Sunday, December 22, 2024
spot_img

भूमिका

अध्ययन की सुविधा के लिए भारत के इतिहास को दो भागों में विभक्त किया जाता है- (1.) पुरा ऐतिहासिक काल, (2.) ऐतिहासिक काल। पुरा ऐतिहासिक काल में पाषाणीय मानव बस्तियों के आरम्भ होने से लेकर वैदिक आर्यसभ्यता के आरम्भ होने से पहले का कालखण्ड सम्मिलित किया जाता है। इस काल खण्ड में लिखित सामग्री का प्रायः अभाव है। अतः पत्थरों के औजारों, जीवाश्मों, मृदभाण्डों आदि पुरावशेषों के आधार पर इतिहास का लेखन किया जाता है तथा पुरावशेषों के कालखण्ड का निर्धारण करने के लिए कार्बन डेटिंग पद्धति का सहारा लिया जाता है।  इस काल में केवल सिंधु सभ्यता ही एकमात्र ऐसी सभ्यता है जिसकी मुद्राओं एवं बर्तनों पर संक्षिप्त लेख हैं किंतु इस काल की लिपि को अब तक नहीं पढ़ा जा सकता है अतः इस सभ्यता के इतिहास का काल-निर्धारण भी कार्बन डेटिंग पद्धति के आधार पर किया जाता है।

भारत के ऐतिहासिक कालखण्ड को पुनः तीन भागों में विभक्त किया जाता है- (1.) प्राचीन भारत का इतिहास, (2.) मध्यकालीन भारत का इतिहास एवं (3.) आधुनिक भारत का इतिहास। प्राचीन भारत का इतिहास भारत में प्राचीन आर्य राजाओं की राजन्य व्यवस्था के उदय से लेकर आर्य  राजवंशों की समाप्ति तक का इतिहास सम्मिलित किया जाता है जिन्हें प्राचीन भारतीय क्षत्रिय कहा जाता है। इसकी अवधि लगभग ईसा पूर्व 3000 से लेकर ईस्वी 1206 तक निर्धारित की जाती है। अर्थात् इस कालखण्ड की समाप्ति भारत में मुस्लिम शासन की स्थापना के साथ होती है।

मध्यकालीन भारत का इतिहास ई.1206 में दिल्ली सल्तनत की स्थापना से लेकर ई.1761 में पानीपत के युद्ध तक चलता है। इस पूरे काल में भारत में लगभग 300 वर्ष तक तुर्क तथा लगभग 250 वर्ष तक मुगल शासक राज्य करते हैं किंतु ई.1761 तक वे इतने कमजोर हो जाते हैं कि पानीपत की तीसरी लड़ाई में मुगलों की तरफ से मराठों ने अहमदशाह अब्दाली से लड़ाई की। मराठों की करारी हार के बाद मुगलों का राज्य पूरी तरह अस्ताचल को चला जाता है और अंग्रेजों को अपनी शक्ति बढ़ाने का अवसर मिलता है।

ई.1765 में हुई इलाहाबाद की संधि में मुगल बादशाह को पेंशन स्वीकृत कर दी जाती है और अंग्रेज भारत के वास्तविक शासक बन जाते हैं। इस प्रकार ई.1761 से लेकर ई.1947 तक के काल को आधुनिक भारत का इतिहास कहा जाता है। इस ग्रंथ में मध्यकालीन भारत का इतिहास लिखा गया है जिसमें भारत में मुस्लिम सल्तनत की स्थापना से लेकर मुगलिया सल्तनत की समाप्ति तक का अर्थात् 1200 ईस्वी से लेकर 1760 ईस्वी तक का इतिहास लिखा गया है।

मध्यकालीन भारत के इतिहास पर पहले से ही बाजार में अनेक पुस्तकें हैं। प्रायः इतिहास की अच्छी पुस्तकें भी विषय वस्तु के संयोजन की कमी एवं सूचनाओं को ठूंस-ठूंस कर भर देने की प्रवृत्ति के कारण उबाऊ हो जाती हैं जिनके कारण विद्यार्थी का मन उन पुस्तकों में नहीं लगता। इस कारण इस पुस्तक को लिखते समय परीक्षा के पाठ्यक्रम की मांग तथा विद्यार्थियों की सुविधा का ध्यान रखा गया है।

जैसे-जैसे समय आगे बढ़ रहा है, वैसे-वैसे इतिहास के क्षेत्र में भी नित्य नई शोध सामने आ रही हैं। उन नई जानकारियों को भी इस पुस्तक में समाविष्ट करने का प्रयास किया गया है। अब इतिहास कुछ घिसी पिटी सूचनाओं का संग्रह नहीं रह गया है, प्राप्त तथ्यों को न केवल तार्किकता के साथ अपनाया जा रहा है अपितु उन्हें वैज्ञानिक अनुसंधानों की कसौटी पर भी कसा जा रहा है।

इस पुस्तक की भाषा को स्नातक उपाधि स्तर के विद्यार्थियों की मांग के अनुरुप सरल रखा गया है। छोटे-छोटे वाक्य लिखे गये हैं ताकि सूचनाओं को मस्तिष्क में अच्छी तरह संजोया जा सके। ऐतिहासिक तथ्यों को क्रमबद्ध लिखा गया है तथा असंगत एवं विरोधाभासी तथ्यों से बचने का प्रयास किया गया है।

जैसे-जैसे समय आगे बढ़ रहा है, वैसे-वैसे इतिहास के क्षेत्र में भी नित्य नई जानकारियां मिल रही हैं। नई जानकारियों को भी इस पुस्तक में समाविष्ट करने का प्रयास किया गया है।

इस पुस्तक का प्रथम मुद्रित संस्करण वर्ष 2013 में तथा द्वितीय संस्करण वर्ष 2016 में प्रकाशित हुआ था। वर्ष 2018 में पुस्तक का ई-बुक संस्करण प्रकाशित किया जा रहा है। आशा है इस पुस्तक का ई-संस्करण विश्व भर के पाठकों की आवश्यकता को पूरी कर सकेगा।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source