भारत के विभाजन से न केवल भारत सरकार के सम्मुख अपित देशी रियासतों की सरकारों के सम्मुख सरकारी कर्मचारियों की समस्या उत्पन्न हो गई।
देश के विभाजन के समय सांप्रदायिक समस्या उठ खड़ी होने से जोधपुर रेलवे के कुछ कर्मचारियों को अपने परिवारों के साथ पाकिस्तान से निकल पाना कठिन हो गया। ऐसे 600 हिन्दू कर्मचारी जो सिंध प्रांत में नियुक्त थे, पाकिस्तान से निकलने में आई कठिनाई के कारण कुछ दिनों तक अपने काम पर नहीं आ सके। जब वे भारत लौटे तो रेलवे ने उन्हें काम पर नहीं लिया गया तथा 3 माह तक निलम्बित रखने के पश्चात सेवा से मुक्त करने का निर्णय लिया।
इस पर जोधपुर के रेलवे स्टाफ ने 28 नवम्बर 1947 को प्रधानमंत्री को एक ज्ञापन भिजवाया। प्रधानमंत्री कार्यालय ने यह ज्ञापन रेलवे मंत्रालय को भिजवा दिया। रेल मंत्रालय ने रियासती विभाग को सूचित किया कि वह इस प्रकरण में कुछ भी करने में समर्थ नहीं है। रियासती मंत्रालय ने रेलवे मंत्रालय को स्पष्ट निर्देश दे रखे थे कि जयपुर, जोधपुर, बीकानेर एवं उदयपुर राज्यों से रेलवे मंत्रालय द्वारा सीधा पत्राचार नहीं किया जाना चाहिये।
इसी प्रकार जोधपुर कर्मचारी संघ ने रियासती विभाग के समक्ष एक ज्ञापन प्रस्तुत कर मांग की कि इस कर्मचारी संघ को सरकार द्वारा मान्यता दी जानी चाहिये। कर्मचारियों के वेतन एवं भत्ते वेतन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार बढ़ाये जाने चाहिये। महंगाई भत्ता बढ़ाया जाना चाहिये। श्रमिकों के लिए पुस्तकालय एवं क्लब की सुविधा होनी चाहिये। श्रमिकों एवं उनके परिवारों के लिए निःशुल्क चिकित्सालय होना चाहिये। रियासती विभाग द्वारा इस प्रकरण को राजपूताना के रीजनल कमिश्नर को आबू भिजवा दिया गया।
चूंकि रेलवे अपने स्तर पर जोधपुर राज्य की सरकार से कोई बात नहीं कर सकती थी, इसलिए सरकारी कर्मचारियों की समस्या बढ़ गई।
जोधपुर रेलवे की सम्पत्ति की निकासी
स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व सिंध क्षेत्र ब्रिटिश-भारत की बम्बई प्रेसिडेंसी के अंतर्गत आता था। ई.1900 में जोधपुर रेलवे ने 133.40 मील लम्बी रेल लाइन बालोतरा से पश्चिमी सीमा में ब्रिटिश राज्य की सीमा में बनायी थी। भारत सरकार ने 1 जनवरी 1929 को मीरपुर खास से जुडे़ खण्डों को सिंध लाइट रेल्वे कम्पनी लिमिटेड से खरीद कर जोधपुर रेलवे को प्रबंधन हेतु सौंप दिया। ई.1939 में जोधपुर रेलवे द्वारा खाडरू से नवाबशाह तक 30.72 मील लम्बा रेलमार्ग बिछाया गया। इसे 29 नवम्बर 1939 को आरंभ किया गया। 31 दिसम्बर 1942 को पुनः भारत सरकार ने सिंध लाइट रेलवे से मीरपुर खास से खाडरू तक का 49.50 मील लम्बा रेलमार्ग भी खरीद कर जोधपुर रेलवे को सौंप दिया जिससे जोधपुर रेलवे के ब्रिटिश खण्ड की लम्बाई 318.74 मील हो गयी। इस पथ पर रेल संचालन जोधपुर रेलवे द्वारा किया जाता था तथा सारा रॉलिंग स्टॉक जोधपुर रेलवे का था।
जब सिंध क्षेत्र के पाकिस्तान में जाने के संकेत मिलने लगे तो उस समय जोधपुर रेलवे के मुख्य अभियंता सी. एल. कुमार ने सिंध क्षेत्र में स्थित रेलवे स्टेशनों एवं वहाँ कार्यरत निर्माण निरीक्षक एवं रेलपथ निरीक्षक कार्यालयों के भण्डारगृहों में पड़ी रेल-सम्पत्ति को जोधपुर में लाने का कार्य अत्यंत दक्षता एवं बुद्धिमत्ता से किया। यदि समय रहते यह कदम नहीं उठाया गया होता तो लाखों रुपये की रेल-सामग्री पाकिस्तान में रह गयी होती।
जोधपुर रेलवे के रॉलिंग स्टॉक के हस्तांतरण की तिथि 31.7.1947 निश्चित की गयी थी किंतु पाकिस्तान सरकार ने इस तिथि से कुछ दिन पूर्व ही 6 इंजन, 75 कोच, 4 ऑफीसर्स कैरिज तथा 300 से अधिक वैगन बलपूर्वक रोक लिए। इसका मूल्य 17 लाख रुपये आंका गया। इससे जोधपुर एवं पाकिस्तान के बीच चलने वाली रेल सेवा ठप्प हो गयी।
जोधपुर सरकार ने पाकिस्तान सरकार से मांग की कि वह रोके गये रॉलिंग स्टॉक तथा पाकिस्तान में निकलने वाले जोधपुर राज्य के 50 लाख रुपये के राजस्व का भुगतान करे तथा अपना प्रतिनिधि जोधपुर भेजकर मामले का निस्तारण करे किंतु पाकिस्तान सरकार ने जोधपुर सरकार की कोई बात नहीं सुनी। जोधपुर राज्य के प्रधानमंत्री जयनारायण व्यास ने पाकिस्तान में भारत के उच्चायुक्त श्री प्रकाश से बात की। अंत में जवाहरलाल नेहरू के हस्तक्षेप से पाकिस्तान सरकार ने 50 लाख रुपये जोधपुर सरकार को देने तय किए।
इस प्रकार जोधपुर राज्य सरकारी कर्मचारियों की समस्या सुलझाने में विफल रहा। भारत सरकार के सहयोग से ही सरकारी कर्मचारी अपने हितों की रक्षा कर सके।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता
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