Thursday, November 21, 2024
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अध्याय -40 – भारत के शैलचित्र

कलाओं में चित्रकला सबसे ऊँची है जिसमें धर्म, अर्थ, काम एवम् मोक्ष की प्राप्ति होती है। अतः जिस घर में चित्रों की प्रतिष्ठा अधिक रहती है, वहाँ सदा मंगल की उपस्थिति मानी गई है।     

– विष्णुधर्मोत्तर पुराण।

भारत में चित्रकला के सबसे प्राचीन साक्ष्य आदिमकालीन गुफाओं से मिलते हैं। आदिम युगीन मानवों ने गुफाओं में गेरू, रामरज एवं खड़िया आदि से पशु, पक्षी, कीट-पतंग, छिपकली तथा मानव आकृतियों के साथ-साथ नृत्य, शिकार, कृषि, पशुपालन आदि दृश्यों का चित्रण किया है।

ये चित्र भारत के विभिन्न प्रांतों में सैंकड़ों स्थानों पर मिले हैं। मध्यप्रदेश के विंध्याचल की पहाड़ियों में स्थित भीमबेटका शैलाश्रयों में एक प्यालेनुमा चित्र बना हुआ है जिसे एक लाख वर्ष पुराना माना जाता है। कुछ स्थानों पर पुरापाषाण काल, मध्यपाषाण काल एवं नवपाषाण काल के चित्र एक ही गुफा में साथ-साथ मिले हैं।

जम्मू-काश्मीर प्रान्त से प्राप्त शैलचित्र

श्रीनगर की मदानी मस्जिद में चट्टान के एक टुकड़े पर 5000 साल पुराने शैलचित्र मिले हैं जिनमें एक ओर तारे बने हुए हैं तथा दूसरे छोर पर ड्रैगन जैसा सिर है। इस स्थान का मूल भित्तिचित्र धुंधला पड़ चुका है किंतु उसकी एक प्रति कश्मीर विश्वविद्यालय में सहेजकर रखी गई है।

इस भित्तिचित्र में भारतीय खगोल की एक दुर्लभ घटना का चित्रांकन किया गया है तथा इसमें दो सूर्य एक साथ दिखाए गए हैं। इस भित्तिचित्र में दिखाई दे रहा दूसरा सूर्य वास्तव में एक सुपरनोवा है जो किसी पुराने तारे के टूटने से उत्पन्न हुई ऊर्जा होती है। भीषण विस्फोट के बाद यह कई दिनों तक चमकदार दिखाई देता है जो दूसरे सूर्य के समान लगता है। इस चित्र में तारों के साथ सूर्य दिखाने का आशय है कि यह सुपरनोवा तब भी चमक रहा था जब रात्रि में तारे चमक रहे थे।

उत्तर प्रदेश से प्राप्त शैलचित्र

मिर्जापुर से 30 किलोमीटर दूर कैमूर की पहाड़ियों में सोन नदी की घाटी में एक सौ से अधिक चित्रित गुफाएं मिली हैं। एक पहाड़ी में पंखों से बनी पोषाक वाले मानव-चित्र मिले हैं जो खुरदरे पत्थर पर निर्मित हैं। मिर्जापुर क्षेत्र में विजयगढ़ के निकट घोड़मंगर में पूरक शैली में अंकित गैंडे के शिकार का चित्रांकन किया गया है। कोहवर, विजयगढ़, सौहरीरौप, सोरहोघाट, भल्डारिया, लिखुनियाँ, कंडाकोट, घोड़मंगर, खोडहवा आदि स्थानों से ई.पू.5000 के चित्र मिले हैं।

मोहरापथरी, बागापथरी, सहवाइयापथरी, लकहटपथरी नामक पहाड़ियों में भी आदिमयुगीन शैलचित्र मौजूद हैं। सोरहोघाट क्षेत्र में साही के आखेट, हाथ के छापे, मानव आकृतियां एवं पशुचित्र मौजूद हैं। एक गुफा में गेरूए रंग से बना सूअर के आखेट का चित्र बहुत प्रसिद्ध है। इसमें सूअर का आधा खुला हुआ मुंह उसकी पीड़ा को व्यक्त करता है। लिखुनियां की पहाड़ियों में आदिमयुगीन नृत्य एवं वादन के सुंदर शैलचित्र बने हुए हैं। लम्बे भाले लिए हुए कुछ घुड़सवारों को एक हथिनी को पकड़ने का प्रयास करते हुए दर्शाया गया है।

बांदा जिले के मानिकपुर में सरहाट, कर्परिया एवं करियाकुंड आदि स्थलों से मिले शैलचित्रों में तीन अश्वों का ओजपूर्ण अंकन किया गया है। एक सुसज्जित द्वार पर एक चोंचदार पुरुष बैठाया गया है जिससे यह अनुमान लगाया जाता है कि यह कोई तंत्र-मंत्र शाला रही होगी। करियाकुंड में बारहसिंगा का पीछा करते हुए धुनर्धरों को चित्रित किया गया है।

मलवा में एक ऐसी गाड़ी चित्रित है जिसमें पहिए नहीं हैं। इसमें एक व्यक्ति बैठा हुआ है और उसके दोनों ओर दो अनुचर धनुष-बाण एवं दण्ड लिए खड़े हैं। एक अन्य चित्र में तीन दण्डधारी अश्वारोही अपने-अपने घोड़े की रास थामे हुए एक ही दिशा में पैदल चल रहे हैं। इससे अनुमान होता है कि यह शैलचित्र उस समय का है जब उत्तर-वैदिक आर्य मिर्जापुर की पहाड़ियों तक फैल गए थे तथा उनमें राजन्य व्यवस्था स्प्ष्ट हो गई थी और शक्तिशाली राजा अस्तित्व में आ चुके थे।

दक्षिण भारत से प्राप्त शैलचित्र

दक्षिण भारत के रायचूर, कुप्पगल्लू (बेलारी), वसनवगुडी (बैंगलोर), तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, छोटा नागपुर से प्रागैतिहासिक युग के शैल-चित्रों का पता चला है। कर्नाटक में रायचूर के निकट स्थित रामायण कालीन ऋष्यमूक पर्वत के निकट से प्राप्त चित्रों का समय ई.पू. 3000 माना जाता है। मद्रास के निकट पूर्व-प्रस्तर युग के कलापूर्ण शिलाखण्ड का पता लगा है।

महाराष्ट्र से प्राप्त शैलचित्र

महाराष्ट्र के नरसिंहगढ़ की गुफाओं के चित्रों में चितकबरे हरिणों की खालों को सूखता हुआ दिखाया गया है।

उड़ीसा से प्राप्त शैलचित्र

उड़ीसा से भी प्रागैतिहासिक युग के पाषाण चित्रों का पता चला है।

मध्यप्रदेश से प्राप्त शैलचित्र

मध्यप्रदेश के आदमगढ़, रायगढ़, चक्रधरपुर, होशंगाबाद, सिंघनपुर आदि स्थानों से बड़ी संख्या में चित्रित शैलाश्रय प्राप्त हुए हैं। चक्रधरपुर से प्राप्त गुफाचित्रों को ई.पू.3000 का माना जाता है। पंचमढ़ी के निकट 5 मील के घेरे में लगभग 50 गुफाओं में प्रागैतिहासिक शैल-चित्र मिले हैं। यहीं पर महादेव पर्वत के निकट इमली खोह में सांभर के आखेट का दृश्य, भाडादेव गुफा की छत पर शेर के आखेट का दृश्य और महादेव बाजार में विशालाकाय बकरी का चित्र प्राप्त हुआ है।

लश्करिया खोह, सोनभद्रा, जम्बूद्वीप, निम्बूभोज, बनिया बेरी, माड़ादेव, नाकिया और झलाई आदि स्थानों से भी शैल-चित्रों से युक्त शैलाश्रय प्राप्त हुए हैं। यहाँ से पशु तथा आखेट चित्रों के अतिरिक्त शस्त्र-युद्ध, नृत्य एवं वादन के चित्र मिले हैं, दैनिक जीवन के दृश्य भी अंकित हैं। यहाँ के शैलचित्रों को तीन श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है-

(1.) पहले स्तर में तख्तीनुमा एवं डमरूनुमा मानवाकृतियों को बनाया गया है जिनके शारीरिक गठन को लहरदार रेखाओं से दिखाया गया है। इनमें लाल (गेरू) एवं पीले रंग की बहुलता है।

(2.) दूसरे स्तर के चित्रों में आकृतियों का रूप-विन्यास बेडौल, ओजपूर्ण एवं असंतुलित है। इनमें केवल शिकारी का ही चित्रांकन किया गया है।

(3.) तीसरे स्तर में आकृतियां कुछ स्वाभाविक हैं। इनमें घरेलू जन-जीवन के चित्र हैं। आखेट के लिए प्रस्थान करते हुए, शहद एकत्रित करते हुए, घुड़सवार योद्धा, वाद्ययंत्रों को बजाते हुए वादक, शस्त्रधारी सैनिक आदि का अंकन किया गया है। इन चित्रों में आकृतियों को लाल रेखाओं से बनाकर उनमें काले एवं सफेद रंगों को भरा गया है।

सरगुजा रियासत के जोगीमारा से लाल-पीले रंगों से बने रेंगते हुए कीड़े, पशु-पक्षी, मनुष्य तथा असुर आकृतियों के चित्रण मिले हैं। ग्वालियर से 150 किलोमीटर दूर मुरैना जिले में पहाड़गढ़ के निकट असान नदी के तट पर एक घाटी में लगभग ई.पू.10,000 से लेकर ई.पू.100 तक के शैलचित्र मिले हैं। इनमें मनुष्यों, घोड़ों, हाथी पर सवार योद्धाओं, भालों, धनुषों एवं तीरों के चित्र मिले हैं।

मध्यप्रदेश के रायगढ़ के निकट बौतालदा की गुफाओं के शैलचित्रों में हिरण, छिपकली, जंगली भैंसों आदि का अंकन है। एक दृश्य में मानवों का एक समूह भैंसे का शिकार करने के लिए उसे घेर कर खड़ा है। कुछ चित्र पालतू पशुओं, युद्धरत मनुष्यों एवं नृत्यरत मनुष्यों के हैं। ये चित्र गेरू तथा रामरज जैसे भूरे रंगों से बने हैं।

विंध्याचल की पहाड़ियों में भीमबेटका नामक स्थान पर 200 से अधिक गुफाओं में पूर्व-पाषाण कालीन मानव द्वारा बनाए गए के शैल-चित्र प्राप्त हुए हैं। इन चित्रों की संख्या कई हजार है। इनका काल एक लाख वर्ष पूर्व तक माना जाता है। भीमबेटका की गुफाओं में हिरण, बारहसिंगा, सूअर, रीछ जंगली भैंसे, हाथी, घोड़े एवं अश्वारोहियों का अंकन किया गया है।

एक चित्र में मनुष्य जंगली भैंसे को घेरकर नृत्य करते दिखाए गए हैं जिसे ‘शिकार-नृत्य’ की संज्ञा दी गई है। कुछ गुफाओं में उस काल के चित्र भी मिले हैं जब मानव ने खेती करना सीख लिया था। इनमें आखेटक, कृषक एवं ग्वाले चित्रित किए गए हैं।

मंदसौर जिले में मोरी नामक स्थान पर मिली 30 गुफाओं से मिले चित्रों में सूर्य, चक्र, स्वास्तिक, सर्बतोभद्र, अष्टदल-कमल एवं पीपल की पत्तियों का अंकन मिला है जिनसे स्पष्ट है कि इन गुफाओं में धार्मिक अनुष्ठान किए गए होंगे तथा ये चित्र उस समय के हैं जब सभ्यता ने पर्याप्त विकास कर लिया था तथा उत्तर-वैदिक आर्यों की बस्तियां यहाँ तक पहुँच गई थीं। कुछ चित्र बांस से बनाई गई गाड़ियों, नृत्यरत मानवों एवं चरवाहों के हैं।

होशंगाबाद जिले में नर्मदा नदी से ढाई किलोमीटर दूर आदमगढ़ पहाड़ी पर एक दर्जन से अधिक शैलाश्रयों में जंगली भैंसे, घोड़े, शस्त्रधारी अश्वारोही, हाथी सवार मनुष्य, आदि का अंकन हुआ है। जिराफ का एक समूह एवं चार धनुर्धारी दिखाए गए हैं जिनका अंकन क्षेपन विधि से किया गया है। अर्थात् किसी लकड़ी की तख्ती पर आकृतियां काट कर उन्हें गुफा की दीवार से सटा कर ऊपर से रंग लगाया गया है जिससे दीवार पर वे आकृतियां अंकित हो गई हैं।

आदमगढ़ की एक गुफा में एक हाथी पर चढ़े हुए मनुष्यों को जंगली भैंसे का शिकार करते हुए दिखाया गया है। एक अन्य चित्र में गहरी पीली रखाओं से एक बारहसिंगे को छलांग लगाते हुए बनाया गया है। मध्यप्रदेश के रायसेन, रीवा, पन्ना, छतरपुर, कटनी, सागर, नरसिंहपुर, बस्तर, ग्वालियर एवं चम्बल घाटी में कई स्थानों से शैलचित्र मिले हैं। भोपाल क्षेत्र में धरमपुरी गुहा मंदिर, शिमलारिल, बरखेड़ा सांची, उदयगिरि आदि में भी आदिम चित्रकला प्राप्त हुई है। शिवपुरी के पास भी शैलचित्र मिले हैं।

मांठ नदी के किनारे सिंघनपुर नामक गांव से पचास चित्रित गुफाएं मिली हैं। एक गुफा के द्वार पर कंगारू जैसे किसी पशु का अंकन किया गया है। यहाँ से अश्व, हिरण, बारहसिंगा, जंगली भैंसा, सांड, सूंड उठाये हुए हाथी, खरगोश आदि के चित्र भी मिले हैं। एक गुफा की दीवार पर जंगली सांड को पकड़ने का दृश्य अंकित है। कुछ पशु हवा में उछाले गए हैं तो कुछ धरती पर गिरे पड़े हैं। इसी दीवार पर एक अन्य चित्र में घायल भैंसा बहुत सारे तीरों से बिंधा हुआ दिखाया गया है। उसके चारों ओर भाले लिए हुए शिकारियों का दल खड़ा है।

राजस्थान के शैलाश्रयों से प्राप्त चित्र

राजस्थान में शेखवाटी क्षेत्र के अजीतगढ़, डोकन, सोहनपुरा, गुढागौड़जी आदि स्थानों से शैलचित्र प्राप्त हुए हैं। रावतभाटा से 33 कलिोमीटर दूर दरा अभ्यारण्य में तिपटिया नामक स्थान पर प्रागैतिहासिक काल के शैल-चित्र मिले हैं। धरती से लगभग 500 फुट ऊँचा तीन मंजिल वाला शैलाश्रय है जिसकी दूसरी एवं तीसरी मंजिलें चित्रित हैं। उत्तरपाषाण कालीन मानवों द्वारा चित्रित इन शैल-चित्रों में बैल, गाय, हिरण, सूअर एवं काल्पनिक पशुओं के चित्रों का अंकन किया गया है।

इन चित्रों का रंग गहरा कत्थई तथा लाल है और ये रेखाओं के माध्यम से बनाए गए हैं। प्रागैतिहासिक काल के अनेक चित्रों के ऊपर ही ऐतिहासिक काल के चित्र भी बना दिए गए हैं। इस काल के चित्रों में देवी-देवता, योद्धा, घुड़सवार एवं ऊँट सवार प्रमुख हैं। ये पीले रंग तथा गेरू से बने हैं। इस काल के चित्रों में गौपालक द्वारा गायों को चराने, कहारों द्वारा वधू की डोली ले जाने एवं एक नृत्यांगना द्वारा नृत्य करने के दृश्य भी अंकित हैं जिनसे स्पष्ट है कि इस काल में मानव सभ्यता काफी आगे बढ़ चुकी थी।

आहू नदी के तट पर झालावाड़ जिले में आमझीरी नाला के निकट कई शैलाश्रय खोजे गए हैं जिनमें प्रस्तर युगीन मानवों द्वारा बनाई गई चित्रशाला देखी जा सकती है। इन चित्रों में बैल, हिरण, बकरी, बारहसिंघा, नीलगाय, चीता, मानव आकृतियां, धनुष-बाण, पशु-शिकार के दृश्य आदि अंकित हैं।

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