निःस्वार्थ सेवा से लोहे का सरदार, सोने का सरदार हो गया!
मनुष्य हाड़-मांस से निर्मित है किंतु वह उच्च मनोबल के कारण तथा कठोर परिश्रम के बल पर लोहे से अधिक मजबूत बन जाता है। सरदार पटेल में ये दोनों विशेषताएं तो थी हीं, साथ ही उनमें मानव मात्र की सेवा करने का इतना बड़ा गुण था कि वल्लभ भाई नामक महापुरुष हाड़-मांस या लोहे का नहीं, सोने का सरदार बन चुका था।
सरदार पटेल के जेल से निकलने के कुछ समय बाद ही बोरसद तहसील के 27 गांवों में प्लेग का प्रकोप हो गया। यह क्षेत्र पहले भी इस महामारी को झेल चुका था किंतु इस बार इसकी विभीषिका अत्यंत प्रबल थी। प्लेग का नाम सुनकर सगे सम्बन्धी भी बीमार को मरने के लिये छोड़कर भाग जाते थे। सरदार पटेल को अनुमान था कि गोरी सरकार पहले की तरह इस बार भी उदासीन रहेगी। इसलिये उन्होंने स्वयं सेवकों के दल गठित किये जो गांव-गांव घूमकर लोगों की सेवा करते, मृतकों का दाह संस्कार करते तथा ग्रामीणों को प्लेग से बचने और उससे लड़ने के तरीके बताते।
सरदार ने बोरसद में एक अस्पताल स्थापित किया जहाँ प्लेग का उपचार किया जाने लगा। सरदार स्वयं गांव-गांव घूमकर बीमारों की सेवा करते तथा राहत कार्यों का नेतृत्व एवं संचालन करते। प्लेग के डर से सरकारी कर्मचारी गांवों में जाते ही नहीं थे। केवल ये स्वयं सेवक ही अपनी जान पर खेलकर लोगों को बचा रहे थे। इस निःस्वार्थ सेवा ने सरदार पटेल को कुंदन की तरह निखार दिया। लोहे का सरदार अब सोने का सरदार हो गया था। आज इस घटना को हुए 79 वर्ष हो चुके हैं किंतु आज भी यह निर्विवाद रूप से कहा जा सकता है कि यदि पटेल और उनके स्वयंसेवकों ने अपनी जान पर खेलकर प्लेग से मुकाबला न किया होता तो निश्चय ही हजारों घरों के दीपक हमेशा के लिये बुझ गये होते।
जब सरदार के स्वयं सेवक गांव-गांव घूमने लगे और गोरी सरकार की थू-थू होने लगी तो सरकार ने वक्तव्य जारी किया कि कुछ लोग निजी तौर पर प्लेग का मुकाबला करने की कोशिश कर रहे हैं, यह कदापि उचित नहीं है। इस कार्य में दक्ष चिकित्सक की आवश्यकता होती है और यह काम सरकारी स्वास्थ्य विभाग ही कर सकता है। अपरिपक्व ज्ञान के साथ इस कार्य को करना खतरनाक है।
इस पर वल्लभभाई ने समाचार पत्रों में वक्तव्य दिया कि सरकार बताये कि उसने अब तक क्या किया है ? इसी के साथ सरदार ने अपने स्वयंसेवकों द्वारा किये गये कार्य का विवरण भी भिजवाया। इस पर नागरिकों द्वारा एक स्वतंत्र जांच समिति की स्थापना की गई। इस समिति ने गांवों में जाकर सच्चाई का पता लगाया और निष्कर्ष दिया कि यह महामारी सरकार की गलती के कारण फैली।
सरकारी विभाग ने इसकी रोकथाम के लिये कुछ नहीं किया और लोग मरते रहे। यदि सरदार पटेल तथा उनके स्वयं सेवकों ने सही समय पर मोर्चा न संभाला होता तो न जाने क्या हुआ होता। सरदार पटेल के स्वयं सेवकों द्वारा की गई सेवा के कारण ही इस महामारी को उन्मूलित किया जा सका है। जब यह रिपोर्ट समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई तो पहले से ही बदनामी झेल रही गोरी सरकार की और अधिक थू-थू हुई तथा निःस्वार्थ सेवा के बल पर लोहे का सरदार, सोने का सरदार हो गया।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता