सदियों से ईरानी खून में तुर्कों, मंगोलों, तातारों, हब्शियों और अरबों का खून आ-आकर मिलने से ईरानी खून का सौंदर्य बुरी तरह से प्रभावित हुआ। जिन ईरानी औरतों के सुंदर मुख को निकट से देखने के लिये सूर्य की किरणें नील आकाश के असीम सरोवर में बिना विचारे कूद पड़ती थीं, उन ईरानी औरतों के चेहरे-मोहरे अब पहले जैसे न रह गये थे फिर भी ईरानी खून का सौंदर्य कहीं-कहीं अपनी झलक पूरे ठाठ के साथ दिखाता ही था। तब ऐसा लगता था मानो कुदरत ने कोई करिश्मा किया है। सलीमा बेगम कुदरत का ऐसा ही करिश्मा थी।
मध्य एशिया में तूरान एक प्रसिद्ध देश हुआ है। जिन दिनों वहाँ बाबर का शासन था उन दिनों ख्वाजा हसन नाम का एक आदमी ईरानी समाज में बहुत ही आदरणीय माना जाता था। उसका बेटा अलादउद्दीन भी तूरान में पूज्य समझा जाता था। बाबर ने अलादउद्दीन की सच्चरित्रता से प्रभावित होकर अपनी बेटी गुलरुख का विवाह अलादउद्दीन के बेटे मिरजा नूरूद्दीन से कर दिया था। सलीमा बेगम इसी विवाह का परिणाम थी।
अकबर अपनी बुआ की बेटी सलीमा बेगम से यद्यपि उम्र में छोटा था किंतु वह सलीमा बेगम पर जान लुटाता था और उससे विवाह करना चाहता था लेकिन दूसरी ओर सलीमा बेगम खुरदरे चेहरे वाले जिद्दी और अनपढ़ अकबर को बिल्कुल भी पसंद नहीं करती थी। सलीमा बेगम अपने दादा की तरह सुशिक्षित और अनुशासन पसंद सुंदर सुघड़ लड़की थी जो काव्य रचना भी खूब करती थी जबकि अकबर अपने दादा बाबर की तरह अक्खड़, झगड़ालू और निरंकुश स्वभाव का युवक था। वह वही करता था जो उसे पसंद होता था, भले ही उसमें बड़ों की राय हो या न हो।
हुमायूँ की अचानक मौत ने अकबर को अकाल प्रौढ़ बना दिया। वह अपने मनमौजी स्वभाव को त्याग कर, तमाम झगड़ों और जिद्दों को एक तरफ रखकर जिंदगी की जटिलताओं को सुलझाने में व्यस्त हो गया। तेजी से बदल गयी परिस्थितियों में उसकी समझ में अच्छी तरह से आ रहा था कि इस समय वह एक बिगड़ैल शहजादे के स्थान पर बादशाह कहलाने वाला अनाथ बालक है और उसका संपूर्ण भविष्य बैरामखाँ की अनुकम्पा पर निर्भर करता है। अपने इस अतालीक[1] को प्रसन्न करने के लिये अकबर ने अपनी सबसे प्रिय वस्तु न्यौछावर करने का निश्चय किया।
अकबर ने बैरामखाँ को बुला कर उसी कच्चे चबूतरे पर फिर से दरबार आयोजित करने का आदेश दिया। अकबर के इस आदेश से बैरामखाँ असमंजस में पड़ गया। आखिर उससे सलाह-मशविरा किये बिना अकबर दरबार का आयोजन क्यों करना चाहता था?
जब सारे प्रमुख अमीर दरबार में हाजिर हो चुके तो अकबर ने बैरामखाँ से आग्रह किया कि आज वह एक भेंट अपने अतालीक को देना चाहता है लेकिन वह भेंट के बारे में तभी बतायेगा जब बैरामखाँ बिना कोई सवाल किये अपनी मंजूरी देगा। बैरामखाँ ने बड़े ही आश्चर्य के साथ अकबर की शर्त स्वीकार कर ली।
जब अकबर ने सलीमा बेगम का विवाह बैरामखाँ से करने की घोषणा की तो स्वयं बैरामखाँ और अन्य दरबारियों के आश्चर्य का पार न रहा। जिस समय हुमायूँ ने आगरा में बाबर को कोहिनूर हीरा भेंट किया था तब जो सिपाही मौके पर हाजिर थे, उनमें बैरामखाँ भी था। कोहिनूर को देखकर बैरामखाँ की आँखें चौड़ गयीं थीं किंतु आज उसे महसूस हुआ कि हुमायूँ ने जो भेंट बाबर को दी थी, आज की भेंट उससे भी कई गुना बढ़कर थी। कोहिनूर आदमी द्वारा तराशा गया पत्थर का बेजान टुकड़ा था तो सलीमा बेगम कुदरत का बनाया हुआ जीता-जागता नायाब करिश्मा।
[1] संरक्षक।