मुहम्मद बिन तुगलक संसार के सबसे बड़े साम्राज्यों में से एक का स्वामी था। उसने अपनी सल्तनत के विस्तार एवं समृद्धि के लिए कई योजनाएं बनाई थीं किंतु दुर्भाग्य से उसके अमीर एवं सूबेदार उन योजनाओं को समझ नहीं पाए।
सल्तनत के मुल्ला-मौलवियों ने भी जमकर सुल्तान की योजनाओं का विरोध किया इस कारण सुल्तान की सभी योजनाएं विफल हो गईं। इनका परिणाम यह हुआ कि राज्य का खजाना खाली हो गया और सेनाओं को वेतन चुकाने में विलम्ब होने लगा। इस कारण स्थान स्थान पर विद्रोह होने लगे।
ये विद्रोह अत्यन्त व्यापक क्षेत्र में विस्तृत थे। यदि एक विद्रोह उत्तर में होता तो दूसरा दक्षिण में और यदि एक विद्रोह पश्चिम में होता तो दूसरा सुदूर पूर्व में। इससे सेना के संचालन में बड़ी कठिनाई होती थी। मुहम्मद बिन तुगलक के समय में चौंतीस विद्रोह हुए जिनमें से 27 दक्षिण भारत में हुए थे।
इन विद्रोहों के फलस्वरूप सल्तनत बिखरने लगी और कई स्वतन्त्र राज्यों की स्थापना हो गयी।
पहला विद्रोह ई.1327 में मुहम्मद बिन तुगलक के चचेरे भाई वहाबुद्दीन गुर्शस्प ने किया जो गुलबर्गा के निकट सागर का सूबेदार था। शाही सेना ने इस विद्रोह को दबा दिया। मुहम्मद बिन तुगलक ने गुर्शस्प की खाल में भूसा भरवाकर उसे भारत के कई शहरों में प्रदर्शित करवाया और उसके शरीर के मांस को चावल के साथ पकाकर उसकी बीवी-बच्चों के पास खाने के लिये भिजवाया।
दूसरा विद्रोह ई.1328 में मुल्तान के सूबेदार बहराम आईबा उर्फ किश्लू खाँ ने किया। स्वयं मुहम्मद बिन तुगलक ने इस विद्रोह का दमन किया। बहराम आईबा का वध कर दिया गया।
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लाहौर का सूबेदार अमीर हुलाजू एक शक्तिशाली अमीर था। उसने भी मुहम्मद बिन तुगलक के विरुद्ध विद्रोह किया। मुहम्मद बिन तुगलक ने एक विशाल सेना लाहौर भिजवाई तथा हुलाजू को पकड़ कर मरवाया।
ई.1335 में मदुरा के गवर्नर जलालुद्दीन एहसान शाह ने सुल्तान से विद्रोह किया। इस समय दोआब में अकाल पड़ा हुआ था और प्रजा में असन्तोष फैला हुआ था। इससे लाभ उठाकर जलालुद्दीन ने विद्रोह कर दिया।
सुल्तान ने अपने प्रधानमन्त्री ख्वाजाजहाँ को इस विद्रोह का दमन करने के लिये भेजा परन्तु वह धार से वापस लौट आया। इस पर मुहम्मद बिन तुगलक ने स्वयं दक्षिण के लिये प्रस्थान किया।
जब सुल्तान तेलंगाना पहुँचा, तब वहाँ बड़े जोरों का हैजा फैल गया और मुहम्मद बिन तुगलक के बहुत से सैनिक मर गये। फलतः सुल्तान ने दिल्ली लौटने का निश्चय किया और एहसान शाह स्वतन्त्र हो गया।
एहसान शाह के विद्रोह का प्रभाव साम्राज्य के अन्य भागों पर भी पड़ा। उत्तर तथा दक्षिण भारत में यह खबर फैल गई कि सुल्तान की मृत्यु हो गई है। फलतः ई.1335 में दौलताबाद के सूबेदार मलिक हुशंग ने विद्रोह कर दिया।
सुल्तान की उस पर विशेष कृपा रहती थी परन्तु वह बड़ा महत्वाकांक्षी व्यक्ति था। अतः अवसर पाकर उसने विद्रोह कर दिया। अन्त में उसे भाग कर हिन्दू सरदारों के यहाँ शरण लेनी पड़ी। मुहम्मद बिन तुगलक ने उसे क्षमा कर दिया।
मुहम्मद बिन तुगलक की मृत्यु की सूचना पाकर उत्तर में एहसान शाह के पुत्र सैयद इब्राहीम ने भी विद्रोह कर दिया। इब्राहीम, सुल्तान का बड़ा विश्वासपात्र था। अन्त में उसने आत्म-समर्पण कर दिया। फिर भी उसकी हत्या करवा दी गई।
इन दिनों पूर्वी बंगाल में बहराम खाँ शासन कर रहा था। उसके अंगरक्षक फखरूद्दीन ने ई.1337 में उसकी हत्या कर दी और स्वयं पूर्वी बंगाल का स्वतंत्र शासक बन गया। उसने अपने नाम की मुद्राएँ भी चलाईं। मुहम्मद बिन तुगलक इस समय कराजल में उलझा हुआ था इसलिए वह बंगाल में सेना नहीं भेज सका और बंगाल स्वतंत्र हो गया।
बंगाल के विद्रोह की सफलता देखकर ई.1338 में कड़ा के सूबेदार निजाम भाई ने भी विद्रोह कर दिया। सुल्तान ने उसे पकड़ मंगवाया तथा उसके जीवित रहते ही उसकी खाल खिंचवा ली।
अलीशाह दिल्ली सल्तनत का एक उच्च अधिकारी था। उसे मुहम्मद बिन तुगलक ने दक्षिण में मालगुजारी वसूल करने के लिए गुलबर्गा भेजा परन्तु उसने गुलबर्गा के हाकिम की हत्या करके शाही खजाने पर अधिकार कर लिया। इसके बाद उसने बीदर पर भी अधिकार कर लिया।
सुल्तान के आदेश कुतलुग खाँ ने नामक एक अमीर ने अलीशाह को परास्त करके बन्दी बना लिया। कुछ दिनों बाद उसका वध कर दिया गया। अवध तथा जफराबाद के गवर्नर आइन-उल-मुल्क ने दिल्ली सल्तनत की बड़ी सेवाएँ की थी। एक बार मुहम्मद बिन तुगलक दक्षिण के गवर्नर कुतलुग खाँ ख्वाजा के काम से असन्तुष्ट हो गया।
इसलिये उसने ख्वाजा को वापस बुला लिया और उसके स्थान पर आइन-उल-मुल्क को नियुक्त कर दिया तथा उसे अपने बाल-बच्चों के साथ दक्षिण जाने की आज्ञा दी।
यद्यपि आइन-उल-मुल्क के लिये यह बड़े गौरव की बात थी परन्तु उसे लगा कि सुल्तान ने उसे अवध से हटाने के लिए ऐसा किया है। इसलिये उसने विद्रोह कर दिया।
उसका विद्रोह सबसे भयानक था। फिर भी शाही सेना ने उसे परास्त करके बंदी बना लिया। जब वह सुल्तान के सामने लाया गया तो सुल्तान ने उसकी सेवाओं तथा उसकी विद्वता को देखते हुए उसे क्षमा कर दिया।
कुछ समय बाद शाहू अफगान लोदी ने मुल्तान के सूबेदार को कैद करके स्वयं को मुल्तान का स्वतन्त्र शासक घोषित कर दिया। विद्रोह की सूचना पाते ही मुहम्मद बिन तुगलक ने दिल्ली से मुल्तान के लिये प्रस्थान किया।
शाहू अफगान मुल्तान छोड़कर पहाड़ों में भाग गया और सुल्तान के पास एक प्रार्थना पत्र भेज कर क्षमादान की याचना की। फलतः मुहम्मद बिन तुगलक दिपालपुर से ही दिल्ली लौट आया। इस प्रकार मुहम्मह बिन तुगलक का अधिकांश जीवन विद्रोहों को दबाने में बीता। अगली कड़ी में देखिए- विजयनगर साम्राज्य की स्थापना हो गई और मुहम्मद बिन तुगलक कुछ नहीं कर सका!