मुहम्मद अली जिन्ना ने जिस पाकिस्तान के लिए पांच लाख से अधिक हिन्दुओं एवं सिक्खों का खून बहाया, उस पाकिस्तान में शिया मुसलमानों की हत्या ठीक वैसे ही होती है जैसे कि जिन्ना के अनुयायी भारत में हिन्दुओं एवं सिक्खों की हत्या करते थे।
पाकिस्तान निर्माण के समय पाकिस्तान में शियाओं की जनसंख्या लगभग 35 प्रतिशत थी किंतु 2019 में यह 10 से 15 प्रतिशत अनुमानित की गई। शिया-मुसलमान पाकिस्तान का सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समुदाय है। शिया मुसलमान भी अलग-अलग समूहों में विभक्त हैं। अधिकतर शिया तवेलवर समुदाय के हैं। इनके अलावा इस्माइली, खोजा और बोहरा समुदायों की भी अच्छी संख्या है। पाकिस्तान के कट्टर मुसलमान एवं आतंकी संठन इन सभी शिया मुसलमानों की हत्या बिना किसी भेदभाव के करते हैं।
तवेलवर शियाओं में सबसे ज्यादा हाजरा जनजाति के शिया हैं। ये क्वेटा और आसपास के इलाकों में केन्द्रित हैं तथा क्वेटा में इनकी संख्या लगभग 7 लाख है। आतंकी हमलों में मारे जाने वाले हर 10 शिया मुसलमानों में से 5 हाजरा समुदाय के होते हैं। अर्थात् पाकिस्तान में तवेलवर शिया मुसलमानों की हत्या सबसे अधिक होती है।
पाकिस्तान में शिया विरोधी आंदोलन लगभग 34 साल पहले ईरान की क्रांति के बाद आरम्भ हुआ। सुन्नी कट्टरपंथियों की मांग है कि शियाओं को भी काफिर घोषित किया जाए। अलगाववादियों के खूनी संघर्ष के कारण कुर्रम, पराचिनार और हंगू आदि क्षेत्र शियाओं की कब्रगाह बन चुके हैं।
कराची के शिया मोहल्लों को लगभग किलों में बदल दिया गया है। आत्मघाती हमलावर बारूद से भरी कारें लेकर अब्बास टाउन तथा अन्य शिया बहुल नगरों में घुस जाते हैं और बड़ी संख्या में शियाओं की लाशें दिखाई देने लगती हैं।
ई.1980 से 1985 के बीच जनरल जिया उल हक की सरकार के समय पाकिस्तान का नए सिरे से इस्लामीकरण हुआ और सिपाह-ए-साहबा जैसे कट्टारपंथी संगठनों को फैलने का अवसर मिला। सिपाह-ए-साहबा ने अपने अस्तित्व में आने के बाद से ही शिया संप्रदाय के लोगों पर हमले आरम्भ कर दिए। सुन्नी चरमपंथियों से मुकाबला करने के लिए शियाओं ने तहरीक-ए-निफाज़-ए-फिकाह-जाफरिया नामक संगठन खड़ा किया लेकिन इसके बाद से ही शियाओं पर खूनी हमले आरम्भ हो गए, जो अब तक जारी हैं। पाकिस्तान के अधिकतर आतंकवादी संगठन सुन्नी मुसलमानों के हैं।
ये सभी संगठन शियाओं के खिलाफ कुछ न कुछ हिंसक कार्यवाही करते रहते हैं। तालिबान, अलकायदा और लश्कर-ए-झांगवी ‘देवबंदी मुसलमान’ हैं, जो शियाओं का अस्तित्व मिटा देना चाहते हैं। लश्कर-ए-झांगवी नामक आतंकवादी संगठन ने ई.2011 में पाकिस्तान के शिया मुसलमानों को धमकी दी कि पाकिस्तान के समस्त शिया मुसलमानों को मौत के घाट उतारा जाएगा और पाकिस्तान उनकी कब्रगाह बनेगा।
तब से लश्कर-ए-झांगवी लगातार शियाओं के धार्मिक स्थानों पर हिंसक कार्यवाहियां कर रहा है। हर साल शियाओं पर बड़े हमले करके दहशत फैलाई जाती है ताकि शिया भयभीत होकर अपने घरों को छोड़ दें और एक जगह इकट्ठे हो जाएं।
ई.2012 में 125 से अधिक शिया मुसलमानों की हत्या की गई। ई.2013 में बलूचिस्तान में शिया-हज़ारा-समुदाय के लगभग 200 लोगों को मारा गया। 10 जनवरी 2013 को क्वेटा में हुए 2 धमाकों में 115 लोगों की मौत हो गई जिनमें से अधिकतर ‘हजारा शिया’ थे। इस घटना के एक माह के भीतर ही कैरानी रोड धमाके में 89 शिया मारे गए। एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2013 से 2016 तक हुए बम धमाकों में 2,000 से अधिक शिया मुसलमानों को मौत के घाट उतारा गया और लाखों शियाओं को सुन्नी बहुल इलाकों से पलायन करने के लिए विवश किया गया।
पाकिस्तान में शियाओं के लिए सरकारी नौकरी और सुविधाएं भी धीरे-धीरे घटा दी गई हैं। वर्ष 2018 में सैनिक वर्दी पहने कुछ आतंकियों ने रावलपिंडी से गिलगित जा रही चार बसें रुकवाकर अब्बास या जाफरी जैसे शिया नाम वाले 46 लोगों को उतार कर मार डाला। मस्तुंग और क्वेटा में हजारा शिया मुसलमानों की हत्या किसी बड़े नरसंहार से कम नहीं होती। ऐसा नरसंहार पाकिस्तान में अनेक स्थानों पर बार-बार दोहराया गया है।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता