बादशाह ने दरबार बर्खास्त करने का आदेश दिया और खानखाना को संकेत से अपने साथ आने के लिये कह कर उठ खड़ा हुआ। एकांत पाकर बादशाह ने खानखाना से कहा- ‘खानखाना! तुम्हें एक जिम्मेदारी सौंपता हूँ। मियाँ शाहबाज खाँ और राजा टोडरमल के बीच कुछ पैसों को लेकर झगड़ा है। तुम्हें पता लगाना है कि सच्चाई क्या है और गलती किसकी है? ज्यादातर अमीर इस झगड़े को लेकर दो खेमों में बंट गये हैं। चगताई अमीर शाहबाजखाँ के पक्ष में हैं और हिन्दू सरदार राजा टोडरमल के पक्ष में। जिससे दरबार का वातावरण खराब हो रहा है। किसी तरह यह बखेड़ा निबटाओ।’
रहीम को लगा कि बादशाह ने उसे एक अलग तरह के रणक्षेत्र में नियुक्त कर दिया है। इसमें तलवारें नहीं चलनी हैं, दोनों ओर के तर्कों और दोनों ओर की स्वामिभक्तियों की बर्छियां चलनी हैं। सबसे विचित्र बात तो यह है कि दोनों ही पक्षों द्वारा चलाई गयी बर्छियों का वार खानखाना को अपनी छाती पर झेलना है। एक तरफ मुगल सल्तनत का वकीले मुतलक है तो दूसरी ओर सल्तनत का महत्वपूर्ण सेनापति। स्वयं बादशाह तक इन दोनों में से किसी को नाराज नहीं करना चाहता। भले ही दोनों ओर के पक्ष में से कोई भी हारे या जीते किंतु जरा सी भी चूक होते ही खानखाना की तो अकारण ही पराजय हो जानी है।
बादशाह के आदेश से खानखाना ने इस चुनौती को स्वीकार कर लिया। अकबर के आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब कुछ ही दिनों बाद राजा टोडरमल और शाहबाजखाँ ने एक साथ बादशाह की सेवा में हाजिर होकर निवेदन किया कि अब उनका हिसाब साफ हो गया है और उनके बीच किसी तरह का विवाद नहीं है।
बादशाह ने उन दोनों की वे दरख्वास्तें उन्हें वापिस लौटा दीं जो उन्होंने एक दूसरे के विरुद्ध लिखकर बादशाह को दी थीं। उनके जाने के बाद बादशाह ने खानखाना को बुलाकर पूछा- ‘यह क्या चमत्कार है खानखाना? कई महीनों से चला आ रहा यह झगड़ा अचानक ही कैसे निबट गया?’
– ‘जहाँपनाह! मैंने जब दोनों पक्षों से बात की तो मुझे अनुमान हुआ कि राजा टोडर मल मूंछ के लिये और शाहबाजखाँ पैसों के लिये लड़ रहा था। इसलिये मैंने झगड़ा निबटाने के लिये इस तरह की योजना बनाई कि शाहबाजखाँ के पास पैसा रह जाये और राजा टोडरमल के पास मूंछ।
– ‘गलती पर कौन था?’
– ‘गलती शाहबाजखाँ की थी किंतु वह किसी भी कीमत पर राजा टोडर मल को धन लौटाने के लिये तैयार नहीं था। जब मैंने शाहबाजखाँ से कहा कि यदि वह शेख अबुलफजल आदि अमीरों की उपस्थिति में अपनी गलती कबूल करे तो राजा टोडरमल उससे एक भी पैसा नहीं लेगा और यदि शाहबाजखाँ ऐसा नहीं करेगा तो उसे बादशाही कोप का शिकार होना पड़ेगा। इस पर शाहबाजखाँ तैयार हो गया।’
– ‘और राजा टोडर मल, वह कैसे माना?’
– ‘मैंने राजा टोडरमल से कहा कि यदि वह अपना पैसा छोड़ने को तैयार हो जाये तो शाहबाज खाँ शेख अबुल फजल की उपस्थिति में अपनी गलती मान लेगा। इससे राजा टोडरमल को पैसा भले ही न मिले किंतु बादशाह की निगाह में उसकी इज्जत बढ़ जायेगी। यह सुनकर राजा टोडरमल भी तैयार हो गया।’
– ‘तुमने कमाल कर दिया खानखाना। तुम तो वकील होने के लायक हो। जिस बखेड़े को मैं स्वयं भी प्रयास करके नहीं निबटा सका वह झगड़ा तुमने जरा सी युक्ति से निबटा दिया।
भाग्य की बात! इस घटना के कुछ ही दिनों बाद साम्राज्य के वकीले मुतलक राजा टोडरमल की मृत्यु हो गयी। बादशाह ने खानखाना अब्दुर्रहीम को राज्य का नया वकीले मुतलक नियुक्त कर दिया। उन दिनों यह पद राज्य का सबसे बड़ा पद था। वकीले मुतलक बादशाह का प्रतिनिधि समझा जाता था। उसे कोई भी आदेश लिखित में देने की आवश्यकता नहीं थी। उसका आदेश बादशाह का आदेश होता था।
जब वकीले मुतलक अब्दुर्रहीम चौंतीस वर्ष का हुआ तो उसके घर में एक के बाद एक तीन बेटों का जन्म हुआ। बादशाह स्वयं वकीले मुतलक के महलों में जाकर उसे पुत्रों के जन्म की बधाई देकर आया। यहाँ तक कि बादशाह ने स्वयं ही उनका नामकरण भी किया जो ऐरच, दाराब और कारन नाम से जाने गये। ये तीनों पुत्र अकबर की धात्री माहमअनगा की पुत्री माहबानू से हुए थे। माहबानू से ही जाना बेगम और एक अन्य पुत्री का जन्म हुआ था।
बाद में रहीम को दो बेटे और प्राप्त हुए जिनके नाम रहमानदाद और अमरूल्लाह रखे गये। रहमनादाद का जन्म सौधा जाति की एक स्त्री से हुआ था और मिर्जा अमरूल्लाह एक दासी के गर्भ से उत्पन्न हुआ था।