अरब के एक छोटे नगर में उत्पन्न इस्लाम विश्व की सबसे बड़ी शक्तियों में से एक बन गया। तीव्र इस्लामिक विश्वव्यापी प्रसार के कई कारण थे-
(1) इस्लाम की कट्टरता ने तीव्र इस्लामिक विश्वव्यापी प्रसार में सहायता की। हजरत मुहम्मद ने मदीना पहुँचकर अपने अनुयाइयों को सैनिकों के रूप में संगठित किया तथा उन्हें आदेश दिया कि कुरान में अविश्वास रखने वाले को बलात् मुसलमान बना लिया जाए और यदि वे इस्लाम को स्वीकार न करें तो उन्हें मौत के घाट उतार दिया जाए। पैगम्बर के आदेश का पालन किया गया तथा सबसे पहला आक्रमण मक्का पर किया गया। मक्का विजय के बाद हर जगह यही उदाहरण दोहराया गया।
रामधारीसिंह ‘दिनकर’ ने लिखा है– ‘जहाँ-जहाँ इस्लाम के उपासक गए, उन्होंने विरोधी सम्प्रदाय के सामने तीन रास्ते रखे- या तो कुरान हाथ में लो और इस्लाम कबूल करो या जजिया दो और अधीनता स्वीकार करो। यदि दोनों में से कोई बात पसन्द न हो तो तुम्हारे गले पर गिरने के लिए हमारी तलवार प्रस्तुत है। ये बड़े ही कारगर उपाय रहे होंगे किन्तु यह समझ में नहीं आता कि सिर्फ इन्हीं उपायों से इस्लाम इतनी जल्दी कैसे फैल गया?’ इस्लाम के लिए युद्ध करने वाले मुसलमानों को कुरान का आश्वासन था कि उनके पाप क्षमा कर दिए जाएंगे और उन्हें स्वर्ग में खूब आनन्द मिलेगा।
(2) अरब की तत्कालीन सामाजिक एवं धार्मिक स्थिति इस्लामिक विश्वव्यापी प्रसार का बड़ा कारण थी। उस समय सारा अरब अन्धविश्वास, सामाजिक कुरीतियों और दुराचार का केन्द्र बना हुआ था। अरबों में निर्धनता व्याप्त थी जिसके कारण उनमें लालच भी बहुत अधिक था और धन प्राप्त करने का हर उपाय अच्छा समझा जाता था। जुआ, शराबखोरी, और वेश्यागमन भंयकर रूप से प्रचलित थे। विवाह जैसी पवित्र संस्था का महत्त्व भी जाता रहा और समाज में यौन-सम्बन्धों की कोई नैतिक व्यवस्था नहीं रह गयी थी। अरब लोग बहुदेववादी और मूर्तिपूजक थे। ऐसी स्थिति में हजरत मुहम्मद द्वारा चलाया गया- अन्धविश्वासों से रहित, आडम्बरहीन, सरल, बोधगम्य तथा एक निराकार अल्लाह की उपासना वाला इस्लाम शीघ्र ही लोकप्रिय हो गया।
(3) इस्लाम में सामाजिक एवं धार्मिक समानता की विचारधारा भी इस्लाम की सफलता का बड़ा कारण था। इस्लाम में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं है तथा प्रत्येक व्यक्ति के सामाजिक एवं धार्मिक अधिकार एक समान हैं। समस्त मुसलमानों को एक अल्लाह का बन्दा समझा गया है। इसलिए इस्लाम के अनुयाई परस्पर बन्धु हैं तथा उनमें ऊँच-नीच की भावना नहीं है। इस समानता के सिद्धान्त के कारण इस्लाम की लोकप्रियता बहुत तेजी से बढ़ी। जिस भी समाज में निम्न स्तर के लोग उच्च स्तर के लोगों के धार्मिक या सामाजिक अत्याचार से पीड़ित थे, उन्होंने समाज में सम्मान एवं प्रतिष्ठा प्राप्त करने के लिए इस्लाम स्वीकार कर लिया। इस कारण इस्लाम का प्रसार तेजी से हुआ।
(4) जिस समय इस्लाम के अनुयाई इस्लाम के प्रसार में लगे हुए थे, उस समय रोमन साम्राज्य खोखला हो चुका था और वहाँ विलासिता चरम पर थी। ईरानी साम्राज्य भी विलासिता के दलदल में डूबा हुआ था। राज्य के अधिकारी और धर्माधिकारी जनता का भयानक शोषण करते थे। इन शोषित राज्यों की जनता ने इस्लामी सेनाओं को अपनी मुक्तिदाता समझा।
इतिहासकार मानवेन्द्र राय ने लिखा है- ‘अरब आक्रमणकारी जहाँ भी गए, जनता ने उन्हें अपना रक्षक और मुक्तिदाता मानकर उनका स्वागत किया क्योंकि कहीं तो जनता लोभी शासकों के भ्रष्टाचार के नीचे पिस रही थी तो कहीं ईरानी तानाशाहों के जुल्मों से त्रस्त थी और कहीं ईसाइयत का अन्धविश्वास उन्हें जकड़े हुए था।’
(5) अरबों की तात्कालिक आर्थिक स्थिति ने भी इस्लामिक विश्वव्यापी प्रसार में योगदान दिया। छठी शताब्दी में अरब में कारवाँ व्यापार का ह्रास हो रहा था जिससे आर्थिक सन्तुलन भंग हो गया। कारवाँओं से होने वाली आमदनी बन्द हो जाने पर खानाबदोश अरब, खेती करने लगे। इससे जमीन की माँग बढ़ रही थी और पड़ौसी राज्यों की उपजाऊ भूमि को हस्तगत करना सबसे आसान तरीका था।
जिस क्षेत्र को भी वे हस्तगत करते थे, वहाँ के लोगों से कर वसूल करते थे। लाखों गैर-मुसलमानों ने इस्लाम को इसलिए स्वीकार कर लिया ताकि उन्हें कर नहीं चुकाना पड़े। इस्लाम स्वीकार करके वे इस्लामी राज्य में नौकरियाँ प्राप्त करने के पात्र बन जाते थे। यदि वे दास अथवा अर्द्धदास होते तो धर्म-परिवर्तन से दासता से मुक्त कर दिए जाते थे। इस प्रकार विजित क्षेत्रों की निर्धन जनता ने इस्लाम सहर्ष स्वीकार कर लिया।
(6) इस्लाम के प्रारम्भिक नेताओं के व्यक्तित्त्व तथा आदर्श-पूर्ण जीवन ने इस्लाम की लोकप्रियता में बड़ा योगदान दिया। अबूबक्र, उमर उस्मान और अली, तीनों ही नबी के चुने हुए साथी थे और उन्होंने भी हजरत मुहम्मद की ही तरह अभाव और दरिद्रता में जीवन व्यतीत किया था। उनके न तो महल या अंगरक्षक थे और न समसामयिक बादशाहों जैसे ठाट-बाट थे। प्रत्येक मुसलमान सीधे ही उन तक पहुँच सकता था। उन्होंने सादगी, सच्चरित्रता, वीरता और वैराग्य का सुन्दर उदाहरण प्रस्तुत किया इन कारणों से इस्लाम का शीघ्र प्रसार सम्भव हो सका।
(7) प्रत्येक मुसलमान वैधानिक रूप से चार पत्नियाँ रख सकता है। इस बहु-विवाह का परिणाम यह निकला कि मुसलमान जहाँ भी गए, उन्होंने गैर-मुस्लिम-स्त्रियों से विवाह कर लिए। भारत में आकर भी मुसलमानों ने हिन्दू स्त्रियों से विवाह किए। हिन्दू स्त्रियों से मुस्लिम बच्चे पैदा हुए जिनके कारण देश में इस्लाम का तेजी से प्रसार हुआ। हिन्दू स्त्रियों से उत्पन्न मुसलमान, भारत में इस्लाम के प्रसार के लिए अधिक तत्पर सिद्ध हुए।
(8) भारत में तुर्कों के आने के समय यहाँ की राजनीतिक दशा अत्यन्त शोचनीय थी। देश में केन्द्रीय सत्ता एवं राजनीतिक एकता का अभाव था। छोटे-बड़े राज्यों के राजा आपसी संघर्ष में अपनी शक्ति क्षीण कर रहे थे। इस समय हिन्दू समाज भी पतनोन्मुख था और उसे उत्साह से भरी हुई इस्लामिक सामाजिक व्यवस्था के विरुद्ध संघर्ष करना पड़ा। सामान्य जनता में राजवंशों के उत्थान एवं पतन के प्रति विशेष रुचि नहीं थी।
हिन्दू समाज की जाति-व्यवस्था ने जनसामान्य को विभक्त कर रखा था। निम्न कही जाने वाली जातियों का जीवन बहुत दयनीय था। निम्न जाति के अधिकांश लोगों ने इस्लाम स्वीकार कर लिया। इसके विपरीत इस्लाम ने मुसलमानों को एकता के सूत्र में बाँधा तथा भारतीय शासकों के विरुद्ध लड़े जाने वाले युद्धों को जिहाद का जामा पहना दिया। मुस्लिम सुल्तानों ने कुरान के आधार पर शासन किया और इस्लाम का प्रसार किया।
के. एस. लाल ने लिखा है- ‘भारत में सुल्तानों ने अपनी धार्मिक नीति से हिन्दुओं की संख्या एक-तिहाई कर दी।’ सुल्तानों ने इस्लाम के प्रचारकों को हर प्रकार से सहयोग दिया।