वी. पी. मेनन इंपीरियल होटल गये और महाराजा हनवंतसिंह से कहा कि लॉर्ड माउंटबेटन उनसे बातचीत करना चाहते हैं। इसके बाद वी. पी. मेनन महाराजा हनवंतसिंह को लेकर वायसराय भवन गये। वायसराय ने अपने आकर्षक व्यक्त्त्वि एवं दृढ़ निश्चय से महाराजा से इस प्रकार बात की जैसे कोई अध्यापक अपने अनुशासनहीन छात्र को समझाता है। उन्होंने महाराजा से कहा कि उन्हें अपने राज्य को पाकिस्तान में मिलाने का पूरा अधिकार है किंतु उन्हें इसके परिणामों का भी ध्यान रखना चाहिये।
वे स्वयं हिन्दू हैं एवं उनकी अधिकांश प्रजा हिन्दू है। महाराजा हनवंतसिंह का यह कदम इस सिद्धांत के विरुद्ध होगा कि भारत के टुकड़े केवल दो भागों में होंगे जिनमें से एक मुस्लिम देश होगा और दूसरा गैर मुस्लिम देश। उनके पाकिस्तान में विलय से जोधपुर में सांप्रदायिक दंगे होंगे। कांग्रेस के भी आंदोलन करने की संभावना है। महाराजा ने माउंटबेटन को बताया कि जिन्ना ने खाली कागज पर अपनी शर्तें लिखने के लिए कहा है जिन पर जिन्ना हस्ताक्षर कर देंगे।
इस पर मेनन ने कहा कि मैं भी ऐसा कर सकता हूँ किंतु उससे महाराजा को ठीक उसी तरह कुछ भी प्राप्त नहीं होगा जिस तरह जिन्ना के हस्ताक्षरों के बावजूद महाराजा को पाकिस्तान से कुछ नहीं मिलेगा। इस पर माउंटबेटन ने मेनन से कहा कि मेनन भी जिन्ना की तरह महाराजा को कुछ विशेष रियायतें दें। महाराजा हनवंतसिंह ने अपने राज्य का विलय भारत में करने की बात मान ली और प्रविष्ठ संलेख पर हस्ताक्षर कर दिए। महाराजा तथा मेनन के बीच कुछ विशेषाधिकारों पर सहमति हुई जिन्हें लिखित रूप में आ जाने पर मेनन स्वयं जोधपुर लेकर गये।
8 अगस्त 1947 को माउंटबेटन द्वारा भारत सचिव को भेजे गये प्रतिवेदन में कहा गया कि जोधपुर के प्रधानमंत्री वेंकटाचार ने सूचित किया है कि- ‘जोधपुर के युवक महाराजा ने दिल्ली में वायसराय के साथ दोपहर का खाना खाने के पश्चात् यह कहा था कि वे भारतीय संघ में मिलना चाहते हैं परंतु इसके तुरंत बाद ही धौलपुर महाराजा ने जोधपुर महाराजा को दबाया कि वे भारतीय संघ में सम्मिलित नहीं हों। जोधपुर महाराजा को जिन्ना के पास ले जाया गया और नवाब भोपाल तथा उनके वैधानिक सलाहकार जफरुल्ला खाँ की उपस्थिति में जिन्ना ने यह पेशकश की कि यदि महाराजा 15 अगस्त को अपने राज्य को स्वतंत्र घोषित कर दें तो उन्हें ये रियायतें दी जायेंगी-
(1)कराची के बंदरगाह की समस्त सुविधाएं जोधपुर राज्य को दी जायेंगी। (2) जोधपुर राज्य को शस्त्रों का आयात करने दिया जायेगा। (3) जोधपुर-हैदराबाद (सिंध) रेलवे पर जोधपुर का अधिकार होगा। (4) जोधपुर राज्य के अकाल ग्रस्त जिलों के लिए पूरा अनाज उपलब्ध करवाया जायेगा।
……. महाराजा अब भी यह सोचते हैं कि जिन्ना द्वारा की गयी पेशकश सर्वोत्तम है और उन्होंने भोपाल नवाब को तार द्वारा सूचित किया है कि उनकी स्थिति अनिश्चित है और वे उनसे 11 अगस्त को मिलेंगे।
7 अगस्त को महाराजा हनवंतसिंह बड़ौदा गये जहाँ उन्होंने महाराजा गायकवाड़ को समझाया कि प्रविष्ठ संलेख पर हस्ताक्षर नहीं करें। भोपाल नवाब भी प्रयास कर रहे हैं कि जोधपुर, कच्छ व उदयपुर के नरेश भी प्रविष्ठ संलेख पर हस्ताक्षर नहीं करें। मैंने (माउण्टबेटन ने) जोधपुर के महाराजा को इस विषय पर तार भेजा है कि वे शीघ्रातिशीघ्र आकर मुझसे मिलें। मुझे सबसे अधिक दुःख इस बात का है कि भोपाल नवाब मेरे मुँह पर तो मित्र की भांति व्यवहार करते हैं परंतु पीठ पीछे मेरी योजना को विफल करने का षड़यंत्र करते हैं। मैं उनकी चालाकियों के विषय में उनके दिल्ली आने पर स्पष्ट बात करूंगा।’
11 अगस्त 1947 को लॉर्ड माउंटबेटन ने देशी राज्यों के नरेशों से वार्तालाप किया तथा नवाब भोपाल से उस सूचना पर स्पष्टीकरण मांगा जो सरदार पटेल को प्राप्त हुई थी, जिसके अनुसार नवाब ने जोधपुर महाराजा पर दबाव डाला था कि वे उनके साथ चलकर जिन्ना से मिलें।
भोपाल नवाब ने अपने उत्तर में वायसराय को सूचित किया- ‘6 अगस्त को महाराजा धौलपुर व दो अन्य राजाओं ने मुझे सूचना दी कि महाराजा जोधपुर मुझसे (भोपाल नवाब से) मिलना चाहते हैं। मैंने (नवाब ने) उन्हें उत्तर दिया कि मुझे उनसे मिलकर प्रसन्नता होगी। जब महाराजा मेरे पास आये तो उन्होंने कहा कि वे जिन्ना से शीघ्र मिलकर उनकी शर्तों का ब्यौरा जानना चाहते हैं। जिन्ना दिल्ली छोड़कर हमेशा के लिए कराची जाने वाले थे। इस कारण अत्यंत व्यस्त थे। फिर भी मैंने महाराजा के लिए साक्षात्कार का समय ले लिया। हमें दोपहर बाद का समय दिया गया जिसकी सूचना महाराजा को भिजवा दी गयी।
महाराजा मेरे निवास स्थान पर तीसरे पहर आये और हम दोनों जिन्ना से मिलने गये। महाराजा ने जिन्ना से पूछा कि जो राजा पाकिस्तान से सम्बन्ध स्थापित करना चाहते हैं, उनको वे क्या रियायत देंगे? जिन्ना ने उत्तर दिया कि मैं पहले ही यह स्पष्ट कर चुका हूँ कि हम राज्यों से संधि करेंगे और उन्हें अच्छी शर्तें देकर स्वतंत्र राज्य की मान्यता देंगे। फिर महाराजा ने बंदरगाह की सुविधा, रेलवे का अधिकार, अनाज तथा शस्त्रों के आयात के विषय में वार्त्ता की। वार्त्ता के दौरान इस बात की कोई चर्चा नहीं हुई कि वे प्रविष्ठ संलेख पर हस्ताक्षर करें या न करें।
मैं इस साक्षात्कार के बाद भोपाल लौट गया जहाँ मुझे महाराजा धौलपुर का टेलिफोन पर संदेश मिला कि महाराजा जोधपुर शनिवार (9 अगस्त) को दिल्ली लौट रहे हैं अतः मुझे (नवाब को) दिल्ली पहुँच जाना चाहिये। मैं शनिवार को दिल्ली पहुँचा तो हवाई अड्डे पर मुझे महाराजा का संदेश मिला कि मैं सीधे महाराजा जोधपुर के निवास स्थान पर पहुँचूं। वहाँ पहुँचने पर महाराजा धौलपुर ने कहा कि मुझे कुछ प्रतीक्षा और करनी पड़ेगी क्योंकि जोधपुर महाराजा वायसराय से मिलने गये हुए हैं और कुछ ही देर में लौटने वाले हैं परंतु महाराजा वायसराय के पास अधिक समय तक ठहर गये और हमारे पास आने का समय नहीं मिला।
उन्होंने टेलिफोन द्वारा यह संदेश भिजवाया कि वे जोधपुर जा रहे हैं और संध्या को वापस लौटेंगे….शनिवार संध्या को महाराजा धौलपुर आये और कहा कि जोधपुर महाराजा अभी तक नहीं लौटे हैं, प्रतीत होता है कि वे रविवार सवेरे लौटेंगे। रविवार (10 अगस्त) को लगभग डेढ़ बजे मुझे धौलपुर नरेश का निमंत्रण मिला कि मैं उनके (धौलपुर नरेश के) साथ दोपहर के खाने पर सम्मिलित होऊं। वहाँ पहुँचने पर पता चला कि जोधपुर नरेश भी वहाँ थे। वे अपने गुरु को साथ लेकर आये थे।
महाराजा ने मुझसे उनका परिचय करवाते हुए कहा कि ये मेरे दार्शनिक व मार्गदृष्टा हैं। जिन्ना से भेंट के बाद मैं उसी दिन जोधपुर महाराजा से मिला था। महाराजा ने कहा कि हम लोग उनके गुरु से बातचीत करें। धौलपुर व अन्य राजाओं ने गुरु से विस्तृत वार्तालाप किया जिसमें मैंने बहुत कम भाग लिया। जब मैं विदा लेने लगा तो महाराजा जोधपुर ने कहा कि वे सोमवार (11 अगस्त) को सवेरे मुझसे मिलने आयेंगे। अपने निश्चय के अनुसार वे सोमवार 10 बजे मुझसे मिलने आये तथा कहा कि उनके गुरु अभी किसी निर्णय पर नहीं पहुँचे हैं परंतु स्वयं उन्होंने निर्णय कर लिया है कि वे भारतीय संघ में ही रहेंगे। मैंने महाराजा हनवंतसिंह से कहा कि आप अपने राज्य के मालिक हैं और कुछ भी निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हैं।’