रावत जालान
हमने उससे अनुरोध किया कि हमें व्हीट फ्लोर, कुकिंग ऑइल, मिल्क और वेजीटेबल्स खरीदनी हैं इसलिए किसी डिपार्टमेंटल स्टोर पर ले चले। हमारे पास अब बहुत कम घी और आटा बचे थे। हमें आज शाम के साथ-साथ अगले तीन दिन का भोजन बनाकर अपने साथ लेना था जिसके लिए यह सामग्री पर्याप्त नहीं थी। सौभाग्य से मसाले अब भी पर्याप्त मात्रा में थे। मि. अंतो ने कुछ क्षण के लिए सोचा और फिर हमें एक मॉल ले जाने का निश्चय किया। जब हम मॉल पहुंचने वाले थे कि पिताजी की दृष्टि एक बड़े साइन बोर्ड पर पड़ी जिस पर रोमन लिपि में बड़े-बड़े अक्षरों में ‘रावत जालान’ लिखा हुआ था। पिताजी ने अनुमान लगाया कि जोधपुर में कुछ अग्रवाल परिवार अपना सरनेम जालान लगाते हैं। हो न हो यह जोधपुर के ही किसी अग्रवाल परिवार की दुकान हो। इसी प्रकार जोधपुर में रावत मिष्ठान भण्डार है जो कि जोधपुर के एक माली परिवार का है।
पिताजी ने अनुमान लगाया कि संभवतः जोधपुर के किसी अग्रवाल परिवार एवं माली परिवार ने मिलकर यह स्टोर खोला हो। अतःयहाँ पूछने से हमें यह ज्ञात हो जाएगा कि जोगजकार्ता में गेहूं का आटा कहाँ मिल जायेगा तथा उसे जावाई भाषा में क्या कहते हैं! चूंकि सड़क काफी व्यस्त थी, अतः केवल विजय को उस दुकान पर भेजा गया। विजय ने जाकर देखा कि वह एक दवाईयों का बड़ा डिपार्टमेंटल स्टोर है। विजय ने जाकर रावत तथा जालान के बारे में पूछा तो वहाँ के इण्डोनेशियाई कर्मचारी विजय का सवाल ही नहीं समझ सके। बाद में हमें इण्टरनेट से ज्ञात हुआ कि इण्डोनेशियाई भाषा में Rawat Jalan का अर्थ Hospitalization street होता है। वहाँ उन शब्दों का आशय दवाइयों की बड़ी दुकान से था।
सोयाबीन के तेल और गेहूं के आटे की खोज
यह बड़ा डिपार्टमेंटल स्टोर था जहाँ मि. अंतो हमें लेकर गया। इस स्टोर में सैंकड़ों लम्बी-लम्बी रैक लगी हुई थीं जिनमें किराणे से लेकर सब्जी और फल, मछली, अण्डा और पैक्ड फूट उपलब्ध थे। हमने इस विशाल स्टोर में गेहूं का आटा और कुकिंग ऑइल ढूंढना आरम्भ किया। कुछ कर्मचारियों से भी पूछा किंतु कोई कर्मचारी हमारी बात नहीं समझ पाया। हमें कुछ रैक्स में नारियल तथा सूरजमुखी के कुकिंग ऑइल मिले किंतु समस्या यह आ गई कि इन पर झींगों के चित्र बने हुए थे। इन चित्रों से आशय यह था कि इनमें झींगे तले जा सकते हैं किंतु हम ऐसा तेल कैसे खरीद सकते थे जिन पर झींगे बने हुए हों। हमने एक कर्मचारी से व्हीट फ्लोर के बारे में पूछा।
सौभाग्य से यह कर्मचारी थोड़ी-बहुत अंग्रेजी जानता था। उसने मुझे एक रैक दिखाया। मैंने वहाँ पैकेट उठा कर देखे तो निराशा ही हाथ लगी क्योंकि वह चावल का आटा था और इससे रोटियां नहीं बन सकती थीं। मैं वहाँ से पूरी तरह निराश होकर मुड़ ही रहा था कि मेरी दृष्टि एक रैक में रखे हुए पैकेट पर पड़ी मैंने अनमने ढंग से उसे भी उठाया तो खुशी से उछल पड़ा। इस पर Wheat flour लिखा हुआ था। अब चाहे यह कितने भी महंगा क्यों न हो, खरीदना ही था। उस पूरे डिपार्टमेंटल स्टोर में व्हीट फ्लोर का यह अकेला ही पैकेट बचा था। दूध के पैकेट, आलू-प्याज, टमाटर तथा कुछ फल भी हमें मिल गए। अब केवल तेल की समस्या शेष थी।
अंत में हमने नारियल तेल का एैसा पैकेट खरीदने का निर्णय लिया जिस पर किसी झींगे या मछली आदि का चित्र नहीं बना हुआ था। जब मैंने ऐसा एक पैकेट छांटा ही था कि अचानक विजय की दृष्टि एक रैक पर पड़ी। इसमें सोयाबीन के तेल की एक लीटर की शीशी रखी हुई थी। इसका यहाँ होना किसी चमत्कार से कम नहीं था। पिताजी सोयाबीन के तेल को खाने के लिए उपयुक्त नहीं मानते किंतु यहाँ सोयाबीन का तेल हमें किसी वरदान से कम नहीं लगा।
तीन दिन की तैयारी
हमारी खोज पूरी हो चुकी थी। अपने अपार्टमेंट पहुंचकर हमने मि. अन्तो को कल की तरह चाय पिलाई। उसके लिए चाय का पिया जाना एक आश्चर्यजनक घटना से कम नहीं होती थी। हमने उसके दिन भर के पेमेंट्स किए तथा मि. अन्तो को प्रातः सात बजे आने का अनुरोध किया। इसके बाद मधु और भानु ने मिलकर 21, 22 और 23 अप्रेल के खाने की तैयारी की। इसमें से 21 अप्रेल का दिन ट्रेन में, 22 अप्रेल का दिन होटल में तथा 23 अप्रेल का दिन हवाई जहाज में बीतने वाला था।
इस दौरान हमें कहीं से शाकाहारी भोजन मिलने की आशा नहीं थी। मधु ने हमारे द्वारा खरीदा गया व्हीट फ्लोर का पैकेट खोल कर देखा, उसमें बहुत बारीक मैदा थी। मधु ने वह मैदा, हमारे पास उपलब्ध आटे में मिला दी। अब आसानी से ढाई दिन के लिए पूरियां बनाई जा सकती थीं। तीसरे दिन की शाम को साढ़े दस बजे तो हमें दिल्ली पहुंच ही जाना था। पूरियां तलने के बाद मधु ने कुछ आलू उबालकर अपने साथ रख लिए। बिना छिले हुए आलू यदि फ्रिज या एसी में रहें तो दो-ढाई दिन तक खराब नहीं होते। कच्ची प्याज, लाल टमाटर और नमकीन भुजिया भी तरकारी की तरह प्रयुक्त हो सकते हैं।