Sunday, December 22, 2024
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भूमिका

तेरहवीं शताब्दी ईस्वी में जब दिल्ली सल्तनत पर लड़ाका तुर्की कबीले शासन कर रहे थे, एक यतीम शहजादी का दिल्ली के तख्त पर काबिज हो जाना बहुत ही आश्चर्य जनक घटना थी किंतु सख्त इरादों की मलिका रजिया ने उस युग में ऐसा कर दिखाया।

घोड़े पर बैठकर तलवार चलाने वाली सुन्दर औरत को तुर्की अमीर कभी भी दिल्ली के तख्त पर नहीं देखना चाहते थे किंतु दिल्ली की गरीब और निरीह जनता ने उसे दिल्ली की मल्लिका बनाया। यही कारण था कि तुर्की अमीर तब तक रजिया के दुश्मन बने रहे जब तक कि रजिया खत्म नहीं हो गई।

वह अपनी सल्तनत और रियाया की रक्षा करने के लिये तलवार और कलम दोनों चलाना जानती थी। वह युद्ध अभियानों का स्वयं संचालन कर सकती थी। वह तख्त पर बैठकर अमीरों और रियाया पर शासन कर सकती थी। वह दिल्ली की गलियों में घूमकर जनता का विश्वास जीत सकती थी। वह पतली-दुबली सी लड़की, विद्राहियों के विरुद्ध रण में जूझने को तत्पर रहती थी। जब वह घोड़े की पीठ पर बैठती तो घोड़े हवाओं से बातें करने लगते। जब वह अपनी सेनाओं को प्रयाण का आदेश देती तो बड़े-बड़े शत्रु मैदान छोड़कर भाग जाते। उसने मध्यकालीन भारत का इतिहास बदल दिया।

यद्यपि रजिया ने अपने पिता इल्तुतमिश को ही अपना आदर्श माना था तथा उसी के पदचिह्नों पर चलकर वह शासन का संचालन करती थी किंतु कई मामलों में वह अपने पिता से भी दो कदम आगे थी। जिन तुर्की अमीरों के समक्ष इल्तुतमिश तख्त पर बैठने में संकोच करता था, रजिया उन्हीं अमीरों को सख्ती से आदेश देती और उनकी पालना करवाती थी। इल्तुतमिश ने तुर्की अमीरों को खुश करने के लिये हिन्दू जनता पर भयानक अत्याचार किये किंतु रजिया ने अपने अमीरों को निर्देश दिये कि वे हिन्दू रियाया के साथ नर्मी से पेश आयें।

उसने शासन में नये प्रयोग किये तथा अपने अक्तादारों (प्रांतीय शासकों) को उसी प्रकार अंकुश में रखा तथा उनके स्थानांतरण की पद्धति विकसित की जिस प्रकार दो साल बाद मुगलों ने अपने सूबेदारों पर नियंत्रण स्थापित किया तथा हर दो-चार साल में उनके सूबों की बदली की। इस मामले में वह अपने समय से बहुत आगे थी।

रजिया में एक सफल राजा के समस्त गुण विद्यमान थे किंतु दगा, फरेब, जालसाजी और खुदगर्जी से भरे उस युग में रजिया केवल साढ़े तीन साल ही शासन कर सकी। रजिया को लेकर अक्सर उसके सौन्दर्य और प्रेम के किस्से ही इतिहास में हावी हो गये हैं जबकि सुल्तान के रूप में उसके संघर्ष और उपलब्धियां कम दिलचस्प नहीं हैं।

यह पुस्तक रजिया के उन्हीं संघर्षों पर केन्द्रित है और रजिया का वास्तविक इतिहास है जो कि तेरहवीं शताब्दी के भारत के इतिहास की महत्वपूर्ण घटना है।

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