Saturday, December 21, 2024
spot_img

31. गजनी में सत्ता परिवर्तन ने भारत में तुर्की साम्राज्य की स्थापना का मार्ग खोल दिया!

महमूद गजनवी के वंशज ई.999 से लेकर ई.1173 तक गजनी पर शासन करते रहे। महमूद के वंशजों ने भारत में अपने साम्राज्य की स्थापना के लिए बहुत प्रयास किए किंतु लगभग डेढ़ सौ साल तक भारत के राजाओं ने गजनवियों को रावी नदी से आगे पैर नहीं जमाने दिए। ई.1173 में गजनी के राजनीतिक परिदृश्य में बड़ा उलट-फेर हुआ। उन दिनों गजनी साम्राज्य के अंतर्गत गौर नामक एक छोटा सा उपेक्षित कस्बा हुआ करता था। यह कस्बा साम्राज्य की राजधानी गजनी से लगभग 200 मील पश्चिम में था। इस नगर पर गयासुद्दीन गौरी नामक एक अमीर शासन करता था।

ई.1173 में गयासुद्दीन गौरी ने गजनी के सुल्तान खुसरव मलिक की कमजोरी का लाभ उठाते हुए गजनी पर अधिकार कर लिया और अपने छोटे भाई शहाबुद्दीन को गजनी का शासक नियुक्त किया। यही शहाबुद्दीन आगे चलकर मुहम्मद गौरी के नाम से जाना गया। आगे बढ़ने से पहले हमें ‘गोर’ अथवा ‘गौर’ प्रदेश की प्राचीन संस्कृति पर कुछ चर्चा करनी चाहिए।

इस रोचक इतिहास का वीडियो देखें-

वर्तमान समय में गौर का पहाड़ी क्षेत्र अफगानिस्तान के केन्द्रीय भाग में स्थित है तथा गजनी और हिरात के बीच में बसा हुआ है। गौर प्रदेश के निवासी भारत में गौरी एवं गौरान कहे जाते हैं। यह एक निर्धन पहाड़ी क्षेत्र था। संस्कृत भाषा का शब्द ‘गिरि’ ही फारसी भाषा के प्रभाव से ‘गोर’ बन गया था।

गौर क्षेत्र में स्थित ‘हरि’ नामक नदी के दक्षिणी तट पर ‘चगचरण’ नामक शहर की पुरातात्विक खुदाई में ईसा से लगभग पांच हजार साल पुरानी सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए हैं जिनमें नगर की दीवार तथा दुर्गनुमा रचनाएं भी पाई गई हैं। ये बस्तियां निश्चित रूप से भारत की वैदिक एवं सिंधु नदी घाटी सभ्यताओं की समकालीन थीं। ‘हेरात’ नामक नगर का नामकरण ‘हरि’ नदी के नाम पर ठीक उसी प्रकार हुआ है, जिस प्रकार भारत में ‘हरि’ शब्द से ‘हरिद्वार’ नामक नगर का नामकरण हुआ है।

To purchase this book, please click on photo.

जब बौद्ध सम्राट अशोक ने अफगानिस्तान में बौद्धधर्म का प्रचार किया, तब गौर क्षेत्र में संस्कृत-भाषी हिन्दू रहा करते थे जिनकी सभ्यता ईसा से लगभग पांच हजार साल पुरानी थी। अशोक के प्रयासों से इस क्षेत्र में बौद्धधर्म का प्रचार हआ तथा लगभग एक हजार साल तक इस क्षेत्र में बौद्धधर्म फलता-फूलता रहा। इस क्षेत्र की पहाड़ियां बौद्ध भिक्षुओं के आकर्षण का केन्द्र थीं जिनमें रहकर वे भगवान बुद्ध की उपासना किया करते थे।

जब दसवीं शताब्दी ईस्वी के मध्य में गौर क्षेत्र में इस्लाम का प्रवेश हुआ तब गौर क्षेत्र में बौद्ध बस्तियों के साथ-साथ हिन्दू, पारसी एवं यहूदी बस्तियां भी हुआ करती थीं। भारत के यदुवंशी भाटियों ने भी गजनी और गौर के बीच अपने दुर्ग बना रखे थे। गौर की जनता अरब की ओर से आने वाले तुर्की आक्रांताओं से अपनी रक्षा नहीं कर सकी तथा अपने प्राचीन धर्मों से हाथ धो बैठीं।

ग्यारहवीं शताब्दी ईस्वी में गजनी के शासक महमूद गजनवी ने सम्पूर्ण गौर क्षेत्र को अपने अधीन कर लिया तथा इस क्षेत्र में, बची-खुची हिन्दू, बौद्ध, पारसी एवं यहूदी बस्तियों को नष्ट कर दिया। बहुत से लोगों ने गजनवी के सैनिकों के हाथों प्राण जाने के भय से इस्लाम स्वीकार कर लिया।

महमूद गजनवी की मृत्यु के बाद गौर प्रदेश में एक नए राजवंश का उदय हुआ जो गौर शहर के नाम पर गौरी कहलाया। इस वंश के शासक मुसलमान बनने से पहले बौद्ध हुआ करते थे। जब ई.1173 में गौर वंश के शासक गयासुद्दीन गौरी ने गजनी के शासक खुसरव मलिक से गजनी छीनकर अपने छोटे भाई शहाबुद्दीन गौरी को दे दिया तो खुसरव मलिक, गजनी से भागकर पंजाब आ गया तथा पंजाब के एक छोटे से क्षेत्र पर शासन करने लगा। इस प्रकार गजनी से महमूद वंश का राज्य पूर्णतः समाप्त हो गया।

लगभग पौने दो सौ साल तक गजनी विशाल साम्राज्य की राजधानी रहा था। इसलिए जब शहाबुद्दीन गौरी गजनी का शासक बना तो उसकी आकांक्षाओं को नए पंख मिल गए। उसने भी गजनी के सबसे प्रबल सुल्तान महमूद गजनवी की भांति भारत पर आक्रमण करके भारत की सम्पदा लूटने तथा अपने राज्य का विस्तार करने का निर्णय लिया।

शहाबुद्दीन गौरी को भारत के इतिहास में मुहम्मद गौरी के नाम से जाना जाता है। महमूद गजनवी ने भारत पर पूरे 26 साल तक आक्रमण किए थे किंतु मुहम्मद गौरी ई.1175 से ई.1206 तक अर्थात् पूरे इकत्तीस साल तक भारत पर आक्रमण करता रहा। ई.1186 में मुहम्मद गौरी ने गजनी के अपदस्थ सुल्तान खुसरव मलिक को जान से मरवा दिया।

इस समय तक गजनी का पुराना शासक वंश अर्थात् महमूद गजनवी का वंश पूरी तरह कमजोर पड़ चुका था तथा उसमें इतनी शक्ति शेष नहीं बची थी कि वह पंजाब से बाहर निकलकर भारत के अन्य क्षेत्रों पर अधिकार कर सके किंतु गजनी का नया शक्ति-सम्पन्न शासक वंश भारत में अपने क्षेत्रों के विस्तार के लिए उत्सुक था। इस प्रकार गजनी में नए शासक वंश की स्थापना से भारत में तुर्की स्थापना का मार्ग खुल गया।

मुहम्मद गौरी के कोई औलाद नहीं थी, इसलिए वह अपने गुलामों को अपनी औलाद मानता था। इस कारण मुहम्मद गौरी जो भी नया प्रदेश जीतता था, अपने किसी विश्वसनीय गुलाम को उस प्रदेश का शासक बना देता था। भारत में भी उसने यही पद्धति अपनाई।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

1 COMMENT

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source