(9 अक्टूबर 2018 को लिखा गया लेख) चौदह माह की बच्ची से बलात्कार भारत की तमाम राजनीतिक एवं सामाजिक व्यवस्था को कटघरे में खड़ी करती है।
हमाम में नंगे राजनीतिक दल !
इस देश का दुर्भाग्य है कि यहां बलात्कार होते हैं और कुछ माह की बच्चियों से लेकर हर आयु की औरतों से बलात्कार होते हैं। कुछ बलात्कार केवल खबर बनकर रह जाते हैं तो कुछ बलात्कारों की चीखें देश के हर कोने में सुनाई देती हैं। गुजरात में 14 साल की एक बच्ची से बलात्कार हुआ। बलात्कारी बिहार से गुजरात में मजदूरी करने आया था।
इस बलात्कार का बदला लेने के लिए गुजरात विधान सभा के कांग्रेसी विधायक अल्पेश ठाकुर अपने साथियों के साथ लाठियां और सरिये लेकर घरों से बाहर आए। उन्होंने बदला लेने का नया तरीका ईजाद किया। उन्होंने यह कहकर पूरे देश की आत्मा पर ही हमला कर दिया कि यूपी और बिहार के लोग रात की रोटी खाकर गुजरात छोड़ दें।
उन्होंने यूपी तथा बिहार से रोजी-रोटी कमाने आए मजदूरों को रात के नौ बजे से सुबह के नौ बजे के बीच में गुजरात छोड़कर जाने का अल्टीमेटम दिया।
आनन-फानन में पचास हजार गुजराती गुजरात छोड़कर चल दिए। जब ये मजदूर अपने सिरों पर गठरियां लेकर पटना और बनारस के रेल्वे स्टेशनों पर उतरे तो पूरे देश में कोहराम मचना शुरु हो गया।
इस कोहराम की चीखें गुजरात के कांग्रेसी नेताओं के लिए आनंद का विषय बनकर गूंजीं। उनकी तो जैसे पौ बारह हो गई। गुजरात के कांग्रेसियों ने गुजरात सरकार पर असफलता, अकर्मण्यता और निष्क्रियता का आरोप लगा दिया। अर्जुन मोड़वाड़िया ने तो यहां तक कह दिया कि भाजपा ने ही ये हमले करवाए हैं क्योंकि भाजपा का चरित्र दंगे करवाने का रहा है।
महाराष्ट्र कांग्रेेस के अध्यक्ष संजय निरुपम सबसे पहले उछलकर सामने आए। उन्होंने अपने तल्ख बौद्धिक अंदाज में कहा कि मोदीजी यह न भूलें कि उन्हें भी बनारस जाना है। शायद संजय निरुपम खुद भूल गए हैं कि वे बिहार से आते हैं और महाराष्ट्र में बैठे हैं। वे शायद ये भी भूल गए कि कांग्रेस की सबसे बड़ी नेता तो इटली से आती हैं और उन्हें कहीं नहीं जाना है।
कांग्रेस की एक महिला प्रवक्ता ने एक टीवी चैनल पर भाजपा पर दंगे भड़काने का अरोप लगाते हुए कहा कि यदि अल्पेश ठाकुर जिम्मेदार हैं तो अभी तक उन्हें बुक क्यों नहीं किया गया? उनका कहने का अर्थ यह था कि अल्पेश पर बेवजह इल्जाम लगाया जा रहा है, असली मुजरिम तो भाजपा की गुजरात सरकार है।
बिहार से लालू यादव के सुपुत्र जो उपमुख्य मंत्री की कुर्सी भोग चुके हैं, उनकी भी लॉटरी लग गई। उन्होंने भी कांग्रेस के साथ सुर मिलाते हुए कहा कि गुजरात में जो कुछ हुआ उसके लिए नरेन्द्र मोदी की भाजपा सरकार जिम्मेदार है।
कम्युनिस्टों की भी जैसे मुंह मांगी मुराद पूरी हो गई। एक सुर से भाजपा को गरियाते हुए कह रहे हैं कि भाजपा का तो चरित्र ही दंगे-फसाद करवाने का रहा है।
भाजपा के नेता भी इस घटना के पीछे कांग्रेस को दोषी बताते हुए नहीं थक रहे। इस बार तो खैर भाजपाइयों की मजबूरी है किंतु यदि गुजरात में कांग्रेस सत्ता में होती और भाजपा विपक्ष में होती तो दोनों ओर से संवादों की भाषा बदल जाती। हां बातें केवल और केवल यही होतीं।
देश का यह कैसा चरित्र है! क्या हमारी राजनीतिक पार्टियों के नेताओं को समस्याओं के मूल में जाना और उनके निराकरण के लिए गंभीर चिंतन करना आता ही नहीं है! चीख-पुकार तो इस बात पर मचनी चाहिए थी कि इस देश में छोटी बच्चियों से लेकर हर आयु की औरत से बलात्कार कैसे हो जाता है! चिंता तो इस बात पर होनी चाहिए थी कि एक शांतिप्रिय राज्य के लोग अचानक ही दूसरे प्रांतों से आए लोगों पर हमलावर कैसे बन जाते हैं।
हमें इस बात पर भी विचार करना चाहिए कि क्या चौदह माह की बच्ची से बलात्कार जैसी घटनाओं को रोकने के लिए देश की न्यायिक व्यवस्था में भी कोई सुधार करने की आवश्यकता है!
इन दोनों समस्याओं का मूल हमारे सामाजिक एवं आर्थिक ताने-बाने में है। इस सामाजिक एवं आर्थिक ताने-बाने की बात न करके अपने वोटों की चिंता करना सभी राजनीतिक दलों को राजनीति के हमाम में नंगा सिद्ध करता है, और कुछ नहीं।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता
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