Thursday, November 21, 2024
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156. सिकंदर लोदी ने दिल्ली सल्तनत के प्रत्येक अंग पर शिकंजा कस लिया!

दिल्ली सल्तनत का सुल्तान बनने के बाद सिकंदर लोदी को अगले तीन साल अपने विरोधियों को नष्ट करने में लगाने पड़े। इसके बाद उसने अफगान अमीरों को अनुशासन में बांधने का प्रयास किया।

अफगान अमीर अपनी उच्छृंखल प्रवृत्ति के कारण किसी का भी अनुशासन स्वीकार नहीं करते थे। पूर्व-सुल्तान बहलोल लोदी ने सुल्तान की स्थिति ‘समस्त अमीरों में प्रथम’ अर्थात् ‘फर्स्ट अमांग ऑल मिनिस्टर्स’ की निर्धारित की थी। अतः अफगान अमीर, सुल्तान की उपस्थिति में भी निःशंक होकर हंसी-ठट्ठा करते थे। सिकंदर लोदी को अमीरों की यह प्रवृत्ति पसंद नहीं थी।

एक बार जब सिकंदर लोदी जौनपुर में युद्ध-अभियान पर था, अमीरों के बीच चौगान खेलने का मुकाबला हुआ। खेल-खेल में अमीरों के बीच झगड़ा हो गया तथा अमीर एक दूसरे को गालियां देने लगे। इस पर सुल्तान आग-बबूला हो गया। उसने एक अमीर को उसी समय कोड़े लगवाए, दूसरे अमीर को भी सबके सामने कठोर दण्ड दिया। उसने अमीरों को चेतावनी दी कि वे सुल्तान की इज्जत करना सीखें।

इस पर कुछ अमीरों ने सिकंदर लोदी से विद्रोह करके उसके भाई फतह खाँ को सुल्तान बनाने का निर्णय लिया। सिकंदर लोदी को अमीरों की इस कारस्तानी का पता चल गया तथा उसने 22 अमीरों को अपने दरबार से निकाल दिया और उनमें से कइयों को कठोर दण्ड दिए। इससे अमीरों में सुल्तान का भय व्याप्त हो गया।

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उस काल में अमीरों को केवल दण्ड एवं नियम के सहारे अपने वश में रख पाना संभव नहीं था। इसलिए सिकंदर लोदी अपने अमीरों को धन देकर संतुष्ट करता रहता था। तत्कालीन मुस्लिम इतिहासकारों ने लिखा है कि सुल्तान को धन का तनिक भी मोह नहीं था। इसलिए जब सुल्तान को कहीं से धन मिल जाता था तो वह उस धन को अपने अमीरों में बांट देता था।

गियासुद्दीन बलबन एवं अल्लाउद्दीन खिलजी के समय में दिल्ली सल्तनत में राजस्व व्यवस्था को चुस्त बनाने का प्रयास किया गया था तथा उसमें कठोरता का समावेश किया गया था। सिकंदर लोदी ने भी उनकी नीति का अनुसरण करते हुए सल्तनत की राजस्व व्यवस्था में कठोरता का समावेश किया। सल्तनत के जागीरदारों को नियमित रूप से केन्द्रीय सरकार के पास राजस्व का लेखा भेजना अनिवार्य कर दिया गया। हिसाब में गड़बड़ी पाए जाने पर जमींदारों को कड़ी सजा दी जाती थी।

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सिकंदर लोदी का पिता बहलोल लोदी जमींदारी प्रथा का पोषक था। उसने जमींदारों को सल्तनत का आधार बनाया जो स्थानीय किसानों से भू-राजस्व-कर वसूल करके केन्द्रीय शासन तक पहुंचाते थे। बहलोल लोदी ने जमींदारों को मजबूत बनाया तथा उन्हें सदैव प्रसन्न रखने का प्रयत्न किया परन्तु सिकन्दर लोदी जमींदारी प्रथा का घोर विरोधी था। सिकंदर लोदी का मानना था कि जमींदार न केवल जनता पर अत्याचार करते हैं अपितु जनता से वसूल किए गए कर में से चोरी भी करते हैं। इसलिए सिकंदर लोदी ने जमींदारों से भू-राजस्व-कर का हिसाब देने के लिए कहा। हिसाब में गड़बड़ी पाए जाने पर सुल्तान ने कई जमींदारों को पदच्युत कर दिया तथा उनके स्थान पर सीधे ही केन्द्रीय सरकार की ओर से राजस्व वसूलने वाले अधिकारियों की नियुक्ति की।

इससे जमींदारों में बड़ा असन्तोष फैला और कुछ जमींदार सुल्तान सिकंदर लोदी के विरुद्ध षड्यन्त्र रचने लगे। सुल्तान को इस षड्यन्त्र का पता लग गया। इसलिए सुल्तान ने बहुत से जमींदारों को पकड़कर बड़ी क्रूरता के साथ दण्डित किया। जब सिकंदर लोदी ने जौनपुर के प्रांतपति बारबक शाह को बंदी बना लिया तो जौनपुर के जमींदारों ने जौनपुर के पुराने प्रांतपति हुसैनशाह को अपना खोया हुआ राज्य पुनः प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित किया। हुसैनशाह न केवल अपनी खोई हुई सूबेदारी पर अधिकार करना चाहता था अपितु वह अपने पुराने अपमान का भी बदला लेना चाहता था।

एक बार पूर्व-सुल्तान बहलोल लोदी ने हुसैनशाह की बेगम को पकड़ लिया था, इसलिए हुसैनशाह बहलोल के पुत्र सिकंदर से उस अपमान का बदला लेना चाहता था। हुसैनशाह उन दिनों बिहार में रहता था। वह एक विशाल सेना लेकर जौनपुर की तरफ बढ़ा। दिल्ली की सेना भी हुसैनशाह का मार्ग रोकने के लिए आगे बढ़ी। बनारस के निकट दोनों सेनाओं में युद्ध हुआ। इस युद्ध में हुसैनशाह की पराजय हो गई। वह जान बचाकर बंगाल की राजधानी लखनौती की ओर भाग गया और वहीं पर गुप्त रूप से अपना जीवन बिताने लगा। सिकन्दर लोदी ने जौनपुर में अपने कृपापात्र व्यक्ति को सूबेदार नियुक्त कर दिया।

जब सुल्तान ने बिहार को दिल्ली सल्तनत में मिला लिया तो बंगाल का सुल्तान अल्लाउद्दीन हुसैनशाह अत्यंत क्रोधित हुआ। उसने सिकंदरशाह के विरुद्ध सेना भेजी किंतु अंत में दोनों पक्षों में बिना किसी युद्ध के ही समझौता हो गया। बंगाल के सुल्तान ने सिकंदर लोदी को वचन दिया कि वह सिकंदर लोदी के शत्रुओं को बंगाल में शरण नहीं देगा। सिकंदर लोदी ने भी बंगाल के सुल्तान को वचन दिया कि वह भी भविष्य में बंगाल पर आक्रमण नहीं करेगा।

सिकन्दर लोदी ने अफगान सरदारों एवं अमीरों को नियन्त्रण में रखने का हर संभव प्रयास किया और उनके स्वतन्त्र होने के समस्त प्रयासों को विफल किया। सिकंदर लोदी अपने अमीरों से सदैव शंकित रहता था इसलिए अमीरों तथा उनके सेवकों की नियुक्त स्वयं करता था जिनमें से बहुत से लोग सुल्तान की तरफ से गुप्तचरी करते थे। कुछ इतिहासकारों ने लिखा है कि पूरी कड़ाई बरतने के बाद भी सिकंदर लोदी अमीरों को नियंत्रित नहीं कर सका।

सिकन्दर लोदी के समय में विद्रोह करने वाली हिन्दू-शक्तियों को बलपूर्वक दबाया गया और उन पर कड़ा नियन्त्रण रखा गया। सिकन्दर लोदी ने राज्य की आय पर सल्तनत का जैसा नियन्त्रण स्थापित किया, उससे पूर्व केवल अल्लाउद्दीन खिलजी तथा बलबन के समय में ही देखा गया था। सिकंदर ने सरकारी धन हड़पने का प्रयास करने वाले प्रांतपतियों, जमींदारों तथा राजस्व वसूली अधिकारियों को कठोर दण्ड दिए। जबकि इससे पहले कोई भी सुल्तान ऐसा कदम किसी मजबूरी में ही उठाता था।

सिकंदर लोदी ने विद्रोहियों एवं अपराधियों को भी कठोर दण्ड दिए जिसके कारण सल्तनत में अपराध एवं विद्रोह घट गए। तत्कालीन इतिहासकारों ने लिखा है कि उसके शासनकाल में सड़कें सुरक्षित थीं। लोगों को चोरों तथा डाकुओं का भय नहीं था।

सल्तनत के प्रत्येक अंग पर शिकंजा कसने के लिए सिकन्दर लोदी ने मजबूत गुप्तचर विभाग की व्यवस्था की। इससे उसे अमीरों एवं अधिकारियों की गुप्त कार्यवाहियों, बागियों अपराधियों तथा आक्रमणकारियों की गतिविधियों की सूचना समय रहते ही मिल जाती थी।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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