Monday, December 30, 2024
spot_img

52. राजपूतों ने इल्तुतमिश को नाकों चने चबवाए!

कुतुबुद्दीन ऐबक के समय से ही उत्तरी भारत के हिन्दू राजा स्वतंत्र होने के प्रयास कर रहे थे। ई.1210 में ऐबक की मृत्यु होते ही हिन्दुओं ने अपने प्रयास और तेज कर दिए। जब इल्तुतमिश ने यल्दूज, कुबाचा, अलीमर्दान तथा गयासुद्दीन खिलजी की शक्ति को नष्ट कर दिया तथा मंगोलों के भय से मुक्ति पा ली, तब इल्तुतमिश ने हिन्दू राजाओं पर कार्यवाही आरम्भ की। इनमें जालौर तथा रणथंभौर के चौहान प्रमुख थे।

सपादलक्ष के चौहानों की एक शाखा पृथ्वीराज चौहान के जन्म से भी पहले मारवाड़ के नाडौल नामक क्षेत्र में स्थापित हो चुकी थी। इसी शाखा में से जालोर के सोनगरा चौहानों एवं आबू के देवड़ा चौहानों की दो शाखाएं अलग हुई थीं। ई.1178 में जालोर के चौहान शासक कीर्तिपाल ने मुहम्मद गौरी की सेना को भयानक पराजय का स्वाद चखाया था। उसे मारवाड़ के इतिहास में कीतू के नाम से भी जाना जाता है। इल्तुतमिश के समय में इसी कीतू का पोता उदयसिंह जालौर का शासक था। वह एक वीर राजा था। उसने लाहौर के शासक आरामशाह की एक सेना को पराजित करके कीर्ति अर्जित की थी।

इस रोचक इतिहास का वीडियो देखें-

इल्तुतमिश जालौर के चौहानों का मान-मर्दन करने की इच्छा रखता था क्योंकि उदयसिंह ने दिल्ली सल्तनत की कमजोरी का लाभ उठाकर अपना राज्य काफी दूर-दूर तक बढ़ा लिया था। ई.1215 में इल्तुतमिश ने एक सेना जालोर राज्य पर आक्रमण करने के लिए भेजी। महाराजा उदयसिंह जालोर दुर्ग के चारों ओर ऊंची और अभेद्य दीवारें खड़ी करके उसमें बैठ गया।

‘ताजुल मआसिर’ में लिखा है कि जब सुल्तान की सेना जालौर पहुंची तो उदयसिंह क्षमा याचना करने लगा तथा संधि के लिए अनुरोध करने लगा। राजा उदयसिंह ने सुल्तान इल्तुतमिश को 100 ऊँट तथा 20 घोड़े प्रदान किए। इसके बदले में सुल्तान ने उदयसिंह का राज्य उसे लौटा दिया।

मूथा नैणसी एवं डॉ. दशरथ शर्मा सहित अनेक इतिहासकारों ने इस युद्ध का एवं उसके परिणाम का उल्लेख किया है। इस विवरण के अनुसार दोनों सेनाओं में सशस्त्र युद्ध हुआ था। तथा युद्ध के बाद हुई संधि में राजा उदयसिंह ने इल्तुतमिश को नाडौल तथा मण्डोर के वे क्षेत्र पुनः लौटाने स्वीकार कर लिए जो उदयसिंह ने आरामशाह के समय में दिल्ली सल्तनत से छीनकर अपने अधिकार में लिए थे।

राजा उदयसिंह ने अपने पैतृक अधिकार वाले क्षेत्र में से एक इंच धरती भी इल्तुतमिश को नहीं दी थी। इस विवरण से स्पष्ट है कि ताजुल मआसिर का लेखक नितांत झूठ बोल रहा है।

To purchase this book, please click on photo.

इतिहास में किसी भी सुल्तान या बादशाह ने केवल 100 घोड़े तथा 20 ऊंट लेकर किसी शत्रु राजा को उसका राज्य वापस लौटाने का उल्लेख नहीं मिलता है। न ही इल्तुतमिश ने अपने पूरे जीवन काल में किसी हिन्दू राजा को उसका राज्य लौटाया था। इससे सिद्ध होता है कि राजा उदयसिंह चौहान, इल्तुतमिश की सेना से परास्त नहीं हुआ था अपितु दोनों पक्षों में एक सम्मानजनक संधि हुई थी। राजा उदयसिंह ने पूरे 54 साल तक जालौर राज्य पर शासन किया तथा दिल्ली सल्तनत की सेना उसका बाल भी बांका नहीं कर सकी।

इस काल में मेवाड़ तथा जालौर के शासकों के बीच परम्परागत शत्रुता चली आ रही थी और दोनों राज्य एक दूसरे की क्षति कर रहे थे किंतु जालौर के राजा उदयसिंह ने दूरदर्शिता दिखाते हुए अपनी पुत्री का विवाह मेवाड़ के रावल जैत्रसिंह के साथ कर दिया जिससे चौहानों एवं गुहिलों के बीच चल रहे संघर्ष पर विराम लग गया।

डॉ. गोपीनाथ शर्मा एवं गौरीशकंर हीराचंद ओझा के अनुसार इल्तुतमिश ने ई.1222 से 1229 के बीच किसी समय, मेवाड़ पर चढ़ाई की। उसने मेवाड़ की प्राचीन राजधानी नागदा के निवासियों को तलवार के घाट उतार दिया तथा नागदा को जला कर नष्ट कर दिया। इल्तुतमिश की सेना ने मेवाड़ की एक और प्राचीन राजधानी आहाड़ को भी तोड़ दिया तथा आसपास के कई गांवों को जला कर राख कर दिया। इस सेना ने स्त्रियों तथा बच्चों को भी निर्दयता से मारा। इस कारण लोगों में त्राहि-त्राहि मच गई।

इस पर मेवाड़ का राजा जैत्रसिंह अपनी सेना के साथ तुर्की सेना का मुकाबला करने आगे बढ़ा। उसने भूताला के निकट मुस्लिम सेना का सामना किया तथा मुस्लिम सेना को पराजित करके भाग दिया। इल्तुतमिश की सेना, गुहिलों की प्राचीन राजधानियों- नागदा एवं आहाड़ को तोड़ने में सफल रही थी। अतः जैत्रसिंह अपनी राजधानी को स्थाई रूप से चित्तौड़ ले आया।

जैत्रसिंह की इस विजय का महत्त्व प्रतिपादित करते हुए डॉ. दशरथ शर्मा ने लिखा है- ‘यह जैत्रसिंह का ही प्रताप था कि उसने मुस्लिम सेना को पीछे धकेल दिया जो कि गुजरात की तरफ आगे बढ़ रही थी।’ चीरवा तथा घाघसे के शिलालेखों में इस युद्ध एवं उसके परिणाम का उल्लेख किया गया है। इस युद्ध पर उस काल में ‘हंमीर-मद-मर्दन’ शीर्षक से एक नाटक भी लिखा गया था जिसमें अमीर इल्तुतमिश का मान-मर्दन किए जाने का उल्लेख है। रावल समरसिंह के आबू शिलालेख में जैत्रसिंह को ‘तुरुष्क रूपी समुद्र का पान करने के लिये अगस्त्य के समान’ बताया गया है।

जब जालौर के राजा उदयसिंह चौहान को ज्ञात हुआ कि इल्तुतमिश मेवाड़ पर चढ़ बैठा है तथा उसका निश्चय मेवाड़ को पराभूत करके गुजरात जाने का है तो राजा उदयसिंह चौहान ने मारवाड़ क्षेत्र के राजा सोमसिंह, परमार शासक धारावर्ष, धोलका के शासक धवल एवं उसके मंत्री वास्तुपाल के साथ एक संघ बनाया तथा इल्तुतमिश का मुकाबला करने के लिए तैयार हो गया। चूंकि इल्तुतमिश मेवाड़ में ही परास्त हो चुका था, इसलिए वह आगे नहीं बढ़ सकता था।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source