गयासुद्दीन तुगलक ने सुल्तान बनने के बाद मुस्लिम प्रजा की आर्थिक एवं धार्मिक उन्नति के लिए कई कदम उठाए तथा हिन्दू प्रजा को धन-सम्पत्ति का संग्रहण करने से वंचित कर दिया। गयासुद्दीन ने अनुभव किया कि अल्लाउद्दीन खिलजी के जीवन काल में ई.1312 में दिल्ली सल्तनत का जो क्षरण आरम्भ हुआ था, वह अब भी निरंतर जारी था। कई मुस्लिम गवर्नर तथा हिन्दू राजा स्वतंत्र होकर दिल्ली से सम्बन्ध तोड़ चुके थे। इसलिए उसने तख्त पर बैठने के बाद उन प्रांतों एवं राज्यों को फिर से जीतने के लिए सैनिक अभियान किए। ये अभियान पांच साल तक निरंतर चलते रहे।
ई.1321 में गयासुद्दीन तुगलक ने तेलंगाना पर आक्रमण किया जिसकी राजधानी वारांगल थी। इन दिनों तेलंगाना में काकतीय वंश का राजा प्रताप रुद्रदेव (द्वितीय) शासन कर रहा था। यह राज्य अल्लाउद्दीन खिलजी के समय से दिल्ली को खिराज दे रहा था किंतु अल्लाउद्दीन की मृत्यु के बाद उसने दिल्ली को खिराज देना बन्द कर दिया और स्वतन्त्र होने का प्रयास करने लगा।
गयासुद्दीन तुगलक ने अपने पुत्र जूना खाँ को एक विशाल सेना देकर वारांगल पर आक्रमण करने भेजा। जूना खाँ ने वारांगल पर घेरा डाल दिया। छः माह तक घेरा चलने पर भी दिल्ली की सेना को विजय प्राप्त नहीं हुई। इसी बीच शहजादे जूना खाँ को सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक के मरने की आशंका हुई और वह घेरा उठाकर दिल्ली की ओर रवाना हो गया। दिल्ली पहुँच कर उसे अपनी भूल का अहसास हुआ। उसने सुल्तान से क्षमा याचना की और ई.1323 में पुनः वारांगल के लिए रवाना हो गया।
इस युद्ध में राजा प्रताप रुद्रदेव (द्वितीय) की पराजय हुई और वह सपरिवार बन्दी बनाकर दिल्ली भेज दिया गया। तेलंगाना का राज्य, दिल्ली में मिला लिया गया और वहाँ पर एक मुसलमान शासक नियुक्त कर दिया गया। इस विजय से जूना खाँ ने अपने पिता का विश्वास पुनः अर्जित कर लिया।
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वारांगल अभियान के पूरा होते ही ई.1323 में सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक ने अपने पुत्र जूना खाँ को उड़ीसा प्रांत में स्थित जाजनगर पर अभियान करने के आदेश दिए क्योंकि जाजनगर के राजा भानुदेव (द्वितीय) ने वारांगल के राजा प्रताप रुद्रदेव (द्वितीय) की सहायता की थी। इस अभियान में शहजादे को सामरिक विजय के साथ-साथ लूट का बहुत सा माल तथा 50 हाथी मिले। जूना खाँ लूट का माल लेकर दिल्ली लौट आया। राजा भानुदेव (द्वितीय) ने दिल्ली की अधीनता स्वीकार कर ली तथा वार्षिक कर देने का वचन दिया इसलिए गयासुद्दीन तुगलक ने जाजनगर राज्य को दिल्ली सल्तनत में नहीं मिलाया।
अभी शहजादा जूना खाँ जाजनगर में ही था कि सुल्तान गयासुद्दीन को पश्चिमोत्तर सीमा पर मंगोल आक्रमण की सूचना मिली। मंगोल ई.1307 से भारत से दूर थे। पूरे 17 साल बाद उन्होंने भारत पर आक्रमण किया तथा वे समाना तक आ गए। सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक ने समाना के हाकिम अल्लाउद्दीन की सहायता के लिए दिल्ली से एक सेना भेजी। इस सेना ने पहली बार शिवालिक पहाड़ी के पास तथा दूसरी बार व्यास नदी के किनारे मंगोलों को परास्त किया। अनेक प्रमुख मंगोल योद्धा बंदी बना लिए गए तथा बचे हुए मंगोल दिल्ली सल्तनत की सीमा से बाहर भाग गए।
जिस समय गयासुद्दीन तुगलक दिल्ली का सुल्तान हुआ, उन दिनों बंगाल में शमसुद्दीन के तीन पुत्रों- शिहाबुद्दीन, गयासुद्दीन बहादुर तथा नासिरूद्दीन में उत्तराधिकार का युद्ध चल रहा था। इस झगड़े में गयासुद्दीन बहादुर को सफलता प्राप्त हुई। उसने अपने दोनों भाइयों शिहाबुद्दीन तथा नासिरूद्दीन को लखनौती से मार भगाया और स्वयं को बंगाल का सुल्तान घोषित कर दिया।
शिहाबुद्दीन तथा नासिरूद्दीन ने सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक से हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया। गयासुद्दीन ने उनका अनुरोध स्वीकार कर लिया तथा राजधानी दिल्ली का प्रबन्ध अपने पुत्र जूना खाँ को सौंप कर, स्वयं एक सेना लेकर बंगाल के लिए चल दिया। बंगाल के सुल्तान गयासुद्दीन बहादुर ने दिल्ली के सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक का सामना किया परन्तु परास्त हो गया और कैद कर लिया गया। गयासुद्दीन तुगलक ने नासिरूद्दीन को लखनौती का शासक बना दिया। इस प्रकार बंगाल पर फिर से दिल्ली सल्तनत का अधिकार स्थापित हो गया।
जब सुल्तान लखनौती से दिल्ली लौट रहा था तब उसने मार्ग में मिथिला क्षेत्र में स्थित तिरहुत राज्य पर आक्रमण किया। इन दिनों राजा हरिसिंहदेव तिरहुत पर शासन कर रहा था। हरिसिंह पराजित होकर जंगलों में भाग गया। तिरहुत दिल्ली सल्तनत में सम्मिलित कर लिया गया। अहमद खाँ को वहाँ का गवर्नर बनाया गया।
तिरहुत पर विजय प्राप्त करने के उपरान्त सुल्तान ने दिल्ली के लिए प्रस्थान किया। इब्नबतूता के अनुसार सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक ने शहजादे जूना खाँ के पास आज्ञा भेजी कि राजधानी से कुछ दूरी पर एक महल बनाया जाये जिससे सुल्तान उसमें रात्रि व्यतीत करके, दूसरे दिन समारोह के साथ राजधानी में प्रवेश कर सके। इस पर शहजादे ने मीर-इमारत अहमद अयाज को लकड़ी का एक महल बनाने की आज्ञा दी।
जब सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक वापस आया तब शहजादे ने तुगलकाबाद में बड़े समारोह के साथ उसका स्वागत किया। तुगलकाबाद से तीन-चार मील दूर अफगानपुर में सुल्तान को प्रीतिभोज देने के लिए एक शामियाना लगवाया गया। जब भोजन समाप्त हो गया, तब समस्त आमन्त्रित व्यक्ति शामियाने के बाहर निकल आए।
केवल सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक तथा उसका एक छोटा पुत्र, जिसमें सुल्तान की विशेष अनुरक्ति थी, शामियाने के भीतर रह गए। इसी समय शहजादे जूना खाँ ने सुल्तान से अनुमति मांगी कि बंगाल से जो हाथी लाये गए हैं, उनका संचालन किया जाए। सुल्तान सहमत हो गया। जब हाथियों का संचालन हो रहा था तब अचानक शामियाना गिर पड़ा और सुल्तान तथा उसके अल्पवयस्क पुत्र महमूद खाँ की मृत्यु हो गई।
उसी रात सुल्तान का शरीर तुगलकाबाद के मकबरे में दफना दिया गया। जियाउद्दीन बरनी ने सुल्तान की मृत्यु का सारा दोष प्रकृति पर डाला है। उसने लिखा है- ‘बलाए आसमानी वर जमीनान नाजिलशुद्ध’ अर्थात् आकाश से धरती पर बिजली गिर गई। जबकि वास्तविकता यह है कि फरवरी के महीने में न तो बरसात होती है और न आसमन से बिलजियां गिरा करती हैं।
हरिशंकर शर्मा ने अपनी पुस्तक मध्यकालीन भारत में निजामुद्दीन अहमद के संदर्भ से लिखा है कि गयासुद्दीन तुगलक के सम्बन्ध निजामुद्दीन औलिया से अच्छे नहीं थे। अतः उसने बंगाल आक्रमण के उपरांत दिल्ली पहुंचकर, निजामुद्दीन औलिया को दण्डित करने की घोषणा की। इस पर निजामुद्दीन औलिया ने कहा था- ‘हनूज दिल्ली इरस्त’ अर्थात् अभी दिल्ली दूर है। इसका अर्थ यह निकाला जाता हे कि सुल्तान गयासुद्दीन कभी भी दिल्ली जीवित नहीं पहुंचेगा। वास्तव में ऐसा हुआ भी। इसलिए कहा जाता है कि इस घटना में निजामुद्दीन औलिया का हाथ था।
तत्कालीन मुस्लिम इतिहासकारों ने गयासुद्दीन तुगलक को न्यायप्रिय शासक बताया है और लिखा है कि वह दिन में दो बार दरबार लगाकर लोगों के झगड़े निबटाता था। उसने दिल्ली सल्तनत के गौरव को बढ़ाया। उसके दुर्भाग्य से उसका पुत्र जूना खाँ अत्यंत महत्त्वाकांक्षी था जो जल्दी से जल्दी दिल्ली का सुल्तान बनना चाहता था इसलिए जूना खाँ ने छल से सुल्तान की हत्या कर दी।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता