मुगल कालीन शाही हरम पर नियंत्रण रखने वाले ख्वाजासरों को उनके बाल्यकाल में शाही एवं अमीर पुरुषों के साथ यौन सम्बन्ध बनाने के लिए विवश किया जाता था जब वे वयस्क हो जाते थे तो उनमें से बहुत से ख्वाजासरों के शाही हरम की औरतों के साथ प्रेम सम्बन्ध बन जाते थे। इस कारण मुगल हरम में समलैंगिकता की प्रवृत्ति प्रचलित हो गई थी।
कहा नहीं जा सकता कि मनुष्यों में समलैंगिकता की प्रवृत्ति कितनी पुरानी है किंतु विश्व भर के देशों से प्राप्त प्राचीन शिलालेखों, गुहाचित्रों, मूर्तियों एवं पुस्तकों आदि से समलैंगिक सम्बन्धों के पुराने साक्ष्य मिलते हैं।
मेसोपोटामिया की प्राचीन सभ्यता से मिले प्रस्तर-अंकनों में समलैंगिक स्त्री-पुरुषों का अंकन मिलता है। प्राचीन यूनान में समलैंगिकता को कला, बौद्धिकता और नैतिक गुणों की तरह देखा जाता था। प्राचीन यूनान के देवताओं, होरेस और सेठ को भी ‘गे’ कहा जाता था। प्राचीन रोमन सभ्यता में भी इसे बुरा नहीं माना जाता था।
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भारत में तीसरी शताब्दी ईस्वी पूर्व के लेखक ‘महर्षि वात्सायन’ ने अपने ग्रंथ ‘कामसूत्र’ में समलैंगिकता का उल्लेख करते हुए इसे स्वास्थ्य के लिए बुरा बताया है किंतु इससे स्पष्ट हो जाता है कि उस काल के भारत में समलैंगिकता की प्रवृत्ति मौजूद थी यद्यपि उसे नैतिक एवं भौतिक दृष्टि से बुरा माना जाता था।
इजराइल से जुड़े मरुस्थल से ग्यारह हजार वर्ष पुराना एक स्टोन आर्टवर्क मिला है जिसमें दो पुरुषों को शारीरिक सम्बन्ध बनाते हुए दर्शाया गया है।
पहली सदी ईसा पूर्व के एक सिल्वर कप के ऊपर दो पुरुषों को सम्बन्ध बनाते हुए दिखाया गया है। एक अन्य कप पर 18वीं सदी की दो महिलाओं को सम्बन्ध बनाते हुए दिखाया गया है। इन्हें यूरोप की मशहूर कुआंरी हस्तियां कहा जाता है। आठवीं शताब्दी ईस्वी के तुर्की शासक मेहमद को ‘हेट्रोसेक्शुअल’ कहा जाता है। वह सुंदर एवं युवा पुरुषों की इच्छा रखता था। इस काल की फारसी कविताएं समलैंगिक सम्बन्धों के संदर्भों से भरी पड़ी हैं। हाफिज और सादी जैसे फारसी साहित्य के रचियता मध्ययुग में मदरसों के पाठ्यक्रम का मुख्य अंग थे।
इटली के पुनर्जागरण काल से जुड़े कई विचारक, दार्शनिक, लेखक और राजनीतिक कार्यकर्ता स्वयं को ‘गे’ कहते थे। वे अपने समलैंगिक सम्बन्धों को सार्वजनिक रूप से स्वीकार करते थे। पुनर्जागरण काल का प्रसिद्ध शिल्पकार माइकल एंजेलो भी स्वयं को ‘गे’ कहता था। उसकी रचनाओं में अधिकतर ‘गे’ और ‘लेस्बियन’ सम्बन्ध दर्शाए गए हैं।
जीवों में समलैंगिकता की प्रवृत्ति पर जर्मनी के लेखक एडवर्ड कारपेंटर और फ्रांसीसी विद्वान रेफोल्विक ने महत्वपूर्ण शोधग्रंथ लिखे हैं। एक पुरुष द्वारा दूसरे पुरुष के साथ अथवा एक स्त्री का दूसरी स्त्री के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाने वाले व्यक्ति होमोसेक्शुअल कहलाते हैं जबकि कुछ स्त्री-पुरुष विपरीत लिंगी और समलिंगी दोनों में दिलचस्पी रखते हैं, इन्हें बायोसेक्शुअल कहा जाता है।
बारहवीं शताब्दी ईस्वी में जब तुर्कों ने भारत में दिल्ली सल्तनत की स्थापना की, तभी से भारत के शाही महलों में समलैंगिकता के उदाहरण प्राप्त होने लगते हैं। तेरहवीं शताब्दी ईस्वी के सुल्तान अल्लाउद्दीन खिलजी का एक गुलाम मलिक काफूर के नाम से जाना जाता है। वह एक सुंदर लड़का था, उसे सुल्तान के एक सेनापति द्वारा सुल्तान को भेंट किया गया था।
कुछ इतिहासकारों ने मलिक काफूर को हिंजड़ा बताया है जबकि इब्नबतूता ने लिखा है कि मलिक काफूर गुजरात के खंभात में रहने वाले धनी हिंजड़े ख्वाजा का हिन्दू गुलाम था जिसे इस्लाम में परिवर्तित करके अल्लाऊद्दीन खिलजी को प्रस्तुत किया गया था। इब्नबतूता के अनुसार इस गुलाम को 1000 दीनार में खरीदा गया था। आचार्य चतुरसेन ने लिखा है कि मलिक काफूर सुल्तान अल्लाऊद्दीन खिलजी की पुरुष-रखैल था जिसे खिलजी ने यौन सम्बन्ध बनाने के लिए खरीदा था।
जब मुगल भारत में आए तो मुगल हरम में भी समलैंगिकता की प्रवृत्ति थी। बाबर ने अपने संस्मरणों में लिखा है कि वह एक लड़के से प्रेम करता था। जब उसे इस लड़के को छोड़ना पड़ा तो बाबर को बड़ी मानसिक पीड़ा हुई। अकबर कालीन भक्त कवि सैयद इब्राहिम भी अपने यौवन के प्रारम्भिक काल में एक लड़के पर आसक्त थे किंतु बाद में विरक्त होकर रसखान के नाम से भक्ति-रचनाएं लिखने लगे।
जब अकबर ने मुगल शहजादियों के विवाह करने पर रोक लगा दी तब मुगल शहजादियों में समलैंगिकता की प्रवृत्ति बढ़ी।
शाहजहाँकालीन कुछ लेखों और दस्तावेजों से न केवल दो पुरुषों के बीच अपितु महिलाओं के बीच भी प्रेम और यौन संबंधों की पुष्टि हुई है। कुछ तत्कालीन स्रोतों के अनुसार जहानआरा अपनी एक दासी से प्रेम करती थी। एक बार जब वह दासी नृत्य कर रही थी तब उसके कपड़ों में आग लग गई।
जहानआरा ने अपनी प्रिय दासी को आग की लपटों से बचाने के लिए अपने प्राण दांव पर लगा दिए जिसके कारण जहानआरा बुरी तरह जल गई और मरते-मरते बची। बहुत से लोग जहानआरा बेगम पर उसके पिता शाहजहाँ के साथ अनैतिक सम्बन्ध होने का आरोप लगाते हैं।
औरंगजेब ने मुगल हरम में पनप रही अनैतिक सम्बन्धों की प्रवृत्ति को पहचाना तथा इसे दूर करने के लिए मुगल शहजादियों को विवाह करने की अनुमति प्रदान कर दी तथा मुगल हरम में पल रहे शहजादों एवं शहजादियों के आपस में विवाह करवा दिए।
अंग्रेजी वेब पोर्टल ‘डेली ओ’ पर उपलब्ध ‘लुबना इरफान’ के लेख के अनुसार दाराशिकोह के साथी सरमद नामक एक दरवेश को दाराशिकोह के साथ मृत्युदण्ड दिया गया था। सरमद एक यहूदी रब्बी युवक था जो काशन से भारत आकर दाराशिकोह की नौकरी करने लगा था।
मुल्लाओं ने सरमद पर कई आरोप लगाए जिनके अनुसार सरमद ने हजरत मुहम्मद को नकारने के लिए आधा कलमा- ‘ला इलाहा’ पढ़ा था जिसका अर्थ होता है कि कोई अल्लाह नहीं है। कुछ मौलवियों ने सरमद पर आरोप लगाया कि वह थट्टा नामक एक हिंदू युवक के प्रेम में दीवाना होकर नंगे दरवेश के रूप में रहता है।
जब औरंगजेब द्वारा गठित मौलवियों की एक समिति द्वारा इन आरोपों पर विचार किया गया तो यह पाया गया कि सार्वजनिक रूप से नंगे रहने अथवा एक पुरुष के दूसरे पुरुष से प्रेम करने के लिए उसे प्राणदण्ड नहीं दिया जा सकता किंतु हजरत मुहम्मद अथवा अल्लाह के विरुद्ध बोलने के लिए उसे प्राणदण्ड दिया जाना चाहिए।
मुगल हरम में समलैंगिकता की तरह ही ईरान के तत्कालीन सफाविद राजवंश में भी समलैंकिगकता की प्रवृत्ति विद्यमान थी। अनेक पुराने लेखों और दस्तावेजों में ईरान के शासक शाहअब्बास (ई.1588-1629) को आकर्षक खिदमतगारों के शौकीन के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता