लक्षद्वीप में बड़ी संख्या में मुस्लिम आबादी रहती थी, इसलिए डर था कि पाकिस्तान इन पर कब्जा कर लेगा किंतु सरदार पटेल ने लक्षद्वीप पर अधिकार कर लिया।
जब अरब के मुसलमानों ने दुनिया में इस्लाम फैलाना आरम्भ किया तब उन्होंने दुनिया के उन हिस्सों को अपना पहला निशाना बनाया जो सीरिया और ईरान की तरह रेगिस्तान में थे, इण्डोनेशिया, सुमात्रा, जावा, ब्रुनेई आदि की तरह समुद्र के बीच टापुओं के रूप में स्थित थे अथवा अफगानिस्तान जैसी दुर्गम पहाड़ियों में थे। इन क्षेत्रों की जनता निर्धन होती थी इस कारण आसानी से मुसलमानों द्वारा दबा ली जाती थी और इस्लाम के अंतर धकेल दी जाती थी। यही कारण था कि लक्षद्वीप जैसे शांत और एकाकी द्वीप समूहों में भी इस्लाम ने अपना शिकंजा जकड़ लिया।
लक्षद्वीप समूह भारत की मुख्य भूमि से दूर तथा अरब सागर में स्थित है। भारत की आजादी के समय ये द्वीप ब्रिटिश क्राउन की सत्ता का हिस्सा थे तथा मद्रास प्रेसीडेंसी के अधीन थे। 15 अगस्त 1947 अधिनियम के अनुसार इन्हें भारत में मिलना था किंतु इन द्वीपों पर बड़ी संख्या में मुस्लिम जनसंख्या निवास करती थी।
इस कारण यह भय उत्पन्न हो गया कि इन द्वीपों पर पाकिस्तान अपना अधिकार जतायेगा अथवा अधिकार जमाने की चेष्टा करेगा। सरदार पटेल की दृष्टि से भारत का सुदूरस्थ भाग भी बचा हुआ नहीं था। इसलिये उन्होंने समय रहते ही रॉयल इण्डियन नेवी की एक टुकड़ी लक्षद्वीप भेजने का निर्णय लिया। इस टुकड़ी ने द्वीप पर अपनी स्थिति सुदृढ़ करके वहाँ भारतीय झण्डा फहरा दिया। यह सुनिश्चित किया गया कि पाकिस्तान इन द्वीपों पर अधिकार करने की कुचेष्टा न कर सके। सरदार पटेल का अनुमान सही था।
रॉयल इण्डियन नेवी की टुकड़ियों द्वारा लक्षद्वीप पर अधिकार कर लिये जाने के कुछ घण्टों बाद ही रॉयल पाकिस्तान नेवी के जहाज लक्षद्वीप के चारों ओर दिखाई देने लगे किंतु जब उन्होंने देखा कि द्वीप पर पहले से ही तिरंगा फहरा रहा है तो वे बिना कोई कार्यवाही किये, कराची लौट गये।
यदि पटेल में इतनी दूरदृष्टि नहीं होती तो भारत का नक्शा निःसंदेह आज के नक्शे जैसा नहीं होता।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता