Thursday, December 26, 2024
spot_img

शाइस्ता खाँ की अंगुली

शाइस्ता खाँ की अंगुली मुगलिया इतिहास की ऐसी पहेली है जिसकी मिसाल पूरी दुनिया में और कहीं मिलनी कठिन है। छत्रपति शिवाजी ने शाइस्ता खाँ की अंगुली नहीं काटी थी, अपितु अंगुली के रूप में औरंगजेब की नाक काटकर उसके हाथ में पकड़ाई थी।

शिवाजी शाइस्ता खाँ को कोंकण के पहाड़ों में खींचना चाहते थे इसलिए वे कोंकण के किलों की विजय में संलग्न थे किंतु शाइस्ता खाँ समझ गया था कि शिवाजी के पीछे जाना, साक्षात मृत्यु को आमंत्रण देना है। अतः वह पूना में बैठा रहा। इस बीच उसने शिवाजी के पूना, पन्हाला, चाकन आदि कई महत्वपूर्ण दुर्गों पर अधिकार कर लिया।

मई 1661 में शाइस्ता खाँ ने कल्याण तथा भिवण्डी के किलों पर भी अधिकार कर लिया। ई.1662 में शिवाजी के राज्य की मैदानी भूमि भी मुगलों के अधिकार में चली गई किंतु अब भी बहुत बड़ी संख्या में पहाड़ी किले शिवाजी के अधिकार में थे जिन्हें शाइस्ता खाँ छीन नहीं पा रहा था।

शिवाजी की सेनाओं ने शाइस्ता खाँ को कई मोर्चों पर परास्त करके पीछे धकेला किंतु इस अभियान में शिवाजी के सैनिक भी मारे जा रहे थे। शाइस्ता खाँ जानबूझ कर अभियान को लम्बा कर रहा था ताकि उसे औरंगजेब द्वारा चलाए जा रहे कांधार अभियान में न जाना पड़े। इसलिए वह थोड़ी-बहुत कार्यवाही करके औरंगजेब को यह दिखाता रहा कि शिवाजी के विरुद्ध अभियान लगातार चल रहा है।

जनवरी 1662 में शाइस्ता खाँ ने शिवाजी के 80 गांवों में आग लगा दी। शिवाजी ने इस कार्यवाही का बदला लेने का निर्णय लिया। शाइस्ता खाँ, शिवाजी के पूना स्थित लालमहल में रह रहा था, यह भी शिवाजी के लिए असह्य बात थी। अतः शिवाजी ने शाइस्ता खाँ का नाश करने के लिए एक दुस्साहसपूर्ण योजना बनाई जो भारत के भावी इतिहास में स्वर्णिम पन्नों में अंकित होने वाली थी।

पूरे आलेख के लिए देखें यह वी-ब्लॉग-

अप्रेल 1663 के आरम्भ में शिवाजी पूना के निकट सिंहगढ़ में आकर जाकर जम गए। 5 अप्रेल 1663 को शिवाजी ने अपने 1000 चुने हुए सिपाहियों को बारातियों के रूप में सजाया तथा उन्हें लेकर रात्रि के समय सिंहगढ़ से नीचे उतर आए। दिन के उजाले में इस अनोखी बारात ने गाजे-बाजे के साथ पूना नगर में प्रवेश किया।

यह बारात संध्या होने तक शहर की गलियों में नाचती-गाती और घूमती रही। संध्या होते ही शिवाजी के 200 सैनिक बारातियों वाले कपड़े उतारकर साधारण सिपाही जैसे कपड़ों में, मुगल सैन्य शिविर की ओर बढ़ने लगे। शेष 800 सिपाही मुगल शिविर के चारों ओर फैल गए ताकि समय आने पर शिवाजी को सहायता दी जा सके।

जब मुगल शिविर में घुस रहे शिवाजी तथा उनके सैनिकों को मुगल रक्षकों द्वारा रोका गया तो शिवाजी के सैनिकों ने उनसे कहा कि वे शाइस्ता खाँ की सेना के सिपाही हैं। चूंकि मुगल सेना में हिन्दू सैनिकों की भर्ती होती रहती थी तथा शाइस्ता खाँ ने शिवाजी के विरुद्ध लड़ाई के लिए हजारों हिन्दू सैनिकों को भरती किया था, इसलिए किसी ने इन सिपाहियों पर संदेह नहीं किया। इस घटना के प्रत्यक्षदर्शी लेखक भीमसेन ने लिखा है कि शिवाजी अपने 200 सैनिकों के साथ 40 मील पैदल चलकर आए तथा रात्रि के समय शिविर के निकट पहुंचे।

To purchase this book, please click on photo.

शिवाजी एवं उसके सैनिक, लालमहल के पीछे की तरफ जाकर रुक गए और रात्रि होने की प्रतीक्षा करने लगे। अर्द्धरात्रि में उन्होंने महल के एक कक्ष की दीवार में छेद किया। शिवाजी इस महल के चप्पे-चप्पे से परिचित थे। जब वे इस महल में रहते थे, तब यहाँ खिड़की हुआ करती थी किंतु इस समय उस स्थान पर दीवार चिनी हुई थी। इससे शिवाजी को अनुमान हो गया कि इसी कक्ष में शाइस्ता खाँ अपने परिवार सहित मिलेगा।

शिवाजी का अनुमान ठीक निकला, शाइस्ता खाँ इसी कक्ष में था। शिवाजी तथा उनके 200 सिपाहियों ने रात्रि में एक अन्य कक्ष की खिड़की से महल में प्रवेश किया तथा ताबड़तोड़ तलवार चलाते हुए शाइस्ता खाँ के पलंग के निकट पहुंच गए। आवाज होने से शाइस्ता खाँ की आंख खुल गई।

शिवाजी ने शाइस्ता खाँ पर अपनी तलवार से भरपूर वार किया किंतु एक दासी ने शत्रु सैनिकों को देखकर महल की बत्ती बुझा दी ताकि शाइस्ता खाँ को बच निकलने का अवसर मिल सके।

जब शिवाजी ने शाइस्ता खाँ पर तलवार का वार किया ठीक उसी समय महल में अंधेरा हुआ और शाइस्ता खाँ अपने ही स्थान पर पलट गया। इस कारण शिवाजी की तलवार का वार लगभग खाली चला गया किंतु फिर भी शाइस्ता खाँ की एक अंगुली कट गई। ठीक इसी समय मुगल शिविर के बाहर खड़े शिवाजी की बारात के सिपाहियों ने जोर-जोर से बाजे बजाने आरम्भ कर दिए जिससे महल के चारों ओर पहरा दे रहे सिपाहियों को महल के भीतर चल रही गतिविधियों का पता नहीं चल सके। बाजों की आवाज के बीच मराठा सिपाहियों ने पूरे महल में मारकाट मचा दी।

शाइस्ता खाँ, अंधेरे का लाभ उठाकर भागने में सफल हो गया किंतु शिवाजी के सैनिकों ने शाइस्ता खाँ के पुत्र अबुल फतह को शाइस्ता खाँ समझकर उसका सिर काट लिया तथा इस सिर को अपने साथ लेकर भाग गए। इस कार्यवाही में शाइस्ता खाँ के 50 से 60 सिपाही घायल हुए तथा एक सेनानायक मारा गया।

धीरे-धीरे मुगल सिपाहियों को अनुमान हो गया कि भीतर क्या हो रहा है! वे महल के बाहर एकत्रित होने लगे। शिवाजी भी चौकन्ने था, उन्होंने तेज ध्वनि बजाकर संकेत किया और उनके सैनिक, शिवाजी को लेकर लालमहल तथा मुगल शिविर से बाहर निकल गए। मुगल सिपाही, आक्रमणकारियों को महल के भीतर ढूंढते रहे और शिवाजी पूना से बाहर सुरक्षित निकल गए।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source