पाकिस्तान में दीनदार तथा सैयद मुसमलमानों की जिंदगियों में इतना अंतर है जितना अंतर पौराणिक भारत में चाण्डालों और ब्राह्मणों की जिंदगियों में हुआ करता था।
मुस्लिम समाज में सभी मुसलमानों को बराबर समझा जाता है तथा जाति-प्रथा का प्रचलन नहीं है किंतु पाकिस्तान का पूरा मुस्लिम समाज शिया, सुन्नी, अहमदिया, मुहाजिर, सूफी, शेख, सैयद तथा दीनदार आदि कई वर्गों में बंट गया है जो उनकी सामाजिक एवं राजनीतिक हैसियत का आधार है।
पाकिस्तान में इंसानों का मैला ढोने वाले, मृत पशुओं की खाल उतारने वाले एवं भिश्तियों आदि को दीनदार मुसलमान कहा जाता है। एक तो ये वैसे ही कमतरी के शिकार हैं, और उनकी औलाद अपना पैतृक पेशा अपनाने को मजबूर हैं, दूसरे पाकिस्तान में इन्हें वे सुविधाएं हासिल नहीं हैं जो भारत में हरिजनों को मिलती हैं। इनकी जुर्रत नहीं होती, अपने से ऊँची जात के मुसलमानों के बराबर बैठने की। अधिकतर इन लोगों का काम अपना पैतृक पेशा करना, मजदूरी करना, मरे हुए जानवरों की खाल उतारना और हड्डियों का व्यापार करना है। कोई इक्का-दुक्का दीनदार ही किसी इज्जतदार जगह को हासिल कर पाता है। वरना अधिकतर दीनदारों की जिंदगी शेखों के तलवे चाटते गुजरती है।
इसके विपरीत सैयदों को आले रसूल हजरत मुहम्मद का वंशज कहा जाता है। उनको हक हासिल है दूसरों की बहू-बेटी हथियाने का, लेकिन किसी दूसरे की मजाल नहीं कि वह सयैदानी की तरफ आंख उठाकर भी देख सके। सैयद चाहे चोर, बदमाश या लफंगा ही क्यों न हो, लोग फिर भी उसकी कदम-बोसी ही करते हैं।
उससे ताबीज बनवाते हैं, चढ़ावा चढ़ाते हैं। उनकी शान के खिलाफ गलती से भी अगर कोई लफ्ज निकल जाए तो अस्तफिगार पढ़ते हैं। उसकी हुक्म अदूली करना गुनाह समझते हैं। उसके खिलाफ आवाज उठाने को आले रसूल के खिलाफ बगावत समझा जाता है, जिसके कारण मरने के बाद दोजख में जाना होता है।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता