Thursday, December 26, 2024
spot_img

औरंगजेब का मंदिर विनाश

औरंगजेब का मंदिर विनाश भारत के इतिहास की ऐसी क्रूर गाथा है जिसकी मिसाल दुनिया में और कहीं शायद ही देखने को मिले। उस मदांध एवं क्रूर बादशाह के आदेश से दिल्ली का लाल किला हिन्दू मंदिरों पर हथौड़े बरसाने लगा!

आगरा और दिल्ली के लाल किले जो किसी समय रक्कासाओं के घुंघुरुओं से झंकृत रहा करते थे, जहाँ तानसेन की स्वर लहरियां गूंजा करती थीं और अनारकलियों पर रौनकें रहा करती थीं, औरंगजेब का स्वामित्व पाकर समूचे हिन्दुस्तान पर आंखें तरेरने लगे और गुस्से से लाल-पीले तथा आग-बबूला होकर मंदिरों पर हथौड़े बरसाने लगे।

ये वही लाल किले थे जो अकबर, जहांगीर और शाहजहाँ के समय जयपुर, जोधपुर, बीकानेर और जैसलमेर की राजकुमारियों द्वारा लाई गई कृष्ण कन्हैया की मूर्तियों को बड़ी निष्ठा के साथ पूजते रहे थे और भोर होने पर प्रभातियां गा-गा कर कृष्ण-कन्हैया को जगाते रहे थे किंतु औरंगजेब का शासन क्या आया, लाल किले प्रभातियां गाना भूल गए।

सुबह-शाम बजने वाले नगाड़े और शहनाइयां के स्वर मानो औरंगजेब के भय से यमुनाजी के जल में समाधि ले चुके थे। अब लाल किलों के बाशिन्दे पांच वक्त की नमाज के अतिरिक्त और कुछ बोलने की हिम्मत नहीं रखते थे।

औरंगजेब का मानना था कि मुसलमानों के लिए यह उचित नहीं है कि उनकी दृष्टि किसी बुतखाने अर्थात् मंदिर पर पड़े। इसलिए बादशाह बनने से पहले ही औरंगजेब ने हिन्दू पूजा-स्थलों को गिरवाना तथा देव-मूर्तियों को भंग करना आरम्भ कर दिया था। जब वह गुजरात का सूबेदार था तब अहमदाबाद में चिन्तामणि का मन्दिर बनकर तैयार हुआ ही था। औरंगजेब ने उसे ध्वस्त करवाकर उसके स्थान पर मस्जिद बनवा दी।

पूरे आलेख के लिए देखें यह वी-ब्लॉग-

दिल्ली के लाल किले का स्वामी बनते ही औरंगजेब ने बिहार के मुगल सूबेदार को निर्देश दिए कि कटक तथा मेदिनीपुर के बीच में जितने भी हिन्दू मन्दिर हैं, उन्हें गिरवा दिया जाए। इनमें तिलकुटी का नवनिर्मित भव्य मंदिर भी सम्मिलित था। औरंगजेब के आदेश से सोमनाथ का मन्दिर भी ध्वस्त करवा दिया गया। ई.1665 में उसने आदेश दिए कि गुजरात का जो मंदिर तोड़ा गया था, उसे हिन्दुओं ने फिर से बनवा लिया है, उसे पुनः तोड़ा जाए।

ई.1666 में औरंगजेब ने मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर स्थित केशवराय मंदिर के पत्थर के उस कटरे अर्थात् रेलिंग को तुड़वाया जिसे दारा शिकोह ने बनवाया था। इस मंदिर का मूल निर्माण लगभग ई.पू.3500 में श्रीकृष्ण के प्रपौत्र बज्रनाथ द्वारा करवाया गया था। चैतन्य महाप्रभु ने मथुरा में इसी मंदिर के दर्शन किए थे।

To purchase this book, please click on photo.

28 अगस्त 1667 को आम्बेर नरेश मिर्जाराजा जयसिंह की मृत्यु हो गई। इसके 6 दिन बाद अर्थात् 3 सितम्बर 1667 को औरंगजेब ने सीदी फौलाद खाँ को निर्देश दिए के वह 100 बेलदार लगाकर 2,000 वर्ष पुराने दिल्ली के कालकाजी शक्तिपीठ तथा उसके क्षेत्र में आने वाले समस्त हिन्दू मंदिरों को नष्ट कर दे। यह मंदिर मिर्जाराजा जायसिंह के संरक्षण में था।

12 सितम्बर 1667 को सीदी फौलाद खाँ ने औरंगजेब को सूचना दी कि बादशाह के आदेशों की पूर्णतः पालना हो गई है। मंदिर तोड़ने के दौरान एक ब्राह्मण ने सीदी फौलाद खाँ पर तलवार से वार किए जिससे सीदी के शरीर पर तीन घाव लगे। सीदी ने उस ब्राह्मण का सिर पकड़ लिया। काली-भक्त ब्राह्मण को वहीं मार दिया गया किंतु दुष्ट सीदी बच गया।

औरंगजेब का मंदिर विनाश उसके सम्पूर्ण शासनकाल में जारी रहा। 9 अप्रेल 1669 को औरंगजेब ने दिल्ली के लाल किले से फरमान जारी किया कि मुगल सल्तनत के समस्त मंदिरों एवं हिन्दू विद्यालयों को नष्ट कर दिया जाए। इस आदेश के जारी होते ही सम्पूर्ण भारत में हा-हाकार मच गया। बादशाह के आदेश से उन सैंकड़ों और हजारों साल पुराने मंदिरों को ढहाया जाने लगा जिन्होंने भारतीय संस्कृति के निर्माण की भूमिका निभाई थी।

मई 1669 में सालेह बहादुर को राजपूताना में मोरेल नदी के तट पर स्थित मलारना गांव के सैंकड़ों साल पुराने शिव मंदिर को तोड़ने भेजा गया। इस मंदिर के खण्डहर आज भी राजस्थान के सवाईमाधोपुर जिले में देखे जा सकते हैं।

इसके बाद औरंगजेब की दृष्टि काशी विश्वनाथ के मंदिर पर गई। इस मंदिर का उल्लेख स्कंद पुराण सहित कई प्राचीन पुराणों में मिलता है। इस पौराणिक मंदिर को ई.1194 में दुष्ट कुतुबुद्दीन एबक ने तोड़ डाला था किंतु कुछ समय बाद ही गुजरात के एक व्यापारी ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था।

बाबर के भारत में आने से कुछ साल पहले ही सिकंदर लोदी ने गुजराती व्यापारी द्वारा बनवाए गए काशी-विश्वनाथ मंदिर को तोड़ दिया था। अकबर के शासनकाल में आम्बेर नरेश मानसिंह ने इस मंदिर को फिर से बनवाने की चेष्टा की किंतु हिन्दुओं ने मानसिंह के मंदिर को स्वीकार नहीं किया क्योंकि वह मुसलमान बादशाह अकबर का सम्बन्धी था।

इस पर ई.1585 में राजा टोडरमल ने अकबर से धन लेकर इस मंदिर का निर्माण करवाया। औरंगजेब के काल में इस मंदिर को पुनः तोड़ा गया तथा इस बार उसके स्थान पर मस्जिद बना दी गई। औरंगजेब ने काशी का नाम मुहम्मदाबाद रख दिया। जब मुगलों का राज चला गया तो मराठा रानी अहिल्याबाई होलकर ने इस मस्जिद के पास एक नया मंदिर बनवा दिया जिसे आजकल काशी विश्वनाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है।

औरंगजेब का मंदिर विनाश कभी भी रुका या थका नहीं। यही उसके जीवन का चरम लक्ष्य था। औरंगजेब अपने लक्ष्य को तो नहीं पा सका किंतु इस कार्य ने मुगल सल्तनत के विनाश के बीज बो दिए।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source