शाहजहाँ के चारों शहजादे लाल किले की हकीकत के बारे में स्वयं को आश्वस्त नहीं कर पा रहे थे फिर भी शहजादों की नसों में चंगेजी और तैमूरी खून जोर मारने लगा!
शाहजहाँ के हरम में नियुक्त नौकरों, लौण्डियों और हिंजड़ों की समझ में नहीं आ रहा था कि बादशाह को हुआ क्या है और शहजादे दारा शिकोह तथा शहजादी जहाँआरा के अतिरिक्त प्रत्येक व्यक्ति को बादशाह के शयन कक्ष में जाने से रोक क्यों दिया गया है! जबकि शाही हकीम की आवाजाही बादशाह के ख्वाबगाह में अभी भी बनी हुई है।
हरम के नौकरों, लौण्डियों और हिंजड़ों ने आनन-फानन में लाल किले तथा लाल किले से बाहर समूची दिल्ली में बादशाह की बीमारी की सूचना फैला दी। हरामखोर किस्म के कुछ नौकरों ने यह अफवाह फैलाने में भी कोई विलम्ब नहीं किया कि शहजादे दारा शिकोह तथा शहजादी जहांआरा ने बादशाह को कैद कर लिया है तथा बादशाह वही आदेश जारी करता है जो आदेश उसे दाराशिकोह के द्वारा जारी करने के लिए दिए जाते हैं।
कुछ नौकरों ने अपने रिश्तेदारों और घर-परिवारों में जाकर यह कानाफूसी की कि बादशाह को कैद नहीं किया गया है, वास्तव में तो बादशाह मर गया है और शहजादा दारा-शिकोह तथा शहजादी जहाँआरा उसकी बीमारी की अफवाह उड़ाकर उसके नाम से हुकूमत कर रहे हैं।
पुर-हुनार बेगम, रोशनारा बेगम और गौहरा बेगम ने बहुत चेष्टा की कि वे किसी भी बहाने से एक बार अपने पिता की ख्वाबगाह में घुसकर बादशाह हुजूर को अपनी आँखों से देख लें ताकि इस सच्चाई का पता चल सके कि बादशाह हुजूर वाकई में बीमार हैं या उन्हें काफिरों ने कैद करके रखा है! शाहजहाँ की तीनों छोटी शहजादियाँ, दारा और जहाँआरा को काफिर ही कहती थीं।
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जब तीनों छोटी शहजादियाँ अपने मकसद में कामयाब नहीं हो सकीं तो उन्होंने बादशाह की बीमारी के हाल बढ़ा-चढ़ा कर अपने-अपने पक्ष के शहजादे को लिख भेजे। तीनों ही शहजादियाँ अपने खतों में यह लिखना नहीं भूलीं कि काफिर दारा और जहाँआरा ने बादशाह सलामत को कैद कर लिया है तथा शाही हकीम के अलावा किसी को बादशाह की ख्वाबगाह में जाने की इजाजत नहीं है। शाही हकीम को हरम के भीतर ही कड़ी निगरानी में रखा गया है तथा उसे किसी से भी बात करने की इजाजत नहीं है।
शाहजहाँ की चारों शहजादियाँ यूं तो लाल किले के भीतर ही रहती थीं किंतु पुरहुनार बेगम, रोशनारा बेगम और गौहरा बेगम को जवान होने के बाद शायद ही कभी अपने बाप का मुँह देखने को मिलता था। बादशाह उन्हें फूटी आँख नहीं देख सकता था।
केवल जहाँआरा बेगम ही शाहजहाँ की चहेती पुत्री थी और वही बादशाह के ख्वाबगाह तक जाने का अख्तियार रखती थी। इसलिए तीनों छोटी शहजादियों ने उसके बारे में अफवाह फैला रखी थी कि यह बादशाह की बेटी नहीं, उसकी रखैल है। दिल्ली की जनता में भी जहाँआरा के बारे में तरह-तरह की बातें कही जाती थीं।
अपनी बहिनों से मिले खतों को पढ़कर, राजधानी से हजारों किलोमीटर दूर बैठे तीनों छोटे शहजादों की बेचैनी दिन पर दिन बढ़ने लगी। उन्हें इस बात पर तो पूरा विश्वास था कि बादशाह गंभीर रूप से बीमार है तथा जहाँआरा और दारा शिकोह ने उसे कैद कर लिया है लेकिन साथ ही उनमें से प्रत्येक को यह भी शक था कि कहीं ऐसा न हो कि बादशाह मर गया हो तथा दारा शिकोह और जहाँआरा उसके शरीर को चुपचाप ठिकाने लगाकर, भीतर ही भीतर सल्तनत हड़पने की तैयारियां कर रहे हों!
तीनों शहजादों के भीतर पल रही लाल किला पाने की हवस, उन्हें धैर्य और सब्र से काम नहीं लेने देती थी। वैसे भी मुगल शहजादों में उत्तराधिकार का प्रश्न शहजादों के खून से ही सुलझता आया था। पीढ़ी-दर पीढ़ी तैमूरी खून के मुगल शहजादे अपने बाप का तख्त और दौलत पाने के लिए एक दूसरे का कत्ल करते आए थे।
शाहजहाँ के चारों शहजादे लाल किले की हकीकत के बारे में स्वयं को आश्वस्त नहीं कर पा रहे थे फिर भी शहजादों का चंगेजी और तैमूरी खून राजधानी दिल्ली की ओर कूच करने के लिए जोर मारने लगा जो खून-खराबे और मैदाने जंग के अलावा और किसी भाषा में नहीं समझता था!
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता