Thursday, November 7, 2024
spot_img

8. फ्लोरेंस में दूसरा दिन – 23 मई 2019

रात भर नींद नहीं आई। हम जब भारत से चले थे तो सत्रहवीं लोकसभा के लिए मतदान करके चले थे और आज उनके परिणाम आने वाले थे। इसलिए रात भर बेचैनी सी रही। भारत में लोकसभा के चुनाव हमेशा से ही बहुत उत्तेजना भरे होते हैं, भले ही हर बार उत्तेजना का कारण अलग-अलग होता है। इस बार के चुनाव भी बहुत विचित्र सी उत्तेजना लिए हुए थे। 2014 के चुनावों में नरेन्द्र मोदी की सरकार चुनी गई थी। इसे भारतीय जनता पार्टी की नहीं अपितु नरेन्द्र मोदी की जीत माना गया था। कारण बहुत स्पष्ट था। पिछले दस साल तक सत्ता में रही डॉ. मनमोहनसिंह की सरकार में इतने घोटाले हुए थे तथा अल्पसंख्यक कहे जाने वाले एक खास वोट-बैंक का इतना तुष्टिकरण हुआ था कि भारत के लोग कांग्रेस की सरकार से न केवल तंग आ गए थे अपितु उससे जले-भुने बैठे थे। लोग उसे डॉ. मनमोहन सिंह की या कांग्रेस की सरकार नहीं समझते थे अपितु इटली वालों की सरकार समझते थे।

इसलिए 2014 में नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद के लिए एकमात्र विकल्प के रूप में देखा गया था किंतु नरेन्द्र मोदी सरकार ने नोटबंदी तथा जीएसटी जैसे कड़वे फैसले लागू करके भारत के मध्यमवर्ग एवं बुद्धिजीवी वर्ग को नाराज कर लिया था। इसलिए मध्यम वर्ग एवं बुद्धिजीवी वर्ग अपना असंतोष मुखर होकर प्रकट कर रहा था किंतु भीतर ही भीतर वह यह सोचकर डरा हुआ भी था कि पिछले पाँच सालों में नरेन्द्र मोदी ने तुष्टिकरण की नीतियों को त्यागकर आम भारतीय को पूरी तरह से अपने पक्ष में कर लिया है।

TO PURCHASE THIS BOOK, PLEASE CLICK THIS PHOTO

साथ ही अपने भाषणों को और अधिक पैनी शब्दावली देकर स्वयं को राष्ट्रवाद के अनन्यतम प्रतीक के रूप में स्थापित कर लिया है। उनके भाषणों में प्रत्येक भारतवासी के लिए कुछ न कुछ रहता है। इसलिए नरेन्द्र मोदी का हारना संभव नहीं है। जिस प्रकार जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी के समय में लोग कांग्रेस को न चुनकर जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी को चुनते थे उसी प्रकार भारत के लोग अब भारतीय जनता पार्टी को न चुनकर नरेन्द्र मोदी को चुनते हैं।

भारत में मध्यम वर्ग एवं बुद्धिजीवी वर्ग का गठजोड़ सदा से रहा है। उच्च आयवर्ग अपनी अमीरी के कारण और निम्न आयवर्ग अपनी गरीबी के कारण सरकारें बदलने, समाज में बदलाव लाने और क्रांति करने के बारे में नहीं सोचा करता। निम्न आय वर्ग तो मध्यम वर्ग तथा बुद्धिजीवी वर्ग द्वारा आरम्भ की गई क्रांति के औजार के रूप में प्रयुक्त होता है जबकि उच्च आय वर्ग उस क्रांति की सफलता का फल भोगा करता है।

मनमोहनसिंह की सरकार को हराकर नरेन्द्र मोदी की सरकार के बनने तथा सत्रहवीं लोकसभा के चुनावों के मुंह तक आ खड़े होने तक के काल में भारत में एक बार फिर लगभग यही दृश्य रहा है किंतु इस बार के चुनावों के बाद क्या दृश्य बनेगा, इसके बारे में सिवाय नरेन्द्र मोदी के कोई भी आश्वस्त नहीं है। भारत का मध्यम वर्ग और बुद्धिजीवी वर्ग इस बात से आशंकित है कि इस बार भारत का ‘निम्न आय वर्ग’, मध्यम वर्ग और बुद्धिजीवी वर्ग के द्वारा पर्दे के पीछे की जा रही क्रांति का औजार बनने को तैयार नहीं है।

इसका कारण यह है कि भारत में आजकल एक तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग भी उभर आया है जो हिन्दुत्व तथा राष्ट्रवाद को गालियां देता रहता है। इन्हें प्रधानमंत्री की गरिमा की भी कोई चिंता नहीं है। इस कारण जब ये तथाकथित बुद्धिजीवी लोग टीवी के पर्दे पर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को गालियां दे रहे थे तो चुनावी रैलियों में लाखों किसान और मजदूर हर्षोन्मत्त होकर ‘मोदी-मोदी’ चिल्ला रहे थे।

ये दोनों वर्ग एक दूसरे की बात सुनने के लिए कतई उत्सुक नहीं थे। इस बात ने सिद्ध कर दिया है कि नरेन्द्र मोदी के दौर में न केवल निम्न आय वर्ग, तथाकथित बुद्धिजीवियों द्वारा प्लान की जा रही क्रांति का औजार बनने से मना कर रहा है अपितु भारत के मध्यम वर्ग और बुद्धिजीवी वर्ग के चिंतन भी अलग दिशाएं पकड़ चुके हैं। मध्यम वर्ग बढ़े हुए टैक्सों से भयभीत है और बुद्धिजीवी वर्ग भारत के विश्वविद्यालयों में चल रही अपनी दुकानों के उठ जाने से भयभीत है।

जबकि उच्च आर्य वर्ग आश्वस्त है कि उसके हितों पर कहीं कोई कुठाराघात नहीं होने जा रहा और निम्न आय वर्ग उत्साहित है कि यदि नरेन्द्र मोदी सरकार इस बार दुबारा आई तो उनमें से प्रत्येक के बैंक खाते में पन्द्रह लाख नहीं तो कुछ न कुछ लाख रुपया अवश्य आ जाएगा। भारत का मध्यम वर्ग एक और बड़ी दुविधा से संत्रस्त है, कहीं इटली वालों की सरकार वापस न आ जाए! उनकी सरकार आने से बढ़िया है कि एकाध नोटबंदी, एकाध जीएसटी और कुछ बढ़े हुए कर और झेल लिए जाएं।

भारत का आम आदमी जिसे यह पता नहीं है कि वह कौनसे वर्ग में है, तथा जिसे वैचारिक मंथन अर्थात् फालतू की माथा-फोड़ी बिल्कुल भी पसंद नहीं है, उसकी चिंता बिल्कुल अलग है। भारतीय संस्कृति में भले ही कितनी ही विद्रूपताएं हों किंतु एक बात तय है कि भारत के लोग सार्वजनिक रूप से गाली-गलौच पसंद नहीं करते।

भारत के अधिकतर पुरुष गंदी से गंदी गाली बोलते हैं, यहाँ तक कि कुछ औरतें भी मौका मिलने पर गाली-गलौच से परहेज नहीं करतीं किंतु सार्वजनिक जीवन में उन्हें साफ-सुथरी भाषा ही बोलना और सुनना पसंद है।

2014 के बाद से विपक्ष ने जिस प्रकार की गंदी भाषा का प्रयोग प्रधानमंत्री के लिए किया है, उससे भारत का आम-आदमी तिलमिलाया हुआ है। कोई भी भारतीय यह नहीं चाहता कि उसके प्रधानमंत्री को सार्वजनिक रूप से गाली दी जाए, उसके लिए मर्यादा-विहीन एवं अभद्र शब्दों का प्रयोग किया जाए।

जबकि विपक्ष इटली वालों के नेतृत्व में पूरे पाँच साल तक पानी पी-पीकर प्रधानमंत्री को सार्वजनिक रूप से गालियां देता रहा है। इसलिए भारत का आम-आदमी इन चुनावों में उन गालियों का बदला लेना चाहता है। भारत के इस आम आदमी में भारत का धनी से धनी और निर्धन से निर्धन व्यक्ति आता है।

भारत में इटली वालों से अलग भी कुछ पार्टियां हैं जिनमें यूपी वाली बहिनजी से लेकर कलकत्ता वाली दीदी तक आती हैं। इटावा वाले नेताजी से लेकर दक्षिण वाले बाबूजी तक इसी थैली के हिस्से हैं। इन लोगों ने तो गाली-गलौच की वे सीमाएं भी पार कर दीं जिन्हें पार करने की हिम्मत इटली वाले भी नहीं कर पाए।

दुनिया में शायद ही कोई देश हो जो अपने प्रधानमंत्री के लिए पागल कुत्ता, हत्यारा, नीच आदमी, चोर जैसे गंदे शब्दों को सुनना चाहे! एक छोटी सी थैली और है जो लाल रंग के कपड़े से सिली गई है। आजकल इस थैली में ज्यादा पोदीना नहीं है फिर भी गाहे-बगाहे यह भी सड़कों पर चमकती है। अतः कुल मिलाकर इस बार के चुनाव एक नवीन प्रकार की उत्तेजना  से भरे हुए थे। कौन जाने देशी ऊंट किस करवट बैठ जाए!

हम सुबह छः बजे से लेकर 10 बजे तक इण्टरनेट के माध्यम से टीवी चैनलों पर चुनाव परिणाम देखते रहे। इस समय तक भारत में दोपहर के डेढ़ बज चुके थे और चुनाव परिणाम पूरी तरह स्पष्ट हो चुके थे। नरेन्द्र मोदी पहले से भी अधिक बहुमत के साथ लौट आए थे। भारत से आने वाली ‘मोदी-मोदी’ की आवाजें हमें यहाँ फ्लोरेंस में भी सुनाई दे रही थीं।

 हम लगभग 10.40 पर घर से निकले। आज हमें पीसा की मीनार देखने के लिए जाना था। घर से लगभग 1 किलोमीटर की दूरी पर सबअर्बन रेल्वे स्टेशन है किंतु हमने ट्राम से ही जाना श्रेयस्कर समझा ताकि हम थक न जाएं और आगे आवश्यकता होने पर पैदल चल सकें। ट्राम का स्टॉप हमारे सर्विस अपार्टमेंट से केवल 100 मीटर दूर है।

यह 100 मीटर की यात्रा अत्यंत सुखदाई होती है क्योंकि यहाँ का पूरा परिवेश असीम शांति देने वाला है। इस 100 मीटर के बीच शायद ही कोई आदमी दिखाई देता है। चारों तरफ रंग-बिरंगे फूल मुस्काते हैं। हल्की ठण्ड के बीच धूप का स्पर्श मन में आनंद की लहरें उत्पन्न कर देता है। आज बरसात भी नहीं थी और भगवान सूर्य नारायण आकाश के एक किनारे पर बैठकर मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे।

उन्हें पता था कि वैसे भी उन्हें रात 8-9 बजे तक फ्लोरेंस के आकाश में उड़ रहे रंग-बिरंगे पक्षियों के साथ खेलते रहना है। उन्हें शायद दीपा से ईर्ष्या हो रही थी क्योंकि जहाँ भी कोई पक्षी दिखाई देता था, दीपा उसे बिस्किट खिलाना शुरु कर देती थी।

Related Articles

1 COMMENT

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source