दूसरे शहजादों की तरह शाहशुजा भी लाल किले और तख्ते ताउस पर कब्जा करने का स्वप्न देखा करता था। उसने स्वयं को बादशाह घोषित करके आगरा कूच कर दिया!
ई.1657 में शाहजहाँ के दुबारा बीमार पड़ने की सूचना मिलते ही दक्षिण में नियुक्त औरंगज़ेब और मालवा में नियुक्त मुरादबक्श ने अपने-अपने मौलवियों से बड़े भाई दारा के विरुद्ध अलग-अलग फतवे जारी करवाए जिनमें दारा शिकोह को काफ़ि़र घोषित किया गया।
औरंगज़ेब और मुरादबक्श के इस कदम से मुगलिया सल्तनत की राजनीति में सक्रिय सुन्नी अमीरों का ध्यान बरबस ही इन दोनों शहजादों की ओर गया। इन अमीरों को मुगलों के अगले वारिस के रूप में दारा के स्थान पर मुरादबक्श तथा औरंगजेब, अधिक अच्छे लगते थे किंतु अब इन दोनों शहजादों ने अपने इरादे शीशे की तरह साफ कर दिए थे कि वे दाराशिकोह को कड़ी चुनौती देंगे।
औरंगज़ेब और मुरादबक्श द्वारा दारा शिकोह को काफिर घोषित करते ही शाहजहाँ के दूसरे नम्बर के शहजादे शाहशुजा ने स्वयं को बादशाह घोषित कर दिया जो इन दिनों बंगाल का सूबेदार था। औरंगज़ेब पहले से ही उसे अपनी चिट्ठियों में हिन्दुस्तान का भावी बादशाह कहकर सम्बोधित करता रहा था। इस कारण शाहशुजा के हौंसले बुलंद थे। उसे लगता था कि औरंगज़ेब और मुराद, दारा शिकोह की जगह शाहशुजा को बादशाह के तख्त पर बैठे हुए देखना चाहते हैं।
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स्वयं को बादशाह घोषित करने के बाद शाहशुजा ने अपनी सेना के साथ आगरा के लिए कूच कर दिया और अपने दोनों छोटे भाइयों को परवाने भेज कर आदेश दिए कि वे भी अपनी-अपनी सेनाओं के साथ बिना किसी विलम्ब के आगरा की ओर कूच करें। शुजा ने अपनी सेना में प्रचारित किया कि दुष्ट दारा शिकोह ने बादशाह सलामत को जहर देकर आगरा पर कब्जा कर लिया है इसलिए मैं दारा को दण्ड देने जा रहा हूँ।
जब दारा को शाहशुजा के आगरा की तरफ कूच करने की सूचना मिली तो उसने बादशाह के दस्तखतों एवं मुहर से शाहशुजा को शाही फरमान भिजवाया कि वह फौरन अपनी सेनाओं के साथ बंगाल की ओर लौट जाए किंतु शाहशुजा ने शाही फरमान की तनिक भी परवाह नहीं की और वह आगरा की ओर बढ़ता रहा।
शुजा ने राजमहल नामक स्थान पर अपनी ताजपोशी की रस्म करवाई और अपनी विशाल सेनाओं को लेकर बड़ी तेजी से गंगा के किनारे-किनारे आगे बढ़ा। मार्ग में उसे किसी विरोध का सामना नहीं करना पड़ा और जनवरी 1658 में वह बनारस तक आ पहुँचा।
विद्रोही शाहशुजा का मार्ग रोकने के लिए वली-ए-अहद दारा शिकोह ने अपने पुत्र सुलेमान शिकोह की अध्यक्षता में एक सेना बनारस की तरफ भेजी। आम्बेर के मिर्जा राजा जयसिंह तथा दिलेर खाँ रूहेला को भी सुलेमान शिकोह की सहायता के लिए भेजा गया। मिर्जा राजा जयसिंह को सुलेमान शिकोह का ‘अतालीक और कारगुजार’ घोषित किया गया।
मारवाड़ नरेश जसवंतसिंह भी उस समय आगरा में थे। इसलिए उन्हें भी शाहशुजा को रोकने के लिए अलग से रवाना किया गया। दारा शिकोह द्वारा भेजी गई सारी सेनाएं बनारस में जाकर रुक र्गईं। दारा के पुत्र सुलेमान शिकोह ने एक बार फिर बादशाही फरमान अपने चाचा शाहशुजा को भिजवाया कि वह तुरंत बंगाल की तरफ लौट जाए तथा फिर किसी मुबारक समय में बादशाह के कदमों में गिरकर अपने अपराधों के लिए क्षमा याचना करे किंतु शाहशुजा ने इस बार भी शाही फरमान को हवा में उड़ा दिया।
आखिर शाहशुजा की तरफ से पूरी तरह निराश होकर सुलेमान शिकोह ने शाही सेनाओं को आदेश दिए कि वे शाहशुजा की सेनाओं को खत्म कर दें तथा बगावत पर उतारू शहजादे को हर हाल में बंदी बना कर हमारे हुजूर में पेश करें। बनारस के निकट बहादुरपुर नामक स्थान पर दोनों ओर की सेनाओं में भीषण संग्राम हुआ। जब शाहशुजा की सेना परास्त होने लगी तो उसने सुलेमान शिकोह के सामने सन्धि का प्रस्ताव रखा।
हालांकि आगरा में बैठा दारा चाहता था कि सुलेमान, शाहशुजा से सख्ती से निबटे किंतु दारा यह भी जान चुका था कि शहजादा मुराद गुजरात से और शहजादा औरंगज़ेब दक्षिण से अपनी-अपनी सेनाएं लेकर राजधानी आगरा की ओर बढ़ रहे हैं। इसलिए दारा ने शाहजहाँ से बात की तथा शाहशुजा द्वारा भेजे गए संधि के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। शाहशुजा को बंगाल चले जाने की अनुमति दे दी गई तथा सुलेमान शिकोह एवं मिर्जा राजा जयसिंह को आगरा बुला लिया गया।
इस सन्धि के अनुसार शाहशुजा को उड़ीसा, बंगाल तथा पूर्वी बिहार के प्रान्त दिए गए। इसके बदले में शाहशुजा ने भविष्य में फिर कभी बगावत नहीं करने तथा मुंगेर के पास स्थित राजमहल को अपनी राजधानी बनाकर वहीं तक सीमित रहने का वचन दिया।
दारा समझ रहा था कि इस संधि के बाद शाहशुजा शांत होकर चला जाएगा किंतु शाहशुजा तो मुराद और औरंगज़ेब के आगरा पहुंचने तक का समय चाहता था।
इसी दौरान शाहशुजा ने सुना कि शहजादे मुराद ने भी स्वयं को बादशाह घोषित कर दिया है। इस पर शाहशुजा निराश हो गया तथा सुलेमान शिकोह से हुई संधि की शर्तों के अनुसार बंगाल के लिए रवाना हो गया। अगली कड़ी में देखिए- शहजादे मुराद ने भी स्वयं को बादशाह घोषित करके आगरा की ओर कूच कर दिया!
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता