मुस्लिम लीग जवाहरलाल नेहरू की अंतरिम सरकार में गृहमंत्रालय चाहती थी किंतु जब सरदार पटेल ने मुस्लिमलीग को गृहमंत्रालय देने से मना कर दिया तब मुस्लिमलीग को वित्त मंत्रालय दिया गया। मुस्लिम लीग ने वित्तमंत्रालय के माध्यम से नेहरू की अंतरिम सरकार को विफल करने का षड़यंत्र रचा। मुस्लिम लीग का बजट भारत के उद्योगपतियों की कमर तोड़ने के लिए पर्याप्त था।
मुस्लिम लीग ने नेहरू की अंतरिम सरकार के विरुद्ध षड़यंत्र रचने के लिए जवाहर लाल नेहरू के पुराने भाषणों का सहारा लिया। जवाहर लाल नेहरू समाजवादी चिंतन के व्यक्ति थे तथा पूंजीवादियों के विरुद्ध कुछ न कुछ बोलते रहते थे। नेहरू को पता नहीं था कि समाजवादी चिंतन एवं साम्यवादी नारों से देश नहीं चलता, देश की रीढ़ देश की वह पूंजी होती है जिसका निर्माण पूंजीपति करते हैं।
अंतरिम सरकार के मुस्लिम लीगी सदस्य लियाकत अली ने बजट भाषण में एक आयोग बैठाने का प्रस्ताव किया जो उद्योगपतियों और व्यापारियों पर आयकर न चुकाने के आरोपों की जांच करे और पुराने आयकर की वसूली करे। उसने घोषणा की कि ये प्रस्ताव कांग्रेसी घोषणा पत्र के आधार पर तैयार किये गये हैं। कांग्रेसी नेता, उद्योगपतियों और व्यापारियों के पक्ष में खुले रूप में कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं थे। लियाकत अली ने बहुत चालाकी से काम लिया था। उसने मंत्रिमण्डल की स्वीकृति पहले ही प्राप्त कर ली थी कि बजट साम्यवादी नीतियों पर आधारित हो। उसने करों आदि के विषय में मंत्रिमण्डल को कोई विस्तृत सूचना नहीं दी थी।
जब उसने बजट प्रस्तुत किया तो कांग्रेसी नेता भौंचक्के रह गये। मुस्लिम लीग का बजट प्रकटतः पूंजीपतियों के विरुद्ध दिखता था किंतु यह देश का सत्यानाश करने वाला था। सरदार पटेल और राजगोपालाचारी ने अत्यंत आक्रोश से इस बजट का विरोध किया। वित्तमंत्री की हैसियत से लियाकत अलीखां को सरकार के प्रत्येक विभाग में दखल देने का अधिकार मिल गया था। वह प्रत्येक प्रस्ताव को या तो अस्वीकार कर देता था या फिर उसमें बदलाव कर देता था। मंत्रिगण, लियाकत अलीखां की अनुमति के बिना एक चपरासी भी नहीं रख सकते थे।
लार्ड माउण्टबेटन भी समझ गए कि मुस्लिम लीग का बजट कितना विनाशकारी है!अंत में कांग्रेस के अनुरोध पर लार्ड माउण्टबेटन ने लियाकत अली से बात की और करों की दरें काफी कम करवाईं।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता