Thursday, November 21, 2024
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महाकवि भूषण की कविता में शिवाजी (21)

शिवाजी के समकालीन महाकवि भूषण (ई.1613-1715) की भारत भर में प्रसिद्धि थी। उन्होंने महाराजा छत्रसाल को नायक बनाकर छत्रसाल दशक तथा छत्रपति शिवाजी को नायक बनाकर ‘शिवा भूषण’ तथा ‘शिवा बावनी’ नामक दो खण्ड काव्य लिखे।

भारत के अनेक राजा महाकवि भूषण को अपने दरबार में देखना चाहते थे किंतु उन्होंने शिवाजी के दरबार में रहना पसंद किया। महाराजा छत्रसाल ने कवि भूषण की पालकी में स्वयं कंधा लगाया था। शिवाजी ने भी भूषण को दान-मान-सम्मान से संतुष्ट रखा। शिवाजी के प्रताप का वर्णन करते हुए भूषण ने लिखा है-

शिवाजी प्रताप

(1)

साहि तनै सरजा तव द्वार प्रतिच्छन दान की दुंदुभि बाजै।

भूषन भिच्छुक भीरन को अति, भोजहु ते बढ़ि मौजनि साजै

राजन को गन राजन! को गनै? साहिन मैं न इती छबि छाजै।

आजु गरीब नेवाज मही पर तोसो तुही सिवराज बिराजै।

(2)

तेरो तेज सरजा! समत्थ दिनकर सो है,

दिनकर सोहै तेरे तेज के निकर सो

भौसिला भुआल! तेरो जस हिमकर सो है,

हिमकर सोहै तेरे जस के अकर सो।।

भूषन भनत तेरो हियो रतनाकर सो,

रतनाकर सोहै तेरे हिये सुख कर सो।

साहि के सपूत सिव साहि दानि! तेरो कर

सुरतरु सो है, सुर तरु तेरे कर सो।

(3)

इन्द्र जिमि जंभ पर, बाडब सुअंभ पर,

रावन सदंभ पर, रघुकुल राज है।

पौन बारिबाह पर, संभु रतिनाह पर,

ज्यौं सहस्रबाह पर राम द्विजराज है।

दावा द्रुमदंड पर, चीता मृगझुंड पर,

भूषण वितुंड पर, जैसे मृगराज हैं।

तेज तम अंस पर, कान्ह जिमि कंस पर,

त्यौं मलिच्छ बंस पर, सेर सिवराज हैं।।

(4)

गरुड़ को दावा सदा नाग के समूह पर,

दावा नागजूह पर सिंह सिरताज को।

दावा पुरहूत को पहरारन के कुल पर,

पच्छिन के गोल पर दावा सदा बाज को।

भूषन अखण्ड नवखंड-महिमंडल मैं

तम पर दावा रविकिरन समाज को।

पूरब पछाँह देस दच्छिन तें उत्तर लौं।

जहाँ पादसाही तहाँ दावा सिवराज को।।

(5)

साजि चतुरंग वीर रंग मैं तुरंग चढ़ि,

सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत है।

भूषन भनत नाद बिहद नगारन के

नदी-नद मद गैबरन के रलत हैं।

ऐल-फैल खैल-भैल, खलक में गैल-गैल

गजन की ठेल-पेल, सेल उसलत है

तारा सो तरनि धूरि धारा मैं लगत, जिमि

थारा पर पारा, पारावार यों हलत है।

(6)

चकित चकत्ता चौंकि-चौंकि उठै बार-बार

दिल्ली दहसति चित चाह खरकति है।

बिलखि बदन बिलखात बिजैपुर-पति

फिरत फिरंगिन की नारी फरकति है।।

थर-थर काँपत कुतुबसाहि गोलकुंडा,

हहरि हबस भूप भीर भरकति है।

राजा सिवराज के नगारन की धाक सुनि,

केते पातसाहन की छाती दरकति है।।

(7)

बाने फहराने घहराने घण्टा गजन के

नाहीं ठहराने राव-राने देस-देस के।

लग भहराने ग्राम नगर पराने सुनि

बाजत निसाने सिवराज जू नरेश के।

हाथिन के हौदा उकसाने, कुंभ कुंजर के

भौन के भजाने अलि छूटे लट केस के

दल के दरारे हिते कमठ करारे फूटे

केरा कैसे पात बिहराने फन सेस के।।

(8)

ऊंचे घोर मंदिर के अंदर रहन वारी,

ऊंचे घोर मंदर के अंदर रहाती हैं।

कंद मूल भोग करैं, कंद मूल भोग करैं,

तीन बेर खातीं ते वे तीन बेर खाती हैं।

भूषन शिथिल अंग, भूषन शिथिल अंग,

बिजन डुलातीं ते वे बिजन डुलाती हैं।

भूषन भन सिवराज बीर तेरे त्रास,

नगन जड़ातीं ते वे नगर जड़ाती हैं।

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(9)

इंद्र हेरत फिरत गज-इंद्र अरु,

इंद्र को अनुज हेरै दुगधनदीस को

भूषन भनत सुरसरिता को हसं हेरै

बिधि हेरै हंस को चकोर रजनीस को।।

साहि-तनै सिवराज, करनी करी है तैं जु,

होत है अचंभो देव कोटियौ तैंतीस को।

पावत न हेरे तेरे जस मैं हिराने निज

गिरि को गिरीस हेरैं, गिरजा गिरीस को।।

करवाल यश वर्णन

(10)

राखी हिंदुआनी हिंदुआन को तिलक राख्यो,

अस्मृति पुरान राखे वेद बिधि सुनी मैं।

राखी रजपूती, राजधानी राखी राजन की,

धरा मैं धरम राख्यो, राख्यो गुन-गुनी मैं।।

भूषन सुकवि जीति हद्द मरहट्टन की,

देस-देस कीरति बखानी तब सुनी मैं।

साहि के सपृत सिवराज समसेर तेरी,

दिल्ली दल दाबि कै दिवाल राखी दुनी मैं।।

(11)

कामिनी कंत सौं जामिनी चंद सों दामिनी पावस मेघ घटासों।

कीरति दान सों, सूरति ज्ञान सों, प्रीति बड़ी सनमान महा सों।।

‘भूषन’ भूषन सों तरुनी, नलिनी नव पूषन देव प्रभा सों।

जाहिर चारिहु ओर जहान, लसै हिन्दुवान खुमान सिवा सों।।

युद्ध वर्णन

(12)

बद्दल न होहिं, दल दच्छिन घमण्ड माहिं,

घटाहू न होहिं, दल सिवाजी हंकारी के।

दामिनी दमक नाहिं, खुल खग्ग बीरन के,

बीर-सिर छाप लख तीजा असवारी के।।

देखि-देखि मुगलों की हरम भवन त्यागैं,

उझकि उझकि उठै बहत बयारी के।

दिल्ली मति भूली कहै बात घनघोर घोर,

बाजत नगारे जे सितारे गढ़धारी के।।

महाकवि भूषण की कविता आज भी भारतीयों के हृदय में रक्त का संचार तीव्र कर देती है।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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5 COMMENTS

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