दुर्गा और इन्द्र का पूजन देखने के बाद हम लोग पुतु के साथ तमन अयुन पुराडेसा के लिए रवाना हो गए। मार्ग में सड़क के किनारे एक पार्क दिखाई दिया जिसमें खड़ी हल्के नीले रंग की दो प्रतिमाएं दूर से ही दिखाई दे रही थीं। हमने पुतु से अनुरोध किया कि वह गाड़ी रोके। ये भगवान राम और सीता माता की विशाल प्रतिमाएं थीं जिनकी ऊंचाई लगभग 15 फुट रही होगी। ये दोनों प्रतिमाएं उसी हल्के नीले रंग के एक भव्य रथ में खड़ी हैं जिसमें चार घोड़े जुते हुए हैं। ये घोड़े भी हल्के नीले रंग के हैं।
राम और सीता की इतनी सुंदर, इतनी भव्य एवं इतनी विलक्षण प्रतिमाओं का वर्णन करना कठिन है। दोनों प्रतिमाओं को विविध प्रकार के आभूषणों से अलंकृत किया गया है जिन पर सुनहरी रंग किया गया है जिसके कारण प्रतिमाओं का आकर्षण कई गुना बढ़ गया है। सीता अभय मुद्रा में हैं और राम इस मुद्रा में खड़े हैं मानो बाली द्वीप वासियों को सम्बोधित कर रहे हों! अश्वों को भी स्वर्णिम आभा युक्त आभूषणों से सजाया गया है। रथ में आगे की ओर एक सारथी है जो रथ के जुए के ठीक मध्य में बैठा है और अश्वों को हांक रहा प्रतीत होता है। उसके निकट एक योद्धा हाथ में तलवार और ढाल लिए बैठा है। वह इतना जीवंत है, मानो अभी राक्षसों पर अपने हथियार लेकर टूट पड़ेगा। इन प्रतिमाओं के निकट एक काले ग्रेनाइट पर बड़े-बड़े अक्षरों में रोमन लिपि में लिखा है- तमन राम सीता।
गदाधारी भीम
तमन राम सीता से थोड़ी ही दूरी पर तमन अयुन पुराडेसा स्थित है। यह मंदिर एक दोहरे परकोटे के भीतर स्थित है। बाहरी परकोटा इतना बड़ा है मानो इसके भीतर पूरा नगर समाया हो। इस परकोटे के प्रवेश द्वार पर राम सीता की प्रतिमा की शैली की ही एक विशाल प्रतिमा स्थित है।
यह भी हल्के नीले रंग की प्रतिमा है जिसकी ऊंचाई लगभग 15 फुट है। महाबली भीम के कंधे पर भारी-भरकम गदा, सिर पर मुकट, शरीर पर कवच तथा वस्त्र, सभी कुछ विलक्षण शैली में बने हुए हैं। यहाँ भी आभूषणों को सुनहरे रंग से पोता गया है, जिससे उनकी आभा कई गुणा बढ़ गई है। इस प्रतिमा के अंग सौष्ठव पर विशेष ध्यान दिया गया है जिससे भीम के महाबली होने का अनुमान स्वतः ही हो जाता है।
द्वार पाल युग्म
तमन अयुन पुराडेसा के बाहरी परकोटे के मुख्य द्वार के दोनों ओर (दाईं और बाईं) तथा दोनों तरफ (बाहर और भीतर) विशिष्ट शैली में द्वारपाल की प्रतिमाएं खड़ी दिखाई देती हैं। इनके मुख, भारत की कथकली नृत्य-कलाकारों के मुखौटों जैसे चौड़े और फैले हुए हैं जबकि मुख के भाव विकराल एवं उग्र हैं। इनके एक कंधे पर भारी-भरकम दण्ड बना हुआ होता है जो इनके द्वारपाल होने का साक्ष्य देता है। बाली में एक भी ऐसा प्रमुख सार्वजनिक महत्व का स्थान, मंदिर अथवा धार्मिक स्थल नहीं होगा जहाँ मुख्य द्वार पर यह द्वारपाल युग्म दिखाई नहीं दे। हमने अनेक मंदिरों में भीतरी परिसर में भी जहाँ-तहाँ इन द्वारपाल प्रतिमाओं को खड़े हुए देखा। वस्तुतः ये भैंरव हैं। एकाध स्थान पर तो हमने इन्हें काले एवं सफेद रंग में भी देखा, ठीक वैसे ही जैसे भारत में काला और गोरा भैंरू पाए जाते हैं।