्था प्रकट होकर सम्राट को देवत्व प्रदान करती थी। इस पुस्तक में रोम साम्राज्य की कुछ ऐसी ही कथा उभर कर आई है।
मनुष्य अपने अतीत के इतिहास को अपनी आंखों से देखना चाहता है इसलिए वह दुनिया का भ्रमण करता है। दुनिया के माध्यम से वह न केवल अपने इतिहास को अपितु दुनिया बनाने वाले को भी समझना चाहता है। यही कारण है कि विश्व भर में करोड़ों लोग प्रतिवर्ष किसी न किसी स्थान की यात्रा करते हैं।
वर्ष 2019 में ग्यारह दिन के इटली प्रवास के दौरान मुझे इटली की सड़कों पर घूमते हुए रोमन लोगों के चेहरे ही दिखाई नहीं दिए अपितु उन चेहरों में से झांकते हुए भारतीय पंजाबियों से लेकर मिस्र की महारानी क्लियोपैट्रा और मेसीडोनिया के राजा सिकंदर के चेहरे दिखाई दिए। शेक्सपीयर के नाटक ‘मर्चेण्ट ऑफ वेनिस’ के मर्चेण्ट का चेहरा भी मुझे बहुत से व्यापारियों में दिखाई दिया। इन्हीं चेहरों के पीछे रोम के उन सम्राटों एवं पोप के चेहरे भी झांकते हुए दिखाई दिए जिन्होंने संसार भर में शासन और धर्म के नए मानक स्थापित किए।
रोम सदा से ही पोप का देश नहीं था। मूलतः यह यूरोपियन आदिवासियों का देश है जिन्हें भारत से आए संस्कृत-भाषी आर्यों ने सभ्यता और संस्कृति का पहला पाठ पढ़ाया। रोम की स्थापना ईसा के जन्म से लगभग 900 साल पहले हुई तथा पोप की स्थापना ईसा की मृत्यु के लगभग 100 साल बाद हुई।
अर्थात् पोप नामक संस्था के अस्तित्व में आने से पहले एक हजार वर्ष की दीर्घ अवधि में रोम की धरती पर बहुत कुछ ऐसा घटित हो चुका था जो न केवल प्राचीन रोम की पहचान है अपितु पूरी दुनिया को आज भी आकर्षित करता है। फिर भी पिछले दो हजार सालों से रोम, पोप का ही देश बना हुआ है। यह पोप के लिए ही जाना जाता है। पोप ही इस देश की धड़कन है और पोप ही इस देश की वास्तविक पहचान है।
हमारे परिवार के लिए किसी देश के भ्रमण पर जाना, आधुनिक पर्यटन की किसी भी क्रिया से मेल नहीं खाता है। हमारी इन यात्राओं में मौज-शौक के पीछे भागना, मनोरंजन के लिए पैसा फैंकना, खेल-तमाशे देखना, उस देश के खाने-पीने का आनंद उठाना जैसे तत्व बिल्कुल ही नहीं होते।
हमारे लिए ये महंगी विदेश यात्राएं उस देश के इतिहास और संस्कृति को आत्मसात् करने और बाद में उसे ज्यों की त्यों पन्नों पर उतार देने की परिश्रम-युक्त प्रक्रिया का साधन हैं। वर्ष 2019 की गर्मियों में हमरे परिवार द्वारा की गई रोम यात्रा ऐसी ही एक प्रक्रिया का अंग थी।
17 मई से 28 मई 2019 तक ग्यारह दिनों की इस यात्रा में, हम इटली और उसके नगरों की सभ्यता, संस्कृति एवं इतिहास को जितना देख, सुन और समझ पाए, वही इस पुस्तक के पन्नों में लिखा गया है किंतु इस तरह की यात्राओं में केवल उस देश में गुजारे गए दिन ही लेखन का हिस्सा नहीं होते, अपितु उस देश की यात्रा से पहले बहुत कुछ पढ़ना और समझना होता है। निश्चित रूप से इटली की यात्रा से पहले पढ़ा गया और समझा गया इतिहास एवं भूगोल भी इस पुस्तक के महत्त्वपूर्ण हिस्से हैं।
11 दिन के इटली प्रवास के दौरान हमने चार दिन रोम में, तीन दिन फ्लोरेंस में, एक दिन पीसा में और तीन दिन वेनिस में बिताए। इस दौरान अनेक रोचक एवं खट्टे-मीठे अनुभव भी हुए, उन्हें भी ज्यों का त्यों लिखने का प्रयास किया गया है।
– डॉ. मोहनलाल गुप्ता