गाजीपुर के राजा गणपति की रक्षापंक्ति टूट गई तथा मुगल सेना ने पंचपहाड़ के किले घुसकर राजा गणपति का सिर काटकर अकबर को भिजवा दिया। फतह खाँ बारहा का सिर भी काट लिया गया। अकबर ने इन दोनों सिरों को एक नाव में रखकर पटना भिजवा दिया, जहाँ ये सिर बंगाल के सुल्तान दाउद को भेंट किए गए।
अकबर ने ई.1574 में अपने शासन में कुछ बड़े बदलाव किए। गुजरात के प्रांतपति मुजफ्फर खाँ को आगरा बुलाकर उसे प्रधानमंत्री बना दिया तथा राजा टोडरमल को उसके नीचे वित्तमंत्री बनाया।
मुल्ला बदायूंनी ने लिखा है कि उसी वर्ष अकबर के आदेश से आगरा से अजमेर जाने वाली सड़क पर एक भव्य मदरसा तथा एक ऊंचा एवं भव्य महल बनाया गया ताकि अकबर आगरा से अजमेर जाते समय इस महल में पड़ाव कर सके। अकबर ने आगरा से अजमेर के बीच प्रत्येक एक कोस पर मजबूती से गड़ा एक स्तम्भ लगावाने के आदेश दिए।
ये स्तंभ गोल मीनार की शक्ल में बनाए गए थे जो आधार पर चौड़े तथा शिखर पर पतले थे। इन स्तंभों पर उन हजारों हिरणों, बारहसिंगों एवं अन्य पशुओं के सींग लगवाए गए जिन्हें अकबर तथा उसके अमीरों ने शिकार करके मार डाला था।
ये स्तम्भ वर्तमान समय में सड़कों पर लगाए जाने वाले मील के पत्थर अर्थात् माइलस्टोन की तरह कार्य करते थे। इनमें से अधिकांश स्तंभ अब नष्ट हो चुके हैं। फिर भी कुछ स्तंभ आज भी देखे जा सकते हैं। एक स्तंभ, जब अजमेर की तरफ से जयपुर नगर में प्रवेश करते हैं तो अच्छी अवस्था में खड़ा हुआ है।
इस मीनार पर लगे सींगों के निशान तो अब मिट गए हैं तथा उस पर सीमेंट का प्लास्टर करके भूरे रंग से पोत दिया गया है। मैंने आगरा से जयपुर के बीच में भी अपने बचपन में इनमें से कुछ स्तंभों को देखा था किंतु अब उनमें से एकाध ही दिखाई देता है।
शहंशाह के आदेश से इन मीनारों अर्थात् स्तंभों के पास कुएं खुदवाये गये। बाद में इन मीनारों के पास उद्यान लगाने एवं यात्रियों के लिये सराय बनाने के भी निर्देश दिये गये। अकबर के आदेश से निर्मित एक विश्राम स्थल आज भी अच्छी अवस्था में खड़ा है। इसी समय अकबर को अपना ध्यान बंगाल में चल रहे अफगान-विद्रोह पर केन्द्रित करना पड़ा। अकबर ने देखा कि खानखाना मुनीम खाँ बंगाल के विद्रोहियों को दबा नहीं पा रहा है तो अकबर ने ई.1574 में राजा टोडरमल को खानखाना मुनीम खाँ की सहायता करने के लिए बंगाल के अभियान पर भेज दिया। कुछ समय बाद बादशाह स्वयं भी अपने दो बड़े बेटों के साथ किश्तियों एवं जहाजों में बैठकर बंगाल के लिए चल दिया। उसकी सेना में इतनी सारी नावें एवं जहाज थे कि उनसे नदिया का जल ढक गया। मुल्ला बदायूंनी ने लिखा है कि जब बादशाह नदी से यात्रा कर रहा था, तब नाविकों ने पक्षियों एवं मछलियों की भाषा में गीत गाए जिन्हें सुनकर हवा की चिड़ियां एवं जल की मछलियां नाचने लगी। ऐसा दृश्य उत्पन्न हो गया जिसका वर्णन करना असंभव है। मार्ग में प्रत्येक दिन शहंशाह नाव से नीचे उतरकर शिकार खेलता, रात को लंगर डाला जाता। तब ज्ञान-विज्ञान की चर्चा एवं शायरी की महफिल होती।
मुल्ला बदायूंनी ने लिखा है- ‘कुछ दिन बाद बादशाह की नावों का काफिला प्रयाग पहुंचा। इसे उन दिनों इलाहाबास कहा जाता था, जहाँ गंगा एवं यमुना का संगम होता था। काफिर लोग इस स्थान को पवित्र मानते हैं। वे इस स्थान पर आकर पुनर्जन्म पाने के लिए अपने बिना दिमाग वाले सिर आरी के नीचे रख देते हैं, कुछ लोग जीभ को दो हिस्सों में फाड़ देते हैं, कुछ ऊँचे दरख्तों से गहरे पानी में कूदकर जहन्नुम को चले जाते हैं।’
मुल्ला लिखता है कि अकबर ने प्रयाग में बड़ी इमारत की नींव रखी तथा शहर का नाम बदलकर इलाहाबास से इलाहाबाद कर दिया। इलाहाबाद से चलकर अकबर पंचपहाड़ी नामक स्थान पर पहुंचा जो पटना से दो-तीन कोस की दूरी पर है। यहाँ खानखाना मुनीम खाँ अकबर की सेवा में उपस्थित हुआ तथा उसने अकबर के समक्ष बहुमूल्य उपहारों के डिब्बे प्रस्तुत किए।
यहाँ से अकबर ने खानखाना को गाजीपुर पर हमला करने भेजा जहाँ का राजा गणपति दो साल से खानखाना को अपने राज्य के निकट नहीं फटकने दे रहा था। अकबर ने खानखाना मुनीम खाँ के साथ तीन हजार घुड़सवार पूरे लाव-लश्कर एवं हथियारों के साथ नावों में सवार करके भिजवाए।
अकबर ने अपने एक अन्य सेनापति खानेआलम को भी बहुत बड़ी सेना देकर मुनीम खाँ की सहायता के लिए भेजा। मुल्ला बदायूंनी लिखता है कि इस सेना में घोड़े-घोड़ियां एवं इंसान इतनी अधिक संख्या में थे कि वे टिड्डीदल की तरह दिखाई देते थे।
खानखाना तथा खानेआलम दोनों ने गाजीपुर को जल एवं थल की तरफ से घेर लिया। दोनों तरफ से जंग शुरू हो गई। शहंशाह ने स्वयं को पानी वाली जंग के निरीक्षण की तरफ अपनी सेनाओं से कुछ दूरी पर रखा। उन दिनों राजा गणपति गाजीपुर का शासक था। वह अपनी सेना लेकर बड़ी बहादुरी से अकबर का सामना करने के लिए डट गया।
जिस दिन जंग आरम्भ हुई उस दिन बहुत कोहरा था इस कारण अकबर को युद्ध का कोई दृश्य दिखाई नहीं दिया। इसलिए अकबर ने दोपहर बाद अपनी कुछ नावें युद्ध के वास्तविक समाचार लेने के लिए भिजवाईं। उसी दिन खानेआलम ने अफगान नेता फतह खाँ बारहा को परास्त कर दिया।
इससे गाजीपुर के राजा गणपति की रक्षापंक्ति टूट गई तथा मुगल सेना ने पंचपहाड़ के किले घुसकर राजा का सिर काटकर अकबर को भिजवा दिया। फतह खाँ बारहा का सिर भी काट लिया गया। अकबर ने इन दोनों सिरों को एक नाव में रखकर पटना भिजवा दिया, जहाँ ये सिर बंगाल के सुल्तान दाउद को भेंट किए गए।
अगले दिन अकबर पटना के किले की स्थिति का अवलोकन करने के लिए पंचपहाड़ी पर चढ़ा। अफगानों ने मरने तक लड़ने का इरादा करके बंदूकें दागना जारी रखा जो अकबर के पड़ाव से तीन कोस की दूरी पर थीं।
मुल्ला बदायूंनी ने लिखा है कि दाऊद के पास बीस हजार घुड़सवार, अनगिनत जंगी हाथी और शक्तिशाली तोपखाना था किंतु वह अकबर की सेना से पराजित हो गया तथा रात के समय नाव में बैठकर बंगाल की राजधानी गौड़ की तरफ भाग गया।
उसका प्रधान सहायक श्रीधर जिसे विक्रमादित्य की उपाधि प्राप्त थी, दाऊद का खजाना एक नाव में रखकर उसके पीछे चला। दाऊद का सेनापति गूजर खाँ कर्रानी दाऊद के हाथियों को लेकर थल मार्ग से भागा।
उसके बहुत से सैनिक डर के मारे दरिया में कूदे और डूबकर मर गए। कुछ सैनिक टुकड़ियों ने पागलों की तरह किले की बुर्ज एवं दीवारों से कूदकर जान दे दी और खाई को लाशों से भर दिया। संकरी तंग गलियों में कुछ आदमी हाथियों के पैरों तले दब कर मर गए।
जब गूजर खाँ कर्रानी हाथियों को लेकर नदी पर बने पुल से निकलने लगा तो पुल टूट गया तथा बहुत से लोग नदी में डूबकर मर गए। शाम के समय अकबर को दाऊद के भाग जाने की सूचना मिली। इस पर अकबर ने पटना नगर में प्रवेश किया।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता की पुस्तक तीसरा मुगल जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर से!