हालांकि दिल्ली के तोमर शासक कुमारपाल देव के नेतृत्व में हिन्दू राजाओं का संघ हांसी, कांगड़ा एवं कुछ अन्य दुर्ग गजनी के गवर्नरों से मुक्त करवाने में सफल रहा किंतु कुछ ही समय पश्चात् लाहौर से आगरा तक गजनी के सांप लहराने लगे!
जब गजनी के गर्वनर हांसी, कांगड़ा तथा लाहौर आदि दुर्गों पर अधिकार जमाकर बैठ गए और रावी नदी तक का क्षेत्र स्थाई रूप से गजनी के अधिकार में चला गया तो भारतीय राजाओं ने गजनी के गवर्नरों के विरुद्ध एक संघ बनाया। दिल्ली के तोमर राजा कुमारपाल देव ने इस संघ के लिए पहल की तथा परमार राजा भोज, कल्चुरी राजा कर्ण, चौहान राजा अन्हिल्ल तथा अजमेर के चौहान शासक दुर्लभराज (तृतीय) ने तोमर राजा कुमारपाल का साथ दिया।
इस कारण हिन्दुओं की सेना में 10 हजार घुड़सवार तथा 72 हजार पैदल सैनिक हो गए। इस सेना ने लाहौर से आगरा तक के किले गजनी के गवर्नरों से मुक्त करवाने का निश्चय किया। उन्होंने सबसे पहले लाहौर दुर्ग को मुस्लिम नियंत्रण से मुक्त करवाने के लिए अभियान किया।
हिन्दूशाही वंश का राजकुमार संदपाल भी इस अभियान में सम्मिलित हो गया। उसे तकेश्वर पर घेरा डालने का काम दिया गया। तकेश्वर को मुसलमान तकीशाह कहते थे। संदपाल ने पंजाब में कालानूर नामक स्थान के पास मुसलमानों की एक सेना को बुरी तरह से पराजित किया।
जब युद्ध समाप्त होने ही वाला था तब एक तीर संदपाल के शरीर में आकर लगा जिससे संदपाल की मृत्यु हो गई। इस प्रकार हिन्दूशाही वंश के राजाओं जयपाल, आनंदपाल, भीमपाल, त्रिलोचनपाल तथा संदपाल ने अपनी कई पीढ़ियां खपा दीं किंतु वे गजनी के आक्रांताओं से अपना राज्य मुक्त नहीं करवा सके।
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उधर दिल्ली के राजा कुमारपाल देव के साथ कई हिन्दू राजा, सात महीने तक लाहौर पर घेरा डाले रहे। उन्होंने लाहौर नगर का परकोटा तोड़ दिया तथा नगर में घुस गए। दोनों पक्षों की सेनाएं नगर के भीतर घमासान करने लगीं। लाहौर नगर की ऐसी कोई गली नहीं थी जिसमें तलवारें न चली हों, रक्त न बहा हो तथा भारतीयाों ने अपना देश आजाद करवाने के लिए अपने शरीर न्यौछावर न किए हों। भीषण लड़ाई के बाद गजनी की सेना के पैर उखड़ गए और वह भागकर लाहौर के किले में बंद हो गई।
हिन्दू वीरों ने किले के बाहर मोर्चा संभाला। कई महीनों के प्रयासों के बाद दुर्ग बुरी तरह क्षतिग्रस्त कर दिया गया तथा किले की कुछ दीवारें भी नष्ट कर दी गईं। फिर भी हिन्दू किले में नहीं घुस सके क्योंकि गजनी के सैनिक किले की प्राचीरों पर से तेल में भीगे हुए कपड़े, गर्म तेल, पत्थर और तीर बरसा रहे थे। कई दिनों तक यही स्थिति बनी रही। अंत में एक दिन गजनी से विशाल सेना आ पहुंची और उन्होंने लाहौर किले के बाहर पड़ी हुई हिन्दू सेना पर धावा बोल दिया।
अब तो हिन्दू सैनिक चक्की के दो पाटों की तरह बीच में पिस गए। हिन्दू राजा अपनी बची हुई सेनाओं को समेट कर अपने-अपने राज्यों के लिए चले गए। लाहौर विजय का सपना अधूरा रह गया। हिन्दू राजा हार गए तथा गजनी के तुर्कों को भारत से निकालने का सपना पूरा नहीं हो सका। फिर भी हिन्दू राजा इतना संतोष अवश्य कर सकते थे कि हांसी और नगरकोट (कांगड़ा) के दुर्ग हिन्दुओं के पास बने रहे। ई.1051 में महमूद गजनवी का छठा पुत्र अब्दुर्रशीद गजनी का शासक हुआ। उसने नुशतुगीन हाजिब नामक एक अमीर को पंजाब का सूबेदार बनाया। नुशतुगीन ने कांगड़ा दुर्ग पर घेरा डाला। दिल्ली का तोमर शासक कभी नहीं चाहता था कि नगरकोट का दुर्ग फिर से गजनी के तुर्कों के हाथों में जाए। इसलिए उसने कांगड़ा के दुर्ग को बचाने के लिए जी-जान दोनों झौंक दिए। अंत में वह स्वयं भी इस युद्ध में काम आया। छः दिन की घेराबंदी के बाद गजनी की सेना ने कांगड़ा दुर्ग की एक दीवार तोड़ ली और उन्होंने दुर्ग पर अधिकार कर लिया। इस दुर्ग पर अधिकार होते ही एक बार फिर से रावी नदी तक का क्षेत्र गजनी के अधिकार में चला गया। भारत की पश्चिमी सीमा एक बार फिर से रावी नदी तक सीमित होकर रह गई।
ई.1059 में मसूद का पुत्र इब्राहीम गजनी का सुल्तान हुआ। वह ई.1099 तक गजनी पर शासन करता रहा। उसने पंजाब के तबरहिंद, बुरिया, धंगान, जालंधर, अजूधन रूपदाल और देरा आदि क्षेत्रों को जीत लिया। तबरहिंद का वास्तविक नाम सरहिंद था, वर्तमान समय में इसे सिरसागढ़ के नाम से जाना जाता है। बुरिया वर्तमान हरियाणा में अम्बाला के निकट स्थित था। रूदपाल को रूपाल या नूरपाल भी कहा जाता था।
ई.1075 में गजनी के सुल्तान इब्राहीम ने अपने पुत्र महमूद को पंजाब का सूबेदार नियुक्त किया। महमूद ने 40 हजार घुड़सवारों को अपने साथ लेकर आगरा के किले पर घेरा डाला। आगरा का हिन्दू किलेदार चहता था कि महमूद उससे संधि कर ले किंतु महमूद चाहता था कि किलेदार बिना किसी शर्त के किला खाली कर दे। इसलिए घेरा लम्बा चलता रहा। हिन्दू सैनिक किले की प्राचीर से तीर, पत्थर एवं जले हुए कपड़े फैंकते रहे किंतु अंत में महमूद की सेना ने आगरा का किला तोड़ लिया। महमूद ने आगरा के किले से मिली सम्पत्ति को लूट लिया तथा कन्नौज, मालवा एवं कालिंजर की तरफ धावे मारकर वापस लाहौर आ गया।
इस प्रकार लाहौर से आगरा तक गजनी के सांप लहराने लगे।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता