हुमायूँ अपनी बेगम हमीदा बानो एवं 20-22 अमीरों के साथ हिन्दुस्तान, बलोचिस्तान, अफगानिस्तान, सीस्तान तथा खुरासान को पार करके अनेक तकलीफें झेलता हुआ फारस पहुंचा जहाँ फारस के शाह तहमास्प ने हुमायूँ का जोरदार स्वागत किया तथा फारस के शाह की बेगम ने हुमायूँ की बेगम हमीदा बानो के सम्मान में शाही भोज का आयोजन किया।
गुलबदन बेगम ने लिखा है कि रौशन कोका बादशाह हुमायूँ का स्वामिभक्त एवं पुराना सेवक था किंतु उसने संकट में बादशाह के साथ बड़ी गद्दारी की। हुमायूँ के कपड़ों में हर समय एक थैली छिपी हुई रहती है जिसमें हीरे भरे हुए रहते हैं। इस बात को केवल दो ही व्यक्ति जानते थे एक तो हुमायूँ स्वयं और दूसरी हमीदा बानो। यदि बादशाह कहीं जाता था तो हीरों से भरी हुई यह थैली हमीदा बानो बेगम को देकर जाता था।
एक दिन हमीदा बानो सिर धोने गई तो उस थैली को रूमाल में लपेटकर बादशाह के पलंग के सिराहने रख गई। रौशन कोका ने रूमाल में लिपटी हुई थैली को देख लिया और उसे खोलकर उसमें से पांच लाल चुराकर ख्वाजा गाजी को सौंप दिए। रौशन कोका ने कहा कि तुम ये लाल छिपाकर रख दो, समय मिलने पर हम इन्हें कहीं बेच देंगे।
उसी बीच में बादशाह आ गया और उसने वह थैली अपने पास रख ली। जब हमीदा बानू बेगम सिर धोकर आई तो बादशाह ने वह थैली बेगम को दे दी। बेगम ने थैली हाथ में लेते ही जान लिया कि थैली हल्की है और उसने यह बात उसी समय बादशाह को बता दी। बादशाह ने चकित होकर कहा कि इस बात का क्या अर्थ है क्योंकि इस थैली के बारे में मेरे और आपके सिवाय कोई नहीं जानता! लाल कौन चुराकर ले गया? उस काल में लाल का आशय एक कीमती हीरे से होता था।
हमीदा बानो ने अपने भाई ख्वाजा मुअज्जम से कहा कि ऐसी घटना हो गई है। यदि तुम अपने भाई होने के कर्त्तव्य का निर्वहन करते हुए उन हीरों के बारे में इस प्रकार पता लगा सको कि इस बात को कोई जान न पाए तो मेरी लाज बचेगी अन्यथा मैं जब तक जीवित रहूंगी, बादशाह के सामने लज्जित रहूंगी। इस पर ख्वाजा मुअज्जम ने कहा कि मेरा बादशाह से इतना घनिष्ठ सम्बन्ध है फिर भी मैं एक मरियल टट्टू पर चलता हूँ और मेरी सामर्थ्य एक नया टट्टू खरीदने की नहीं है किंतु रौशन कोका तथा ख्वाजा गाजी ने अपने लिए अच्छी किस्म के नए घोड़े खरीदे हैं।
हालांकि अभी तक उन्होंने घोड़े के मालिक को कीमत नहीं चुकाई है, फिर भी उनके पास घोड़ों की कीमत चुकाने का कोई न कोई प्रबंध अवश्य है। हमीदा बानू ने ख्वाजा मुअज्जम से कहा कि तुम इस बात की जांच करके सच्चाई का पता लगाओ। ख्वाजा ने हमीदा से कहा कि माह चीचम तुम यह बात किसी से मत कहना, मैं इस सच्चाई का पता लगा कर रहूंगा। संभवतः माह चीचम तुर्की, अरबी या फारसी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ आदरणीय अथवा प्यारी बहन जैसा कुछ होता होगा!
ख्वाजा मुअज्जम घोड़े के उस व्यापारी के पास गया जिन्होंने रौशन कोका तथा ख्वाजा गाजी को घोड़े बेचे थे। ख्वाजा मुअज्जम ने उससे पूछा कि तुम्हें इन घोड़ों का कितना दाम मिला है? इस पर व्यापारी ने कहा कि अभी दाम नहीं मिला है किंतु उन दोनों ने मुझे वचन दिया है कि वे इन घोड़ों के बदले में मुझे लाल लाकर देंगे।
इसके बाद ख्वाजा मुअज्जम ख्वाजा गाजी के डेरे पर गया और उसके सेवक से कहा कि तुम्हारे मालिक के कपड़े या गठरी कहाँ हैं? सेवक ने कहा कि मेरे मालिक के पास गठरी आदि नहीं है, केवल एक लम्बी टोपी है जिसे वह सोते समय कभी सिर के नीचे तो कभी बगल में रखते हैं। ख्वाजा मुअज्जम सारी बात समझ गया और उसने बादशाह हुमायूँ के पास जाकर उसे यह सारी बात बता दी।
ख्वाजा मुअज्जम ने बादशाह से कहा कि मैं आपके सामने ख्वाजा गाजी से हंसी ठिठोली करूंगा किंतु आप मुझे कुछ मत कहना। हुमायूँ ने यह बात मान ली। अगले दिन जब ख्वाजा गाजी हुमायूँ के समक्ष दीवानखाने में आकर बैठा तो ख्वाजा मुअज्जम ख्वाजा गाजी के साथ हंसी-ठिठोली करने लगा और ताने कसने लगा।
ख्वाजा गाजी कुछ देर तक तो ख्वाजा मुअज्जम की हरकतों को सहन करता रहा किंतु अंत में तंग आकर हुमायूँ के समक्ष विनय प्रदर्शित करते हुए बोला कि यह आयु में मुझसे बहुत छोटा है किंतु यह आपके सामने ही मुझसे हंसी-ठिठोली कर रहा है और ऐसी छिछोरी बातें कर रहा है!
इस पर हुमायूँ ने कहा कि यह आयु में छोटा है इसलिए इसे अक्ल नहीं है कि बड़ों के साथ किस अदब से पेश आना चाहिए। आप बिल्कुल भी चिंता नहीं करें।
इसी बीच ख्वाजा मुअज्जम ने ख्वाजा गाजी की टोपी पर हाथ मारा। इससे टोपी गिर गई और ख्वाजा मुअज्जम ने लपक कर उठा ली। टोपी के गिरते ही ख्वाजा गाजी परेशान हो गया किंतु ख्वाजा मुअज्जम ने टोपी में हाथ डालकर उसमें से लाल निकाल लिए। ख्वाजा मुअज्जम ने वे लाल बादशाह को दे दिए।
जब ख्वाजा ने देखा कि उसकी चोरी पकड़ी गई तो उसने उसी समय दीवानखाना छोड़ दिया और रौशन कोका को अपने साथ लेकर फारस के शाह तहमास्प के पास चला गया। उन दोनों ने तहमास्प से हुमायूँ की बहुत बुराई की तथा अनेक गोपनीय बातें बताकर शाह का विश्वास जीत लिया।
उन्होंने शाह को बताया कि हुमायूँ के पास खूब सारे लाल, मानिक और मोती हैं, वह निर्धन नहीं है। इस पर तहमास्प का मन हुमायूँ की तरफ से फिर गया और उसके व्यवहार में परिवर्तन आ गया। कुछ ही दिनों में हुमायूँ भी इस बात को ताड़ गया।
इस पर हुमायूँ ने अपनी हीरों की थैली तहमास्प के पास भेज दी और उससे कहलवाया कि मेरे पास इनके अतिरिक्त कुछ नहीं है। यदि आप इनके लिए मन मैला करते हैं तो ये आप रख लें। हुमायूँ की यह बात सुनकर तहमास्प को बड़ी ग्लानि हुई और उसने हुमायूँ से कहा कि मेरे मन में रौशन कोका तथा ख्वाजा गाजी ने दुश्मनी भरी बातें भर दी थीं। उन्होंने हमको आपसे पराया कर दिया।
शाह ने रौशन कोका तथा ख्वाजा गाजी के लाल छीनकर उन्हें जेल में बंद कर दिया तथा दोनों बादशाहों में फिर से दोस्ती हो गई। गुलबदन बेगम ने लिखा है कि इसके बाद जितने भी दिन हुमायूँ शाह के महल में रहा, शाह उसके लिए प्रतिदिन कीमती उपहार भेजता रहा।
– डॉ. मोहनलाल गुप्ता
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