Sunday, December 22, 2024
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शिवाजी का निधन (19)

शिवाजी का निधन भारतवासियों के लिए एक अपूर्णनीय क्षति थी। भारत माता को ऐसे वीर पुत्रों की कमी नहीं थी किंतु शिवाजी उनमें सबसे अलग था।

शिवाजी को सम्भाजी से मिले एक वर्ष से अधिक हो गए थे। वे उसे समझाने और उसमें आए परिवर्तनों को देखने के लिए पन्हाला पहुंचे। सम्भाजी के नेत्रों में आंसू भरकर पिता के चरणों में गिर पड़ा और अपने अपराधों के लिए क्षमा याचना करने लगा। शिवाजी ने उसे उठकार बैठाया तथा दुनियादारी की अच्छी बातें बताईं।

अच्छे और बुरे में भेद समझाने का प्रयास किया। शिवाजी ने सम्भाजी को दायित्व बोध कराने के लिए राज्य के समस्त दुर्गों तथा धन-आभूषण आदि की सूची दिखाई और यह बताने का प्रयास किया कि उसके कंधों पर कितने विशाल राज्य का भार आने वाला है।

शिवाजी, सम्भाजी को समर्थ गुरु रामदास के संरक्षण में रखने का विचार लेकर आया था किंतु शिवाजी ने अनुभव किया कि सम्भाजी के हृदय में किसी तरह का पश्चाताप नहीं है, क्षमा याचना केवल औपचारिक रस्म भर है। अतः शिवाजी ने सम्भाजी को फिर से पन्हाला दुर्ग में कठोर नियंत्रण में रख दिया तथा भारी मन से सम्भाजी से विदा ली।

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शिवाजी अच्छी तरह समझ चुका था कि सम्भाजी के हाथों में मराठा राज्य कभी सुरक्षित नहीं रह सकता जबकि छोटा पुत्र राजाराम अभी केवल 10 वर्ष का था।

शिवाजी के आठ विवाह हुए थे। इन आठ विवाहों से उसे दो पुत्र तथा छः पुत्रियां प्राप्त हुई थीं। शिवाजी की अब केवल तीन पत्नियां ही जीवित बची थीं। शिवाजी को अपने परिवार की स्थितियों को देखकर अत्यंत क्लेश होता था। जीवन भर पथ प्रदर्शक रही माता जीजाबाई स्वर्ग को जा चुकी थी। शिवाजी के पिता शाहजी भौंसले का भी निधन हो चुका था।

शिवाजी की बड़ी रानी सईबाई सुशील और समझदार थी किंतु उसका भी निधन हो चुका था। सम्भाजी इसी सईबाई का पुत्र था किंतु वह संस्कारहीन और चरित्रहीन होकर अपने पिता के राज्य को क्षति पहुंचा रहा था। दूसरे अल्पवय पुत्र राजाराम की माता सोयराबाई बहुत कर्कश स्वभाव की स्त्री थी तथा अपने पुत्र को राज्य दिलाने के लिए दिन-रात षड़यंत्र रचा करती थी।

राज्य के अष्ट-प्रधान मंत्रियों पर नियंत्रण रखने के लिए एक अत्यंत प्रतिभासम्पन्न राजा की आवश्यकता थी जिसका शिवाजी के परिवार में नितांत अभाव था। इसी चिंता में घुलकर शिवाजी पहले भी गम्भीर रूप से बीमार पड़ चुका था। सम्भाजी की तरफ से एक बार पुनः निराश होने के बाद शिवाजी फिर से बीमार हो गया। 13 दिसम्बर 1679 से शिवाजी ने राज्यकार्य छोड़ दिया तथा समर्थ गुरु रामदास के चरणों में बैठकर भगवत् भजन करने लगा।

4 फरवरी 1680 को शिवाजी पूना से रायगढ़ के लिए रवाना हुआ। 7 मार्च को उसने राजाराम का यज्ञोपवीत संस्कार करवाया तथा 15 मार्च को उसका विवाह अपने स्वर्गीय सेनापति प्रतापराव की कन्या द्रोपती बाई से कर दिया। 23 मार्च को शिवाजी को ताप हो गया तथा खूनी दस्त आने लगे।

जब 12 दिन तक शिवाजी की यही दशा रही तथा किसी भी दवा से कोई लाभ नहीं हुआ तो शिवाजी विधि के विधान को समझ गया। 3 अप्रेल को उसने अपने मंत्रियों, सामंतों, अष्ट प्रधानों तथा सेनापतियों को बुलाकर राज्य सम्बन्धी आवश्यक निर्देश दिए तथा कुछ धार्मिक अनुष्ठान भी करवाए। शिवाजी ने प्रजा को बुलाकर शरीर के नश्वर होने तथा आत्मा के अमर होने का उपदेश दिया।

उसी दिन शिवाजी संज्ञा शून्य हो गया और नेत्र मूंद लिए। दक्षिण भारत में विशाल हिन्दू राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी राजे ने 3 अप्रेल 1680 को भारत की पुण्य धरा पर अंतिम श्वांस ली। भारत के इतिहास में लाखों पृष्ठ, इस अद्भुत राजा की प्रशंसा में भरे पड़े हैं। जिस समय उसके प्राण पंखेरू अनंत गगन की ओर उड़ चले, उस समय उसके महल के भीतर और बाहर असंख्य प्रजाजन खड़े विलाप कर रहे थे।

कुछ इतिहासकारों का मत है कि राजाराम की माता सोयरा बाई ने शिवाजी को विष दे दिया ताकि राजाराम को राज्य मिल सके। शिवाजी को खूनी दस्त लगने से इस मत को बल मिलता है। शिवाजी के निधन के बाद मंत्रियों ने शिवाजी के बड़े पुत्र सम्भाजी को मराठों का राजा बनाया।

सम्भाजी ने अपने पिता की हत्यारी मानी जाने वाली सोयराबाई की हत्या करवा दी। शिवाजी की एक अन्य जीवित पत्नी पुतली बाई, शिवाजी की देह के साथ सती हो गई। शिवाजी की तीसरी जीवित पत्नी सकवर बाई को कुछ दिनों बाद औरंगजेब की सेना ने पकड़कर कैद कर लिया।

सम्भाजी की पत्नी येशुबाई तथा येशूबाई का पुत्र साहूजी भी सकवर बाई के साथ औंरगजेब के साथ बंदी बना लिए गए थे। शिवाजी के परिवार के सदस्य बहुत लम्बे समय तक औरंगजेब की कैद में रहे।

सम्भाजी भी कुछ समय बाद औरंगजेब द्वारा तड़पा-तड़पा कर मारा गया। उसकी आखें निकाल ली गईं, जीभ खींच ली गई, चमड़ी उतार ली गई एक-एग अंग काटकर कुत्तों को खिलाया गया। 15 दिन तक दी गई भयानक याताअनों से तड़पने के बाद 11 मार्च 1689 को सम्भाजी के प्राण निकल गए।

इस प्रकार मुगलों को देश से बाहर निकालकर हिन्दू पदपादशाही की स्थापना का स्वप्न देखने वाले छत्रपति शिवाजी के परिवार को मुगलों के हाथों बहुत भयानक यातनाएं झेलनी पड़ीं।

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