प्रायः लोगों को यह भ्रम होता है कि किसी भी समाज में अथवा राष्ट्र में राजनीतिक मंच से क्रांति होनी संभव है किंतु वास्तविकता यह है कि राजनैतिक मंच से चिल्लाने से क्रांति नहीं होती!
बारदोली की सफलता के बाद सरदार पटेल एक चमत्कारिक पुरुष के रूप में देखे जाने लगे। उन्होंने वह कर दिखाया था जो उनसे पहले कोई नहीं कर पाया था। बम्बई की गोरी सरकार को हथियार डालते हुए पहली बार ही देखा गया था। इसलिये अब सरदार पटेल जहाँ भी जाते, उन्हें देखने के लिये लोगों की भीड़ लग जाती। अब वे राष्ट्र नायक थे। उन्हें देश में विभिन्न स्थानों पर भाषण देने, आंदोलनों का नेतृत्व करने, सभाओं और सम्मेलनों की अध्यक्षता करने के लिये बुलाया जाने लगा।
मार्च 1929 में पांचवे काठियावाड़ राजनैतिक सम्मेलन की अध्यक्षता करने के लिये सरदार को बुलाया गया। उन्हीं दिनों महाराष्ट्र के कई हिस्सों में सरकार ने लगान में अनुचित वृद्धि की। काठियावाड़ के नेता चाहते थे कि सरदार न केवल सम्मेलन में आयें अपितु इस सम्मेलन में वे महाराष्ट्र में हुई कर वृद्धि के विरोध में एक आंदोलन की घोषणा करें और उस आंदोलन का नेतृत्व करना भी स्वीकार करें। सरदार को काठियावाड़ के नेताओं के बुरे हाल की जानकारी थी, इसलिये उन्होंने जाने से मना कर दिया। इस पर काठियावाड़ के नेता गांधीजी के पास गये और उनसे अनुरोध किया कि वे सरदार पटेल को आदेश दें ताकि सरदार, काठियावाड़ सम्मेलन की अध्यक्षता करें। गांधीजी ने सरदार के नाम आदेश भिजवा दिया।
इस प्रकार सरदार को काठियावाड़ सम्मेलन की अध्यक्षता करने के लिये जाना पड़ा। इस सम्मेलन में कई प्रस्ताव पारित किये गये तथा अंत में सरदार को अध्यक्षीय भाषण देने के लिये खड़ा किया गया। उनसे यह भी आग्रह किया गया कि वे महाराष्ट्र में कर वृद्धि के विरोध में किये जाने वाले आंदोलन का नेतृत्व करना स्वीकार करें। बारदोली आंदोलन की सफलता के बाद सरदार अत्यंत विनम्र हो गये थे किंतु स्पष्ट बोलने से परहेज भी नहीं करते थे।
इसलिये उन्होंने काठियावाड़ सम्मेलन में उपस्थित कांग्रेसियों को खरी-खरी सुनाते हुए कहा कि आपने प्रस्ताव तो बहुत पारित किये हैं किंतु वे व्यर्थ ही हैं, यदि उन पर अमल न हो। मैं देख रहा हूँ कि यहाँ नेता तो बहुत हैं किंतु संगठित एवं कर्मठ कार्यकर्ता नहीं हैं। कोई भी संघर्ष तब तक सफल नहीं होता जब तक उसके लिये बलिदान न दिया जाये। उन्होंने कहा कि मैं किसान का बेटा हूँ इसलिये मुझे मीठा बोलना नहीं आता किंतु यदि मैं अपनी बात से आपको सही रास्ता दिखाने का प्रयास करूं तो मैं अपने प्रयास को सार्थक समझूंगा। मेरी स्पष्ट राय है कि किसी राजनैतिक मंच से चीखने-चिल्लाने से क्रांति नहीं होती।
वस्तुतः तब तक कांग्रेस की कार्यप्रणाली इसी प्रकार की ढुलमुल रवैये वाली थी जिसमें मंच से प्रस्ताव पारित किये जाते किंतु उन्हें कार्यान्वित करने के लिये कुछ नहीं किया जाता। सरदार के अतिरिक्तअन्य सभी नेताओं ने छोटे-मोटे आंदोलन किये थे जबकि गांधीजी ने कुछ बड़े किंतु असफल आंदोलन किये थे। इन असफलताओं का कारण यही था कि राजनैतिक मंच से क्रांति नहीं होती।
उनका अंत भी भयानक असफलताओं में हुआ था। इसलिये पटेल ने नेताओं को न केवल सच का दर्पण दिखाया अपितु कुछ दिनों तक महाराष्ट्र में घूमकर राष्ट्रीय जन-जागरण की अलख भी जगाई।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता
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