सरदार पटेल और चर्चिल का व्यक्तित्व बहुत से मामलों में एक जैसा था। जिस प्रकार सरदार पटेल मातृभूमि की सेवा करने वाले अनन्य राष्ट्रभक्त थे, उसी प्रकार विंस्टन चर्चिल भी अपनी पितृभूमि की सेवा करने वाला राष्ट्रवादी था। दोनों नेताओं के हित अलग-अलग देशों से बंधे हुए होने के कारण वे आपस में एक-दूसरे को पसंद नहीं करते थे।
बीसवीं सदी में वैश्विक स्तर पर प्रसिद्ध हुए महान नेताओं में विंस्टन चर्चिल का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। वे 1940 से 1945 तक तथा 1951 से 1955 तक इंग्लैण्ड के प्रधानमंत्री रहे। द्वितीय विश्व युद्ध उन्हीं के नेतृत्व में लड़ा गया था और वे द्वितीय विश्वयुद्ध के विजेता थे। जिस समय भारत को आजादी मिली, वे इंग्लैण्ड की संसद में नेता प्रतिपक्ष थे तथा भारत की आजादी एवं भारतीय नेताओं के घोर विरोधी थे।
वे कांग्रेस के समस्त नेताओं सहित मोहनदास गांधी के लिये भी कटु शब्दों का प्रयोग करने से नहीं चूकते थे। जब भारत में अंतरिम सरकार का गठन हुआ तथा सत्ता के वास्तविक हस्तांतरण की प्रक्रिया आरम्भ हुई तो चर्चिल ने भारतीय नेताओं के विरुद्ध अत्यंत कटु वक्तव्य दिया। चर्चिल ने कहा- ‘सत्ता बदमाशों, दुष्टों एवं लुटेरों के हाथ में चली जायेगी….. ये व्यक्ति घास के पुतले हैं जिनका कुछ वर्षों बाद एक तिनका भी नहीं मिलेगा।’
जिस समय चर्चिल का यह वक्तव्य आया, सरदार पटेल बीमार थे तथा देहरादून में थे। ऐसे नाजुक समय में जबकि इंग्लैण्ड की संसद में भारतीय स्वतंत्रता के बिल पर चर्चा होनी थी तथा इसमें नेता प्रतिपक्ष विंस्टन चर्चिल का सहयोग अत्यंत आवश्यक था, भारतीय नेता चर्चिल के विरुद्ध कुछ भी नहीं बोल सके। स्वाभिमानी सरदार से चर्चिल की यह अशोभनीय वाणी सहन नहीं हुई। वे जानते थे कि भारत को सत्ता भीख में नहीं मिल रही है, इसके लिये लाखों भारतीयों ने संघर्ष किया है और अपने प्राण न्यौछावर किये हैं। पटेल, भारत की अंतरिम सरकार में उपप्रधानमंत्री थे। चर्चिल द्वारा अंतरिम सरकार पर प्रत्यक्ष रूप से आक्रमण किया गया था।
इसलिये पटेल ने उसी दिन देहरादून से एक वक्तव्य जारी करते हुए चर्चिल को खरीखोटी सुनाई तथा उनके लिये ‘एक बेशर्म साम्राज्यवादी, वो भी ऐसे समय में जब सम्राज्यवाद अपने अंतिम पड़ाव पर खड़ा हुआ है………एक ऐसा लोकप्रसिद्ध भगोड़ा जिसके लिये अक्खड़पन तथा नासमझ सामंजस्य, तर्क, सोच विचार और प्रज्ञा से अधिक महत्त्वपूर्ण है।’ जैसे शब्दों का प्रयोग किया।
चर्चिल की लानत-मलानत करने के साथ ही सरदार पटेल ने इंग्लैण्ड की सरकार को भी चुनौती दी-
‘मैं महामहिम की सरकार को यह बताना चाहूंगा कि यदि वे भारत और ग्रेट ब्रिटेन के बीच मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध बनाने के अभिलाषी हैं तो उन्हें इस बात पर विशेष ध्यान देना होगा कि उस पर इस तरह के घृणित और जहरीले आक्रमण न किये जायें और ब्रिटिश राजनीतिज्ञ एवं अन्य लोग इस देश के बारे में मित्रतापूर्वक एवं सदभावना के साथ बोलना सीखें।’
सरदार पटेल के शब्दों ने विंस्टन चर्चिल को भीतर तक हिला दिया।
वे समझ गये कि समय का पहिया तेजी से घूम रहा है, यदि समझदारी नहीं दिखाई गई तो इंग्लैण्ड को भारत की मित्रता से हाथ धोना पड़ सकता है। इसलिये चर्चिल ने विदेश सचिव ऐंथनी हेडन के द्वारा पटेल को यह संदेश भिजवाया- ‘मुझे पटेल के प्रत्युत्तर से बड़ा आनंद हुआ।
नए अधिराज्य को अपने कार्यों तथा उत्तरदायित्वों को इस निपुणता से संभालते हुए देखकर, विशेष रूप से अन्य राज्यों से सम्बन्धित, मेरे मन में पटेल के प्रति आदर और प्रशंसा के अतिरिक्त और कुछ नहीं है।……. सरदार को स्वयं को भारत की चारदीवारी में सीमित नहीं रखना चाहिये, पूरे विश्व को उन्हें देखने और सुनने का अधिकार एवं उसकी आवश्यकता है।’
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता