भारत के उत्तरांचल की पहाड़ियों से एक विशालाकाय कंकाल प्राप्त हुआ है। यह इतना विशाल है कि आज का आदमी तो इसकी खोपड़ी से भी छोटा है। कई व्यक्ति मिलकर भी इस कंकाल को हिला तक नहीं सकते। यहां तक कि इसे एक स्थान से दूसरे स्थान तक ढोने के लिये विशाल हवाई जहाज की आवश्यकता पड़ेगी।
जिस स्थान पर यह कंकाल मिला है, वहां के लोगों की मान्यता है कि यह महाभारत कालीन घटोत्कच का कंकाल है। घटोत्कच कर्ण के हाथों युद्ध के दौरान ही मारा गया था। उसकी मृत्यु पर पाण्डवों के परम हितैषी श्रीकृष्ण ने युद्ध के मैदान में ही हर्ष से नृत्य किया था क्योंकि घटोत्कच के मरने से कर्ण के पास उपलब्ध वह शक्ति नष्ट हो गयी थी जो उसने अर्जुन को मारने के लिये सुरक्षित रख छोड़ी थी।
यदि कर्ण उस शक्ति से घटोत्कच को नहीं मारता तो घटोत्चक अकेला ही कौरवों के लिये इतना भारी पड़ता कि इससे पहले कि कर्ण अर्जुन के प्राण ले, घटोत्कच ही कर्ण सहित कौरव पक्ष के समस्त लोगों का संहार कर डालता। महाभारत के वर्णन के अनुसार घटोत्कच इतना विशाल था कि उसकी आवाज से समुद्र, पर्वत और वनों के साथ सारी पृथ्वी डगमगाती थी और आकाश के साथ दिशाएं गूंजने लगती थीं। जब उसका शरीर पृथ्वी पर गिरा तो उसके विशाल शरीर के नीचे दब कर कौरवों की एक अक्षौहिणी सेना नष्ट हो गयी।
यह तो निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता कि उत्तरांचल में मिला कंकाल घटोत्कच का ही है। हो सकता है उसी का हो, किंतु जब तक आधुनिक मानव सभ्यता ने उत्तरांचल में मिले कंकाल को अपनी आंखों से देख नहीं लिया तब तक कोई विश्वास नहीं कर पाया था कि क्या कभी धरती पर इतने बड़े इंसान भी होते थे! तो क्या पूर्व के विशाल देह के आदमियों में और आज के छोटे शरीर वाले आदमियों की देह में निवास करने वाली आत्मा एक ही थी!
या जिस प्रकार एक कोषीय जीवों, वनस्पतियों, पशु-पक्षियों एवं मानवों में चेतना के स्तर के आधार पर उन्हें अलग-अलग कलाओं का जीव माना गया है, उसी प्रकार इन विशालाकाय देहधारी इंसानों में भी सामान्य मनुष्य से विलग किसी अन्य कला की शक्ति वाली आत्मा निवास करती थी!
यदि मृत्यु के बाद आत्माओं के पुनर्जन्म के सिद्धांत पर अडिग रहा जाये तो इन विशाल देह वाले इंसानों की आत्माएं कहां गयीं। क्या उन्होंने एक समय के बाद पुनर्जन्म लेना बंद कर दिया! या फिर उनका पुनर्जन्म भी सामान्य देह वाले इंसानों में होने लगा!
यहां हम यह स्पष्ट कर देना आवश्यक समझेंगे कि भारतीय अध्यात्म में चींटी से लेकर हाथी और मनुष्य तक में एक ही आत्मा का निवास माना गया है। आत्माएं अलग-अलग तरह की नहीं होतीं। कर्मफल के सिद्धांत के अनुसार वे अलग-अलग कर्मफलों के संस्कारों से संस्कारित होती हैं।
यद्यपि दर्शन और अध्यात्म मानव सभ्यता के इतिहास जितने ही पुराने हैं तथा आधुनिक विज्ञान की आयु अभी कुछ सौ वर्ष ही हुई है, तथापि विज्ञान ने जो भी उन्नति की है, उसके उपरांत भी आज तक दर्शन तथा विज्ञान के बीच चौड़ी खायी है। इस कारण एक दर्शन और अध्यात्म के बहुत से सिद्धांतों की पुष्टि आज भी विज्ञान के माध्यम से संभव नहीं है।
फिर भी जैसे-जैसे समय व्यतीत होता जायेगा, वैसे-वैसे दर्शन तथा विज्ञान परस्पर निकट आते जायेंगे। लेखक की मान्यता है कि दुनिया भर का सारा दर्शन उस विज्ञान से परास्त हो जायेगा किंतु आने वाले समय का विज्ञान भारतीय दर्शन और अध्यात्म की पुष्टि करेगा। तभी यह कह पाना संभव हो पायेगा कि मृत्यु के बाद का जीवन किस तरह का है तथा विज्ञान उसे किस भांति परिभाषित कर पाता है।
भारतीय दर्शन में मृत्यु के बाद के सम्बन्ध में की गयी समस्त चर्चाएं सत्य हैं। निःसंदेह मृत्यु के बाद जीवन है, उसके विविध रूप हैं तथा विज्ञान से परे हटकर आज भी समाज में उसकी झलक किसी न किसी रूप में यत्र-तत्र दिखायी देती रहती है।