रहमत अली ने किया पाकिस्तान शब्द का आविष्कार
ई.1933 में रहमत अली नामक एक विद्यार्थी ने एक प्रस्ताव तैयार किया जिसमें कहा गया कि भारतीय मुसलमानों को अपना राज्य हिन्दुओं से अलग कर लेना चाहिये। रहमत ब्रिटेन में रहकर पढ़ रहा था और उस समय उसकी आयु 40 वर्ष थी। उसने अपने प्रस्ताव में कहा कि भारत को अखण्ड रखने की बात अत्यंत हास्यास्पद और फूहड़ है।
भारत के जिन उत्तर पश्चिमी क्षेत्रों- पंजाब, काश्मीर, सिंध, सीमांत प्रदेश तथा ब्लूचिस्तान में मुसलमानों की संख्या अधिक है, उन्हें अलग करके पाकिस्तान नामक देश बनाया जाना चाहिये। उसके प्रस्ताव का समापन इन शब्दों के साथ हुआ था- ‘हिन्दू राष्ट्रीयता की सलीब पर हम खुदकुशी नहीं करेंगे।’
कैंब्रिज विश्वविद्यालय के भारतीय मुस्लिम विद्यार्थियों ने रहमत अली का साथ दिया। उन्होंने ‘पाकिस्तान नाउ ऑर नेवर।’ शीर्षक से एक इश्तहार प्रकाशित करवाया जिसमें कहा गया कि- ‘भारत किसी एक अकेले राष्ट्र का नाम नहीं है। न ही एक अकेले राष्ट्र का घर है। वास्तव में यह इतिहास में पहली बार ब्रिटिश सरकार द्वारा निर्मित एक राष्ट्र की उपाधि है। मुसलमानों की जीवन शैली भारत के अन्य लोगों से भिन्न है। इसलिये उनका अपना राष्ट्र होना चाहिये। हमारे राष्ट्रीय रिवाज और कैलेंडर अलग हैं। यहाँ तक कि हमारा खान-पान तथा परिधान भी भिन्न है।’
रहमत अली ने ‘पाकिस्तान’ शब्द के दो अर्थ बताये- पहले अर्थ के अनुसार पाकिस्तान माने पवित्र भूमि। दूसरे अर्थ के अनुसार पाकिस्तान शब्द का निर्माण उन प्रांतों के नामों की अंग्रेजी वर्णमाला के प्रथम अक्षरों से हुआ है जो इसमें शामिल होने चाहिये- पंजाब, अफगानिया (उत्तर पश्चिमी सीमा प्रांत), काश्मीर तथा सिंध। शेष शब्द बलूचिस्तान शब्द के अंतिम भाग से लिये गये। बाद में देश के पूर्वी भाग में स्थित असम तथा बंगाल और दक्षिण में स्थित हैदराबाद तथा मालाबार को भी पाकिस्तान में शामिल करने की योजना बनायी गयी।
इस योजना के अनुसार संपूर्ण ‘गैर-मुस्लिम राष्ट्र’ को ‘मुस्लिम-देश’ द्वारा घेरा जाना था तथा गैर-मुस्लिम राष्ट्र के बीच-बीच में मुस्लिम पॉकेट यथा अलीगढ़, भोपाल, हैदराबाद, जूनागढ़, आदि को भी पाकिस्तान का हिस्सा होना था। रहमत अली के इस प्रस्ताव पर मुहम्मद अली जिन्ना की प्रतिक्रिया के बारे में लैरी कॉलिंस एवं दॉमिनिक लैपियर ने लिखा है-
‘जिस व्यक्ति को एक दिन पाकिस्तान के पिता की संज्ञा से विभूषित किया जाने वाला था, उसी मोहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तान को एक असम्भव सपना कह कर ई.1933 में रहमत अली का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया।’
वस्तुतः रहमत अली जीवन भर लंदन में रहकर पाकिस्तान के लिये संघर्ष करता रहा किंतु जिन्ना ने कभी भी उसे महत्व नहीं दिया। जिन्ना को भय था कि कहीं रहमत अली, जिन्ना का स्थान न छीन ले।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता