Thursday, November 21, 2024
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20. महान् रोमन साम्राज्य का द्वितीय संस्करण

इटली का बिखराव

ई.493 में पूर्वी रोमन साम्राज्य के सम्राट जेनो के आदेश से उसके सामंत  थियोडोरिक ने इटली पर आक्रमण किया था तथा रोम के शासक ओडोवेकर को मारकर स्वयं रोम का शासक बन गया था। थियोडोरिक जर्मनी के ऑस्ट्रोगोथ कबीले का मुखिया था किंतु रोमन सम्राट जेनो का विश्वसनीय माना जाता था।

यद्यपि थियोडोरिक को रोम पर अधिकार करने के आदेश स्वयं रोमन सम्राट ने दिए थे तथापि इटली के धनी-सामंत एक गैर-रोमन-रक्तवंशी को अपना शासक मानने के लिए तैयार नहीं हुए और स्थान-स्थान पर विद्रोह हो गए। इस कारण इटली के बिखराव की प्रक्रिया बहुत तेजी से घटित हुई।

अगले लगभग एक हजार वर्षों तक इटली छोटे-छोटे नगर-राज्यों के रूप में बिखरा रहा और विभिन्न विदेशी शक्तियों के अधीन चला गया। इटली के कुछ भागों पर स्पेन का अधिकार हो गया, कुछ पर ऑस्ट्रिया का तथा कुछ भागों पर फ्रांस का अधिकार हो गया किन्तु ‘होली सी’ अर्थात् वेटिकन सिटी का रोम पर नियन्त्रण बना रहा।

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नए रोमन साम्राज्य का उदय

ऑस्ट्रोगोथ कबीला तथा उसका राजा ईसाई ही था किंतु वह ईसाइयों के ‘यूरोपीय एरियन’ सम्प्रदाय से सम्बन्ध रखता था जिसे रोम का पोप ईसाई धर्म के अंतर्गत नहीं मानता था। इसलिए पोप गोथ राजवंश को हटाकर कोई ऐसा राजवंश लाना चाहता था जो कैथोलिक ईसाई धर्म का अनुसरण करे।

जब गोथ कबीले को रोम पर शासन करते हुए कुछ पीढ़ियां बीत गईं तो रोम के पोप ने दूसरे बर्बर कबीले के राजा क्लोविस से मदद मांगी। क्लोविस भी कैथोलिक ईसाई सम्प्रदाय का नहीं था। वह ईसाइयों के ‘अरियासवाद सम्प्रदाय’ का अनुयाई था किंतु पोप के कहने से उसने कैथोलिक सम्प्रदाय स्वीकार कर लिया।

राजा क्लोविस का कबीला मूलतः उत्तरी यूरोप में रहने वाला एक जर्मन कबीला था जो फ्रैंक कहलाता था। फ्रैंक कबीले ने ऑस्ट्रोगोथों को रोम से बाहर निकला दिया। पोप ने फ्रैंक सरदार क्लोविस को रोम का शासक स्वीकार कर लिया। इसी के साथ रोम में एक नवीन रोमन साम्राज्य की स्थापना हो गई। इसे भी ‘रोमन साम्राज्य’ कहा गया।

इस नए राज्य का यद्यपि पुराने रोमन साम्राज्य से काई सम्बन्ध नहीं था किंतु इस नए राज्य को पुराने राज्य का ही सिलसिला माना गया। इस नए राजवंश के राजाओं ने भी इम्परेटर, सीजर और ऑगस्ट जैसी प्राचीन रोमन उपाधियां धारण कीं। रोम पर उत्तरी यूरोप के बर्बर कबीलों के सरदारों का कई पीढ़ियों तक अधिकार एवं शासन रहा किंतु वे भी प्रायः कुस्तुंतुनिया के ‘एम्परर’ को स्वामी मानते रहे। वास्तव में नया रोमन साम्राज्य, पुराने रोमन साम्राज्य की छाया मात्र ही था।

प्राचीन रोमन साम्राज्य की छाया या उसका भूत!

प्राचीन महान् रोमन साम्राज्य के दर्दनाक विध्वंस के बाद भी न तो रोमवासियों के घमण्ड में कोई कमी आई और न उसकी महानता का नशा यूरोप के दिमाग से उतरा। पं. नेहरू ने लिखा है- ‘रोम के पतन के बाद भी यूरोप रोम की ही भाषा में बोलता रहा किन्तु उसके पीछे जो भाव और अर्थ थे, वे बदल गए थे। रोम का भूत, रोम के पतन के लगभग चौदह सौ साल बाद तक यूरोप के अस्तित्व पर मण्डराता रहा।’

लोम्बार्डी राजाओं का रोम पर शासन

ई.565 में लोम्बार्डी वंश के सरदार एलबोइन ने रोम से फ्रैंक राजाओं को निकाल बाहर किया तथा रोम में लोम्बार्डी राजवंश की स्थापना की। लोम्बार्डी शासक किसी एक वंश से सम्बन्धित नहीं थे। वे अलग-अलग परिवारों के लोग थे जो एक के बाद एक इटली एवं रोम के शासक बनते चले गए। ई.565 से ई.774 तक इस वंश में 24 राजा हुए। ये लोग पोप की कृपा से राजा नहीं बने थे इसलिए पोप एवं लोम्बार्डी राजाओं के सम्बन्ध अच्छे नहीं रहे।

पोप और लोम्बार्डी शासकों में झगड़ा

जूलिसय सीजर के समय से ही रोम के राजा को देवता मान लिया गया था तथा उसे धरती पर ईश्वर का प्रतिनिधि स्वीकार कर लिया गया था किंतु ईसाई धर्म, राजा को ईश्वर का प्रतिनिधि नहीं मानता था। जब से रोम के कैथोलिक चर्च का बिशप पोप के रूप में प्रभावशाली हुआ था तथा प्राचीन रोमन साम्राज्य के राजाओं का सिलसिला समाप्त हुआ था, तब से पोप भी स्वयं को ईश्वर का प्रतिनिधि कहने लगा था।

इस अधिकार से पोप और एम्परर दोनों बराबर हो गए थे किंतु इन दोनों में कौन बड़ा है, इस बात को लेकर पोप एवं एम्परर के बीच शीत-युद्ध की स्थिति पैदा हो गई। समय के साथ यह विवाद बढ़ता ही चला गया। ई.727 में पोप ग्रिगोरी (द्वितीय) ने पूर्वी रोमन साम्राज्य के सम्राट लियो (तृतीय) द्वारा जारी किए गए आदेशों को मानने से मना कर दिया। इस पर सम्राट ने रोम के विरुद्ध सेना भेजी तथा रोम पर अधिकार कर लिया। पोप को सम्राट के आदेश मानने पड़े तथा उसके बाद पोप ग्रिगोरी (द्वितीय) ने सम्राट का विरोध नहीं किया।

ई.730 में रोम के स्थानीय लोम्बार्ड शासक ने पोप को अपने संकेतों पर चलाना चाहा किंतु पोप ने उसके आदेश मानने से मना कर दिया। इस पर लोम्बार्ड शासक ने रोम तथा वेटिकन सिटी में बड़ी मार-काट मचाई। यद्यपि पोप अपने महल की ऊंची दीवारों के बीच सुरक्षित रह गया तथा इस कार्य में उसे कुस्तुंतुनिया की सेना से भी कुछ सहायता मिली तथापि पोप लोम्बार्डियों के विरुद्ध कुछ अधिक नहीं कर सका। ई.739 में ग्रिगोरी (तृतीय) ने फ्रैंक शासक चार्ल्स मार्ते से सहायता मांगी।

पापल स्टेट का उदय

ई.754 में पोप स्टीफन (द्वितीय) फ्रांस गया। उसने फ्रैंक कबीले के सबसे युवा राजा पीपीन (प्रथम) को ‘पैट्रीसियस रोमानोरम’ अर्थात् ‘रोम का संरक्षक’ की उपाधि दी। अगस्त 1754 में राजा पीपीन (प्रथम) तथा पोप स्टीफन (द्वितीय) ने एल्प्स पर्वत को पार करके पाविया नामक स्थान पर लोम्बार्ड शासक एस्टुल्फ को परास्त कर दिया। लोम्बार्ड शासक ने वचन दिया कि अब वह रोम में हस्तक्षेप नहीं करेगा तथा रोम का क्षेत्र पोप को सौंप देगा जिसका शासन पोप के ही अधीन होगा।

इस संधि के बाद पीपीन पुनः अपने राज्य को लौट गया और पोप रोम चला आया किंतु लोम्बार्ड शासक ने अपने किसी भी वचन का पालन नहीं किया तथा ई.756 में उसने रोम को घेर लिया। पूरे 56 दिन तक यह घेरा चला किंतु जब उसने सुना कि फ्रैंक राजा पीपीन अपनी सेना लेकर आ रहा है तो लोम्बार्ड शासक एस्टुल्फ रोम से घेरा उठाकर चला गया।

उसने रोम तथा उसके आसपास के कुछ क्षेत्र पोप को प्रदान कर दिए जो पोप के प्रत्यक्ष शासित क्षेत्र हो गए। इस प्रकार ‘पापल स्टेट’ (धार्मिक राज्य अथवा पवित्र राज्य) का उदय हुआ। इससे पहले पोप केवल कैथोलिक चर्च का बिशप मात्र था किंतु अब वह स्वयं एक छोटे से राज्य का राजा बन गया।

लोम्बार्डियों की सत्ता का समापन

ई.771 में नए लोम्बार्ड शासक डेसीडेरियस ने कैथोलिक चर्च की तीर्थयात्रा करने के बहाने रोम को जीतने तथा पोप स्टीफन (तृतीय) को पकड़ने की एक योजना बनाई तथा वह अपने कुछ सैनिकों सहित वेटिकन में घुस गया। उसका मुख्य सहायक पौलुस एफिआर्ता पहले से ही लोम्बार्डियों की एक टुकड़ी सहित रोम में उपस्थित था।

डेसीडेरियस ने रोम को अपने अधिकार में ले लिया किंतु वह पोप को नहीं पकड़ सका। लोम्बार्डियों की इस कुचेष्टा ने फ्रैंक राजा शार्लमैन को कुपित कर दिया जो अपने पिता पीपीन (प्रथम) के स्थान पर फ्रांस का शासक बना था।

इस राजा को यूरोप के इतिहास में ‘चार्ल्स महान्’ भी कहा जाता है। ई.772 में स्टीफन (तृतीय) के स्थान पर हैड्रियन (प्रथम) पोप हुआ। उसने फ्रैंक शासक शार्लमैन को सहायता के लिए बुलाया। ई.773 में शार्लमैन के तृतीय पुत्र पीपीन (द्वितीय) ने लोम्बार्ड राजा डेसीडेरियस को परास्त कर दिया। डेसीडेरियस के अंत के साथ ही रोम से लोम्बार्डियों की सत्ता समाप्त हो गई तथा रोम में नए युग की शुरुआत हुई।

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