भारत की आजादी के समय जब चारों ओर चीख-चिल्लाहट मची हुई थी तब सरदार पटेल का लक्ष्य भारत के 565 राजाओं में से अधिकांश राजाओं को भारत संघ में सम्मिलित करना था।
5 जुलाई 1947 को रियासती विभाग के अस्तित्व में आते ही सरदार पटेल ने देशी राजाओं से अपील की कि वे 15 अगस्त 1947 से पहले, भारत संघ में सम्मिलित हो जायें। देशी राज्यों को सार्वजनिक हित के तीन विषय- रक्षा, विदेशी मामले और संचार, भारत संघ को सुपुर्द करने होंगे जिसकी स्वीकृति उन्होंने पूर्व में केबीनेट मिशन योजना के समय दे दी थी। भारत संघ इससे अधिक उनसे और कुछ नहीं मांग रहा।
भारत संघ देशी राज्यों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने की मंशा नहीं रखता। राज्यों के साथ व्यवहार में रियासती विभाग की नीति अधिकार की नहीं होगी। कांग्रेस राजाओं के विरुद्ध नहीं रही है। देशी नरेशों ने सदैव देशभक्ति व लोक कल्याण के प्रति अपनी आस्था प्रकट की है।
साथ ही पटेल ने राजाओं को चेतावनी भी दी कि यदि कोई नरेश यह सोचता हो कि ब्रिटिश परमोच्चता, राजाओं को हस्तांतरित कर दी जायेगी तो यह उस राजा की भूल होगी। परमोच्चता जनता में निहित है। एक प्रकार से यह घोषणा, राजाओं को समान अस्तित्व के आधार पर भारत में सम्मिलित होने का निमंत्रण था। सरदार के अनुसार यह प्रस्ताव, रजवाड़ों द्वारा पूर्व में ब्रिटिश सरकार के साथ की गयी अधीनस्थ संधियों से बेहतर था।
इस प्रकार पटेल व मेनन द्वारा देशी राजाओं को घेर कर भारत संघ में विलय करवाने के लिये पहला पांसा फैंका गया जिसका परिणाम यह हुआ कि बीकानेर नरेश सादूलसिंह ने सरदार पटेल की इस घोषणा का एक बार फिर तुरंत स्वागत किया और अपने बंधु राजाओं से अनुरोध किया कि वे इस प्रकार आगे बढ़ाये गये मित्रता के हाथ को थाम लें और भारत सरकार को पूरा समर्थन दें ताकि भारत अपने लक्ष्य को शीघ्रता से प्राप्त कर सके किंतु अधिकांश राजाओं का मानना था कि उन्हें पटेल की बजाय कोरफील्ड की बात सुननी चाहिये।
रियासती विभाग ने देशी राज्यों के भारत अथवा पाकिस्तान में प्रवेश के लिये दो प्रकार के प्रपत्र तैयार करवाये- प्रविष्ठ संलेख तथा यथास्थिति समझौता पत्र। प्रविष्ठ संलेख एक प्रकार का मिलाप पत्र था जिस पर हस्ताक्षर करके कोई भी राजा भारतीय संघ में प्रवेश कर सकता था। यह प्रविष्ठ संलेख उन बड़ी रियासतों के लिये था जिनके शासकों को पूर्ण अधिकार प्राप्त थे। इन रियासतों की संख्या 140 थी। गुजरात के काठियावाड़ क्षेत्र में 300 रियासतों को जागीर कहा जाता था।
इनमें से कुछ जागीरों को ई.1943 में संलग्नता योजना में निकटवर्ती बड़े राज्यों से जोड़ दिया गया था किंतु परमोच्चता की समाप्ति के साथ संलग्नता योजना भी समाप्त हो जानी थी। अतः इन जागीरों के ठिकानेदारों एवं तालुकदारों ने मांग की कि उन्हें वर्ष 1943 वाली स्थिति में लाया जाये तथा उनकी देखभाल भारत सरकार द्वारा की जाये जैसी कि राजनैतिक विभाग द्वारा की जाती रही थी।
इन ठिकानों एवं तालुकों के लिये अलग प्रविष्ठ संलेख बनाया गया। काठियावाड़, मध्य भारत तथा शिमला हिल्स में 70 से अधिक राज्य ऐसे थे जिनका पद ठिकानेदारों और ताुलकदारों से बड़ा था किंतु उन्हें पूर्ण शासक का दर्जा प्राप्त नहीं था। ऐसे राज्यों के लिये अलग प्रविष्ठ संलेख बनाया गया। सरदार पटेल का लक्ष्य राजाओं के इन झुण्डों को हाँककर भारत संघ में लाना था।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता