जब बारदोली के किसानों ने सरकार की बात नहीं मानी तथा बढ़ा हुआ कर नहीं चुकाता तो सरकार ने किसानों पर अत्याचार बढ़ा दिए। इस पर सरदार पटेल ने गांवों का दौरा बढ़ा दिया। लोग सरदार पटेल का सम्मान करने के लिए आतुर रहते। फटे चीथड़ों वाली ग्रामीण महिलाएं पटेल के भाल पर तिलक लगाती थीं!
किसानों पर की गई ज्यादतियों के उपरांत भी जब बारदोली का आंदोलन शिथिल नहीं हुआ तो अंग्रेजों की सरकार ने दो नये उपाय किये। उन्होंने गांवों में गुण्डों की टोलियां भेजना आरम्भ किया जो गांवों में जाकर लोगों के साथ मारपीट करती तथा औरतों के साथ बदतमीजी करती।
साथ ही सरकार ने किसानों के पशुओं को खूंटों से बांधकर उन्हें चारे-पानी से वंचित कर दिया। सरकार का विश्वास था कि जब किसान अपने पशुओं को खूंटों से भूखा-प्यासा बंधा देखेंगे तो टूट जायेंगे। सरदार पटेल को इस अत्याचार का तोड़ ढूंढना था।
उन्होंने लगान वसूल करने वाले पटेलों और तलातियों से अपील की कि वे अपने भाइयों पर हो रहे अत्याचारों में भागीदार न बनें तथा अपने पदों का त्याग कर दें। सरदार पटेल की इस अपील ने सूखे जंगल में आग की भूमिका निभाई। बारदोली तहसील के 90 में 69 पटेलों तथा 35 तलातियों ने तत्काल अपने पद त्याग दिये और किसानों के साथ हो गये। नगरों में रहने वाली जनता की सहानुभूति भी पूरी तरह किसानों के साथ हो गई। जब सरकारी कारिंदे कुर्की के लिये गांव जाना चाहते तो कोई उन्हें अपनी सवारी नहीं देता था।
नाइयों ने सरकारी कारिंदो के बाल काटने और दाढ़ी छीलनी बंद कर दी। जिन लोगों ने किसानों के मवेशी तथा जमीनें खरीदी थीं, उनके घरों में काम करने वाले नौकरों ने काम करना बंद कर दिया। भले ही वह कितने ही रुपये देने का लालच क्यों न दे! जब दोनों ही पक्ष अपने-अपने मंतव्य पर अड़े रहे तो बम्बई धारासभा के सदस्य कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी ने बम्बई के गवर्नर को पत्र लिखकर आग्रह किया कि वह बारदोली के किसानों की समस्या सुलझाये किंतु गवर्नर पर इस पत्र का कोई प्रभाव नहीं हुआ।
इसके बाद मुंशी स्वयं बारदोली आये और उन्होंने सरकार द्वारा किये जा रहे अत्याचारों को स्वयं अपनी आंखों से देखा। वे सरदार पटेल के काम करने के तरीके को देखकर हैरान रह गये। मुंशी ने गवर्नर को तीखी भाषा में एक पत्र लिखा-
‘आपको भले ही यह रिपोर्ट मिली हो कि किसान आंदोलन बाहर से थोपा गया है किंतु वास्तविकता यह है कि आंदोलन वास्तविक है और रिपोर्ट झूठी।
अपने दुधारू पशुओं को बचाने के लिये विगत तीन महीनों से यहाँ स्त्री-पुरुष और बच्चे, अपने पशुओं के साथ अंधेरे, गोबर तथा बदबू से भरी कोठरियों में पड़े हैं। इस तरह की बुरी स्थिति का उदाहरण मध्यकाल में भी नहीं मिल सकता है। सारे जोर-जुल्म सहकर भी किसान, सरकारी दमन का मजाक ही उड़ा रहे हैं।
सरदार पटेल उनके एकछत्र नेता हैं, वे जहाँ भी जाते हैं, लोग सरदार पटेल का सम्मान करते हैं तथा उनके स्वागत को उमड़ पड़ते हैं। फटे चीथड़ों में लिपटी गांव की बेहाल स्त्रियां पटेल के माथे पर तिलक लगाकर उनका अभिनंदन करती हैं। वल्लभभाई के आदेश के बिना बारदोली में कोई काम नहीं होता। मैं आपको यह सब इसलिये लिख रहा हूँ कि आपको वास्तविकता का ज्ञान हो सके।’
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता