सिकंदर लोदी ने अफगान अमीरों की उच्छृंखलता पर एवं जमींदारों की बेईमानी पर रोक लगाने के लिए अनेक कदम उठाए तथा सल्तनत में गुप्तचरों का जाल बिछा दिया। हालांकि वह एक हिन्दू सुनार स्त्री का बेटा था किंतु उसके मन में इस्लाम के उन्नयन के प्रति बड़ा उत्साह था। उसमें असहिष्णुता एवं धार्मिक कट्टरता कूट-कूट कर भरी हुई थी। वह मुल्ला-मौलवियों का बड़ा आदर करता था। उसने अनेक मंदिरों को तुड़वाकर उनके स्थान पर सैंकड़ों मस्जिदों का निर्माण करवाया।
सिकंदर लोदी अपनी निर्धन मुस्लिम प्रजा के हितों का ध्यान रखता था। इसलिए उसने न्याय की समुचित व्यवस्था करने का प्रयत्न किया। स्थानीय स्तर पर काजी न्याय करते थे तथा सर्वोच्च न्यायाधीश का कार्य सुल्तान स्वयं करता था। उसने इस्लामिक पद्धति से न्याय करने में अपनी सहायता के लिए मियां भुआं नामक एक होशियार मौलवी को नियुक्त किया। सिकंदर लोदी ने मुस्लिम प्रजा के लिए निष्पक्ष तथा शीघ्र न्याय की व्यवस्था की जबकि हिन्दुओं के प्रति उसका दण्ड-विधान बड़ा कठोर था।
सिकन्दर लोदी दिल्ली सल्तनत का अकेला ऐसा सुल्तान हुआ, जिसने खम्स अर्थात् लूट से मिली रकम से कोई हिस्सा नहीं लिया। खाम अथवा खम्स लूट में प्राप्त माल को कहते थे। इस्लाम के नियमों के अनुसार सुल्तान को लूट में से केवल 20 प्रतिशत कर लेना चाहिए। शेष भाग सेना को मिलना चाहिए किंतु अल्लाउद्दीन खिलजी तथा मुहम्मद बिन तुगलक हिन्दू राज्यों से प्राप्त लूट के माल में से 80 प्रतिशत स्वयं लेते थे तथा 20 प्रतिशत अपनी सेना में बंटवाते थे।
पूर्ववर्ती सुल्तान फीरोजशाह तुगलक ने लूट के माल का शरीयत के नियमों के अनुसार बंटवारा करवाना तय किया। अर्थात् लूट के माल में से सुल्तान को 20 प्रतिशत और सेना को 80 प्रतिशत हिस्सा मिलता था। जबकि सिकंदर लोदी इस मामले में फीरोज तुगलक से भी आगे निकल गया, उसने लूट के माल में से कभी हिस्सा नहीं लिया।
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यदि किसी व्यक्ति को भूमि में गढ़ा हुआ धन मिलता था तो दिल्ली सल्तनत के सुल्तान उसमें से हिस्सा लिया करते थे किंतु सिकंदरशाह ने गढ़े हुए धन में से हिस्सा लेना बंद कर दिया तथा यह कानून बनाया कि गढ़े हुए धन पर केवल उस व्यक्ति का अधिकार होगा, जिसे वह मिला है।
सिकंदर लोदी ने निर्धन प्रजा के लिए सरकार की ओर से निःशुल्क भोजन की व्यवस्था करायी। इससे राज्य में भिखारी बहुत कम दिखाई देने लगे। मुस्लिम प्रजा के प्रति अत्यंत उदार होने पर भी सिकंदर लोदी, पूर्ववर्ती सुल्तान फीरोजशाह तुगलक से बिल्कुल अलग था। उसने मुसलमान स्त्रियों के पीरों एवं दरवेशों की मजारों पर जाने पर प्रतिबंध लगा दिया। उसने शिया मुसलमानों को ‘ताजिया’ निकालने पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया।
सिकंदर लोदी के शासन में कृषकों की दशा बड़ी असन्तोषजनक थी। इसलिए उसने कृषि की उन्नति का प्रयास किया। उसने भूमि की नाप करवाकर भूमि-कर निर्धारित करवाया। इस कार्य के लिए उसने एक प्रामाणिक गज बनाया जो 30 इंच का होता था, उसे ‘गज-सिकन्दर’ कहते थे। उत्तर भारत में इस गज का प्रयोग बहुत दिनों तक होता रहा।
सिकन्दर लोदी ने अनाज पर से चुंगी और अन्य व्यापारिक कर हटा दिये, जिससे अनाज, कपड़ा एवं आवश्यकता की अन्य वस्तुएँ सस्ती हो गयीं। सिकंदर लोदी ने अपने राज्य में व्यापारियों तथा सौदागरों की सुरक्षा की व्यवस्था की। इससे सड़कों पर होने वाली लूट बंद हो गई। सिकन्दर लोदी ने खाद्यान्न पर से जकात कर हटा लिया।
इस्लामिक व्यवस्था के अनुसार सुल्तान को मुस्लिम जनता से जकात प्राप्त करने का अधिकार है जो कि प्रत्येक मुसलमान की आय में से ढाई प्रतिशत लिया जाता था किंतु सिकंदर के काल में उसी आय पर जकात लिया जाता था जो अनाज के अलावा किसी अन्य वस्तु के उत्पादन अथवा विक्रय से होती थी। सुल्तान द्वारा ली गई जकात को इस्लाम के उन्नयन पर व्यय किया जाता था।
कुछ तत्कालीन मुस्लिम लेखकों ने लिखा है कि सिकंदर लोदी ने ई.1506 में आगरा की नींव रखी किंतु यह बात सही नहीं है क्योंकि आगरा तो महाभारत के काल में भी अस्तित्व में था। इस शहर का प्राचीन नाम अग्रवन था। अग्रवाल जाति के लोगों को मानना है कि आगरा की स्थापना महाभारत कालीन महाराजा अग्रसेन ने की थी। पहली शताब्दी ईस्वी के भूगोलविद् टॉलेमी पहले व्यक्ति थे जिन्होंने इस शहर को आगरा नाम से सम्बोधित किया। उससे पहले इसे अग्रवन तथा अग्रबाण कहा जाता था।
11वीं सदी के फारसी कवि मासूद ने आगरा का उल्लेख पुरानी बस्ती के नाम से किया है। ईस्वी 1075 में गजनी के सुल्तान इब्राहीम गजनवी ने अपने पुत्र महमूद गजनवी को पंजाब का सूबेदार नियुक्त किया। यह महमूद गजनवी, सोमनाथ पर आक्रमण करने वाले महमूद गजनवी से अलग है। महमूद ने 40 हजार घुड़सवारों को अपने साथ लेकर आगरा के किले पर अधिकार किया था। दिल्ली के तोमरों ने आगरा में लाल किला बनवाया था। संभव है कि सिकंदर लोदी ने अगारा के लाल किले की मरम्मत करवाई तथा उसमें कुछ महलों, कुओं एवं मस्जिद का निर्माण करवाकर अपनी राजधानी दिल्ली से आगरा ले आया।
तत्कालीन मुस्लिम इतिहासकारों ने लिखा है कि सिकंदर लोदी की स्मरण-शक्ति विलक्षण थी और ज्ञानकोष वृहत् था। वह स्वयं कवि था और गुलरुखी के नाम से कविताएं लिखा करता था। वह इस्लामी विद्वानों का आदर करता था। उसके दरबार में ईरान तथा अरब देशों से विद्वान आया करते थे। रिज कुल्लाह मुश्तकी नामक एक फारसी लेखक उसके समय का बड़ा विद्वान था जो हिन्दी का भी अच्छा जानकार था। उसके समय में मियां ताहिर नामक एक सुलेखक बड़ा प्रसिद्ध था। मियां ताहिर अपने समय का माना हुआ चिकित्सक भी था।
धीरे-धीरे सिकन्दर ने सल्तनत के प्रत्येक अंग पर शिकंजा कस लिया। शासन की दृष्टि से वह उदार, प्रजावत्सल एवं सफल शासक प्रतीत होता है परन्तु उसकी उदारता और प्रजावत्सलता केवल मुस्लिम प्रजा के लिए थी तथा सफलता केवल व्यक्तिगत थी। उसने बहुसंख्यक हिंदू प्रजा के लिए और अपने उत्तराधिकारियों के लिए अच्छी परिस्थितियाँ उत्पन्न नहीं कीं।
कुछ इतिहासकारों ने सिकंदर लोदी का मूल्यांकन करते हुए लिखा है- ‘मुसलमानों को प्रसन्न करने के भरपूर प्रयासों के बावजूद वह न तो अपने पिता की तरह लोकप्रिय था, न वह अपनी सल्तनत पर ढंग से शासन कर सका और न ही अपने पिता से प्राप्त सल्तनत का विस्तार कर सका।’
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता