मुहम्मद गौरी तराइन के युद्ध में घायल होकर राजा धीर पुण्ढीर के हाथों पकड़ लिया गया तथा सम्राट पृथ्वीराज चौहान को विपुल धन देकर बंदीगृह से छूट गया तथा फिर से गजनी चला गया। गजनी पहुँचने के बाद पूरे एक साल तक मुहम्मद गौरी अपनी सेना में वृद्धि करता रहा। जब उसकी सेना में 1,20,000 सैनिक जमा हो गए तो ई.1192 में वह पुनः सम्राट पृथ्वीराज चौहान से लड़ने के लिए भारत की ओर चल दिया।
‘तबकात ए नासिरी’ नामक ग्रंथ के अनुसार शहाबुद्दीन मुहम्मद गौरी को कन्नौज तथा जम्मू के राजाओं द्वारा सैन्य सहायता भी उपलब्ध करवाई गई किंतु किसी भी समकालीन इतिहास ग्रंथ में तराइन के द्वितीय युद्ध में राजा जयचन्द गाहड़वाल की किसी भी तरह की भूमिका के बारे में कोई उल्लेख नहीं है। यहाँ तक कि मुहम्मद गौरी के दरबारी लेखक हसन निजामी ने भी अपने ग्रंथों में इस बात का कोई उल्लेख नहीं किया है।
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बीसवीं शताब्दी ईस्वी में अजमेर का इतिहास लिखने वाले लेखक हर बिलास शारदा ने तबकात ए नासिरी नामक ग्रंथ के आधार पर लिखा है कि कन्नौज के राठौड़ों तथा गुजरात के सोलंकियों ने एक साथ षड़यंत्र करके पृथ्वीराज पर आक्रमण करने के लिए शहाबुद्दीन को आमंत्रित किया। वस्तुतः हर बिलास शारदा ने यहाँ एक साथ कई गलतियां की हैं। कन्नौज के शासक राठौड़ नहीं थे, गाहड़वाल थे। दूसरी गलती यह कि कन्नौज की सेना इस युद्ध से पूरी तरह दूर रही। ऐसी स्थिति में मुहम्मद गौरी को पृथ्वीराज चौहान पर आक्रमण करने हेतु आमंत्रित करने वाली बात कैसे स्वीकार की जा सकती है!
तीसरी गलती यह है कि शारदा ने गुजरात के सोलंकियों को भी इस षड़यंत्र में शामिल कर लिया है। गुजरात के सोलंकी तो ई.1178 में ही मुहम्मद गौरी को पीटकर भगा चुके थे तथा उसके बाद से मुहम्मद ने गुजरात की बजाय पंजाब पर अपना ध्यान केन्द्रित कर लिया था। ऐसी स्थिति में गुजरात के चौलुक्यों को क्या आवश्यकता थी कि वे मुहम्मद के साथ षड़यंत्र में सम्मिलित होते!
चौथी गलती यह कि जब गुजरात के चौलुक्यों ने इस युद्ध में भाग ही नहीं लिया तो उनके द्वारा गौरी को आमंत्रित करने की बात कैसे स्वीकार की जा सकती है? पांचवी गलती यह कि जब मुहम्मद गौरी लगभग प्रतिवर्ष भारत पर आक्रमण कर रहा था, तब इस आक्रमण के लिए उसे कन्नौज द्वारा आमंत्रित किए जाने की क्या आवश्यकता आन पड़ी थी!
वस्तुतः तबकात ए नासिरी का लेखक मिनहाजुद्दीन सिराज, मुहम्मद गौरी की मृत्यु के बाद दिल्ली में स्थापित दिल्ली सल्तनत के अधीन दिल्ली का शहर-काजी था, उसने दिल्ली के सुल्तानों को खुश करने के लिए अपने ग्रंथ में यह मिथ्या बात लिखी। काजी मिनहाजुद्दीन सिराज की बात का विश्वास नहीं किया जा सकता क्योंकि इसकी पुष्टि किसी भी समकालीन स्रोत से नहीं होती है किंतु दुर्भाग्य से हर बिलास शारदा ने इसे अपने ग्रंथ में उद्धृत कर दिया और तभी से भारत में ये धारणाएं प्रचलित हो गईं कि कन्नौज का राजा राठौड़ था और उसने देश के साथ गद्दारी करके मुहम्मद गौरी को देश पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया था।
वस्तुतः सम्राट पृथ्वीराज को धोखा कन्नौज या गुजरात के शासकों ने नहीं दिया था, सम्राट को धोखा उसके अपने मंत्रियों एवं सेनापतियों ने दिया था जो सम्राट पृथ्वीराज से नाराज थे।
जब मुहम्मद गौरी लाहौर पहुँचा तो उसने किवाम उल मुल्क को अपने दूत के रूप में अजमेर भेजकर सम्राट पृथ्वीराज से कहलवाया कि वह इस्लाम स्वीकार कर ले और गौरी की अधीनता मान ले। पृथ्वीराज ने गौरी को प्रत्युत्तर भिजवाया कि वह गजनी लौट जाए अन्यथा युद्ध-क्षेत्र में भेंट करने के लिए तैयार रहे। मुहम्मद गौरी, पृथ्वीराज को छल से जीतना चाहता था। इसलिए गौरी ने अपना दूत दुबारा अजमेर भेजकर कहलवाया कि मैं युद्ध की अपेक्षा सन्धि को अच्छा मानता हूँ, इसलिए मैंने एक दूत अपने भाई के पास गजनी भेजा है। ज्योंही गजनी से आदेश प्राप्त हो जाएंगे, मैं स्वदेश लौट जाऊंगा तथा पंजाब, मुल्तान एवं सरहिंद को लेकर संतुष्ट हो जाऊँगा।
इस संधि वार्त्ता ने पृथ्वीराज को भ्रम में डाल दिया। फिर भी पृथ्वीराज कोई संकट मोल नहीं लेना चाहता था इसलिए वह स्वयं सेना लेकर तराइन पहुंचा। सोलहवीं-सत्रहवीं शताब्दी ईस्वी के लेखक फरिश्ता ने लिखा है कि राजा पृथ्वीराज अपने साथ पांच लाख घुड़सवार तथा तीन हजार हाथी लेकर युद्ध के मैदान में पहुंचा। यह संख्या बहुत अधिक है, इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।
विभिन्न लेखकों के अनुसार उस समय सम्राट के पास बहुत कम सेना थी। अधिकतर सेना सेनापति स्कंद के साथ थी किंतु वह सम्राट के साथ युद्धक्षेत्र में नहीं जा सकी। इस पर राजा पृथ्वीराज अपने साथ उपलब्ध सेना को लेकर तराइन की ओर बढ़ा।
पृथ्वीराज का दूसरा सेनाध्यक्ष उदयराज भी समय पर अजमेर से रवाना नहीं हो सका। पृथ्वीराज का मंत्री सोमेश्वर जो युद्ध के पक्ष में नहीं था तथा कुछ समय पूर्व ही पृथ्वीराज द्वारा दण्डित किया गया था, वह अजमेर से रवाना होकर शत्रु से जा मिला।
जब राजा पृथ्वीराज की सेना तराइन के मैदान में पहुँची तो भी संधिवार्त्ता के भुलावे में पड़ी रही। उधर मुहम्मद गौरी ने अपनी सेना के पांच भाग किए। चार भागों को भारतीय सेना पर चारों ओर से आक्रमण करने का काम सौंपा गया तथा एक बड़ा हिस्सा आरक्षित रखा गया ताकि संकट के समय काम आ सके अथवा पृथ्वीराज की भागती हुई सेना की हत्या कर सके।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता