जब कामरान काबुल छोड़कर भाग गया ओर हुमायूँ की सेना ने अकबर को बरामद कर लिया तो हुमायूँ ने काबुल दुर्ग में प्रवेश करके अपने परिवार की महिलाओं से भेंट की तथा उन्हें सांत्वना प्रदान की। परिवार में सबको सकुशल देखकर हुमायूँ ने निर्धनों एवं दरवेशों में धन बंटवाया। उसने अपने विश्वस्त सेवकों को पुरस्कृत किया तथा दुष्ट मनुष्यों को सजा दी। दीनदार बेग, हैदर दोस्त, मुगल कानजी और मस्तअली कुरची को प्राणदण्ड दिया गया। बादशाह ने अपनी पुत्री बख्शी बानू का विवाह मिर्जा सुलेमान के पुत्र मिर्जा इब्राहीम के साथ कर दिया तथा सुलेमान और इब्राहीम को पुरस्कृत करके बदख्शां भेज दिया।
हुमायूँ ने बंदी बनाकर रखे गए मिर्जा अस्करी को सुलेमान के साथ भेज दिया ताकि अस्करी को कड़े पहरे में रखा जा सके। जब हुमायूँ को ज्ञात हुआ कि कामरान दरवेश बन गया है तो हुमायूँ को बड़ा दुःख हुआ किंतु कुछ दिनों में उसके चित्त में शांति हो गई। उसने मिर्जा सुलेमान को आदेश भिजवाया कि वह मिर्जा अस्करी को बल्ख के रास्ते हज्जा भेज दे।
इस समय मिर्जा सुलेमान की एक पुत्री अविवाहित थी। हुमायूँ उससे विवाह करना चाहता था। अबुल फजल ने लिखा है कि बादशाह हुमायूँ सुलेमान की प्रतिष्ठा बढ़ाना चाहता था इसलिए हुमायूँ ने मिर्जा सुलेमान के पास प्रस्ताव भिजवाया कि वह अपनी पुत्री का विवाह बादशाह के साथ कर दे। इस प्रस्ताव को पाकर मिर्जा सुलेमान चिंतित हो गया। इस समय तक हुमायूँ 42 वर्ष का प्रौढ़ हो चुका था जबकि मिर्जा सुलेमान की पुत्री अभी छोटी बालिका ही थी। यह एक अजीब सी बात थाी क्योंकि कुछ ही दिनों पहले हुमायूं ने अपनी पुत्री का विवाह मिर्जा सुलेमान के पुत्र से किया था और अब हुमायूं मिर्जा सुलेमान की पुत्री से विवाह करना चाहता था।
मिर्जा सुलेमान बादशाह हुमायूँ के इस प्रस्ताव को अस्वीकार करके बादशाह से अपने सम्बन्ध नहीं बिगाड़ना चाहता था इसलिए उसने बादशाह से कहलवाया कि मैं बादशाह से अपनी पुत्री का विवाह करने के लिए तैयार हूँ किंतु अभी वह छोटी है, अतः उसके बड़े होने पर ही बादशाह से उसका विवाह करना उचित रहेगा। हुमायूँ ने मिर्जा सुलेमान की बात मान ली।
उधर कामरान कुछ दिनों तक शांत रहने के बाद फिर से सक्रिय हो गया। उसने खलील और महमंद कबीलों के अफगानों को तथा कुछ बदमाश किस्म के भगोड़े सैनिकों को अपने साथ मिलाकर एक सेना खड़ी कर ली। गजनी के गवर्नर हाजी मुहम्मद खाँ पर हुमायूँ को बड़ा भरोसा था, वह भी कामरान के साथ मिलकर बादशाह हुमायूँ के विरुद्ध षड़यंत्र करने लगा। हुमायूँ ने कांधार के गवर्नर बैराम खाँ को निर्देश दिए कि वह हाजी मुहम्मद खाँ को समझा-बुझा कर बादशाह की सेवा में ले आए।
जब हाजी मुहम्मद खाँ को बैराम खाँ के आने की जानकारी हुई तो उसने बैराम खाँ को काराबाग दुर्ग में छल से बंदी बनाने का षड़यंत्र रचा किंतु बैराम खाँ को समय रहते इस षड़यंत्र का पता लग गया और वह काराबाग दुर्ग में प्रवेश करने की बजाय दुर्ग के बाहर ही खेमा लगाकर बैठ गया। अंत में हाजी मुहम्मद तथा उसके भाई शाह मुहम्मद ने बैराम खाँ के साथ बादशाह की सेवा में चलना स्वीकार कर लिया।
काबुल में बादशाह के सामने इन दोनों भाइयों का व्यवहार अत्यंत आपत्तिजनक था। इस पर हुमायूँ ने बैराम खाँ को आदेश दिया कि इन दोनों भाइयों को गिरफ्तार कर लिया जाए। बादशाह ने उन दोनों भाइयों के अपराधों और उनके द्वारा बादशाह के प्रति की गई सेवाओं की सूची बनवाई। जांच अधिकारी ने बादशाह को उन 102 अपराधों की सूची दी जो इन दोनों भाइयों द्वारा किए गए थे। जबकि इन भाइयों ने बादशाह के प्रति अब तक एक भी सेवा का कार्य नहीं किया था। इस पर बादशाह ने इन दोनों भाइयों को मरवा दिया तथा बहादुर खाँ नामक एक अमीर को गजनी का शासक बना दिया।
एक बार कामरान सेना लेकर काबुल से केवल एक पड़ाव की दूरी तक आ पहुंचा। इस पर बादशाह हुमायूँ मिर्जा कामरान से लड़ने के लिए सेना लेकर गया। थोड़ी देर की लड़ाई के बाद कामरान पराजित होकर भाग गया। इस घटना के बाद मिर्जा कामरान ने सीधे काबुल पर आक्रमण करने की बजाय हुमायूँ की सल्तनत में स्थित अनेक स्थानों पर हमले किए तथा शाही खजाने को लूट कर भागता रहा।
कुछ समय बाद जब कामरान का जोर काफी बढ़ गया तो नवम्बर 1551 में बादशाह हुमायूँ ने मिर्जा हिंदाल तथा अकबर को अपने साथ लेकर कामरान के विरुद्ध अभियान किया। जब तूमान क्षेत्र के जपरियार गांव में शाही शिविर लगा हुआ था तब एक रात कामरान ने अफगानों की एक बड़ी सेना के साथ शाही शिविर पर हमला बोल दिया। अंधेरे के कारण शत्रु और मित्र की पहचान करना संभव नहीं था। इसलिए हुमायूँ और अकबर अपने डेरे के पीछे एक ऊँचे स्थान पर खड़े हो गए। थोड़ी ही देर में चंद्रमा का उजाला हो गया और शत्रु की पहचान आसान हो गई। इस युद्ध में मिर्जा कामरान तो हारकर भाग गया किंतु मिर्जा हिंदाल मारा गया।
गुलबदन बेगम ने लिखा है कि जब कामरान तथा हुमायूँ की सेनाओं के बीच युद्ध समाप्त हो गया और मिर्जा हिंदाल अपने डेरे को लौट रहा था तब हिंदाल को एक खाई से एक आदमी के चिल्लाने की आवाज सुनाई दी। कोई व्यक्ति सहायता के लिए पुकार लगाते हुए कह रहा था कि ये लोग मुझे तलवार से मार रहे हैं, कोई मुझे बचाओ। हिंदाल ने इस आवाज को पहचान लिया। यह आवाज हिंदाल के तबकची की थी। हिंदाल अपने तबकची के प्राण बचाने के लिए उसी समय उस खाई में कूद पड़ा। उसी दौरान मिर्जा हिंदाल वीरगति को प्राप्त हुआ।
अबुल फजल ने लिखा है कि जिस अफगान सैनिक ने मिर्जा हिंदाल को जहर-बुझा भाला मारा था, वह हिंदाल के शरीर से उसका तरकस उतार कर ले गया तथा उस तरकस को मिर्जा कामरान के समक्ष प्रस्तुत किया। मिर्जा कामरान ने उस तरकस को देखते ही पहचान लिया और वह समझ गया कि यह मिर्जा हिंदाल का तरकस है। भाई के मरने का समाचार सुनते ही कामरान ने अपनी पगड़ी उतारकर धरती पर फैंक दी।
उधर ख्वाजा इब्राहीम ने मिर्जा हिंदाल के शव को पहचान लिया तथा उसे उठाकर मिर्जा हिंदाल के डेरे पर ले गया। उसने हुमायूँ के समक्ष मिर्जा हिंदाल की मृत्यु का समाचार प्रकट नहीं किया, अपितु कहा कि इस विजय पर मिर्जा हिंदाल ने आपको बधाई भिजवाई है। हुमायूँ इस वाक्य में छिपे हुए मर्मान्तक संदेश को समझ गया। उसने गुलबदन के पति ख्वाजा खिज्र खाँ से कहा कि वह मिर्जा हिंदाल का शव लेकर काबुल जाए। जब ख्वाजा खिज्र खाँ रोने लगा तो हुमायूँ ने कहा कि अभी शत्रु पूरी तरह नष्ट नहीं हुआ है इसलिए कमजोरी दिखाना उचित नहीं है।
हुमायूँ के आदेश से मिर्जा हिंदाल का शव काबुल ले जाया गया तथा बाकर के पैरों की तरफ दफना दिया गया। इस पर बाबर के एक और बेटे की इस असार संसार से विदाई हो गई। पाठकों को स्मरण होगा कि बाबर के बहुत से पुत्र बाबर के जीवन काल में ही मृत्यु को प्राप्त हो चुके थे। बाबर की मृत्यु के 21 साल बाद बाबर का यह पहला पुत्र था जो मृत्यु को प्राप्त हुआ।
– डॉ. मोहनलाल गुप्ता