प्रतापराव गूजर शिवाजी के बड़े सेनापतियों में से था जिसे बीजापुर के सेनापति बहलोल खाँ ने धोखे से मारा। उसकी मृत्यु से शिवाजी को बहुत बड़ी क्षति पहुंची।
गोलकुण्डा के शासक की मृत्यु
21 अप्रेल 1672 को गोलकुण्डा के शासक अब्दुल्लाह कुतुबशाह की मृत्यु हो गई एवं उसके स्थान पर अबुल हसन कुतुबशाह गोलकुण्डा का सुल्तान हुआ। उस पर सूफियों का प्रभाव था और वह सुन्नी मुसलमानों की कट्टरता को उचित नहीं मानता था। उसने अपने राज्य में हिन्दू मंत्रियों एवं अधिकारियों को समान रूप से नियुक्त किया। उसका प्रधानमंत्री अदन्ना, ब्राह्मण था।
बीजापुर के शासक की मृत्यु
24 नवम्बर 1672 को बीजापुर के शासक अली आदिलशाह की मृत्यु हो गई तथा 4 साल का बालक सिकंदर आदिल शाह बीजापुर का नया सुल्तान बना। इससे बीजापुर के अमीर एवं सूबेदार परस्पर कलह में उलझ गए।
शिवाजी का काम आसान
गोलकुण्डा और बीजापुर में पुराने शासकों के मर जाने से शिवाजी का काम सरल हो गया। कुतुबशाह द्वारा हिन्दुओं के प्रति अच्छा बर्ताव किए जाने से शिवाजी ने कुतुबशाह के साथ जीवन भर मित्रता पूर्ण व्यवहार किया।
पन्हाला दुर्ग पर शिवाजी का अधिकार
जब जयसिंह शिवाजी के विरुद्ध कार्यवाही करने आया था तब सिद्दी जौहर ने पन्हाला दुर्ग पर अधिकार कर लिया था। तब से यह दुर्ग बीजापुर के अधिकार में था। शिवाजी ने पन्हाला दुर्ग को पुनः अधिकार में लेने का निर्णय किया तथा राजापुर में एक नई सेना तैयार करके अन्नाजी दत्तो को यह काम सौंपा।
कौंडाजी रावलेकर को उसका सहायक नियुक्त किया। इन दोनों सेनापतियों ने पन्हाला दुर्ग पर गुरिल्ला पद्धति से छापा मारा। कौंडाजी वेश बदलकर रात के समय दुर्ग में प्रवेश कर गया तथा बीजापुर के कुछ सैनिकों को रुपया देकर अपने पक्ष में कर लिया। रात्रि में ही अन्नाजी दत्तो अपने चुने हुए 50-60 सैनिकों के साथ रस्सी के सहारे दुर्ग पर चढ़ गया।
कोंडाजी के आदमियों ने दुर्ग का फाटक खोल दिया जिससे पास में छिपी हुई मराठा सेना प्रवेश कर गई। इस सेना ने दुर्ग के मुख्य रक्षक तथा उसके बहुत से सैनिकों को नींद में ही काट डाला। बचे हुए सिपाही भाग खड़े हुए। दुर्ग पर मराठों का अधिकार हो गया। कुछ सिपाही भी उनके हाथ लगे जिन्हें पकड़कर दुर्ग में छिपे हुए कोष का पता लगाया गया। शिवाजी ने दुर्ग में पहुंचकर कोष अपने अधिकार में लिया तथा दुर्ग पर अपने सिपाही नियुक्त कर दिए।
बहलोल खाँ द्वारा प्रतापराव गूजर से धोखा
बीजापुर के वजीर खवास खाँ को जब पन्हाला दुर्ग हाथ से निकलने का समाचार मिला तो उसने बहलोल खाँ के नेतृत्व में एक बड़ी सेना शिवाजी के विरुद्ध भेजी। इस पर शिवाजी ने अपने सेनापति प्रतापराव गूजर को निर्देश दिए कि वह बहलोल खाँ को मार्ग में ही रास्ता रोककर समाप्त करे।
प्रतापराव गूजर मराठों की बड़ी सेना लेकर बहलोल खाँ के सामने चला और छापामार पद्धति का प्रयोग करते हुए बहलोल खाँ की सेना को चारों तरफ से घेरकर मारना शुरु कर दिया। बीजापुरियों की जान पर बन आई तथा सैंकड़ों सैनिक मार डाले गए। उनकी रसद काट दी गई जिससे सैनिक तथा घोड़े भूखे मरने लगे।
इस पर बहलोल खाँ ने प्रतापराव के समक्ष करुण पुकार लगाई कि उसकी जान बख्शी जाए तथा बीजापुर के सैनिकों को जीवित लौटने की अनुमति दी जाए। प्रतापराव पिघल गया और उसने बीजापुर की सेना को लौटने की अनुमति दे दी। जब बीजापुर की सेना लौट गई तो मराठे अपने शिविर में आराम करने लगे।
बहलोल खाँ धोखेबाज निकला। वह कुछ दूर जाकर रास्ते से ही लौट आया तथा सोती हुई मराठा सेना पर धावा बोल दिया। बहुत सारे मराठा सैनिक मार डाले गए तथा शेष को भागकर जान बचानी पड़ी।
प्रतापराव गूजर का बलिदान
जब शिवाजी को इस घटना का पता चला तो उन्होंने प्रतापराव गूजर को पत्र लिखकर फटकार लगाई कि जब तक बहलोल खाँ परास्त नहीं हो, तब तक लौटकर मुंह दिखाने की आवश्यकता नहीं है। प्रतापराव ने बहलोल के पीछे जाने की बजाय बीजापुर के समृद्ध नगर हुबली पर धावा बोलने की योजना बनाई ताकि बहलोल खाँ स्वयं ही लौट कर आ जाए।
जब बहलोल खाँ को यह समाचार मिला तो वह बीजापुर जाने की बजाय हुबली की तरफ मुड़ गया। मार्ग में शर्जा खाँ भी अपनी सेना लेकर आ मिला। प्रतापराव, शत्रु द्वारा किए गए धोखे और स्वामी द्वारा किए गए अपमान की आग में जल रहा था। वह किसी भी तरह से बदला लेना चाहता था।
24 फरवरी 1674 को उसे गुप्तचरों ने एक स्थान पर बहलोल खाँ के होने की सूचना दी। प्रतापराव आगा-पीछा सोचे बिना ही अपने 7-8 अंगरक्षकों को साथ लेकर बहलोल खाँ को मारने चल दिया। बहलोल खाँ के साथ उस समय पूरी सेना थी। उन्होंने प्रतापराव तथा उसके अंगरक्षकों को गाजर-मूली की तरह काट दिया।
प्रतापराव का सहायक आनंदराव मराठा सेना लेकर कुछ ही पीछे चल रहा था। उसे प्रतापराव के बलिदान के बारे में ज्ञात हुआ तो वह सेना लेकर बहलोल खाँ को मारने के लिए दौड़ा किंतु बहलोल खाँ जान बचाकर भाग गया। आनंदराव ने बहलोल खाँ के गृहनगर सम्पगांव को लूट लिया तथा डेढ़ लाख होन लेकर लौट आया।
शिवाजी को प्रतापराव गूजर के बलिदान के बारे में ज्ञात हुआ तो उन्होंने स्वयं को इसके लिए दोषी ठहराया तथा उसके परिवार को सांत्वना देने के लिए प्रतापराव की पुत्री का विवाह अपने पुत्र राजाराम के साथ करवाया।
-डॉ. मोहन लाल गुप्ता