मुरादबक्श की हत्या औरंगजेब की योजना के प्रारम्भिक भाग में कल्पित नहीं की गई थी किंतु मुरादबक्श की उतावली ने औरंगजेब को मजबूर कर दिया कि दारा की हत्या करने से पहले औरंगजेब मुरादबक्श की हत्या करे।
बादशाह शाहजहाँ तथा शहजादी जहाँआरा को कैद करने के बाद औरंगजेब ने उन समस्त प्रतिद्वन्द्वियों को समाप्त करने का निश्चय किया जो मुगलिया तख्त के दावेदार हो सकते थे। इस समय तक दारा शिकोह दिल्ली पहुंच चुका था तथा उसके पास पांच हजार सैनिक हो गए थे।
औरंगजेब ने सबसे पहले उससे ही निबटने का निर्णय लिया। 14 जून 1658 को वह अपने छोटे भाई मुरादबक्श को अपने साथ लेकर आगरा से दिल्ली के लिए रवाना हो गया।
मुरादबक्श औरंगजेब के साथ आगरा से दिल्ली के लिए चल तो दिया किंतु वह अनुभव कर रहा था कि औरंगजेब ने मुरादबक्श को यह वचन दिया था कि आगरा हाथ में आ जाने के बाद मुरादबक्श को बादशाह घोषित कर दिया जाएगा किंतु वह मुरादबक्श को बादशाह घोषित नहीं कर रहा था। शासन के सारे अधिकार औरंगजेब ने अपने हाथों में ले लिए थे। यहाँ तक कि लाल किले से लेकर बूढ़े बादशाह तथा मुगलिया खजाने पर भी औरंगजेब के आदमियों का पहरा लगा दिया गया था।
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औरंगजेब अपनी मर्जी से समस्त निर्णय ले रहा था तथा मुराद उसके हाथों की कठपुतली बनकर रह गया था। मुराद के मंत्री एवं सलाहकार भी मुराद को औरंगजेब के विरुद्ध भड़का रहे थे। इसलिए मुराद औरंगजेब से नाराज हो गया और उसने औरंगजेब से मिलना-जुलना बंद कर दिया।
अब मुराद किसी भी समय औरंगजेब से विद्रोह कर सकता था। औरंगजेब को मुराद के इरादों की भनक लग गई। उसने मुराद को समझाया कि एक बार दुष्ट दारा पकड़ में आ जाए तब वह अपने हाथों से बाबा मरहूम हुमायूं का ताज मुराद के सिर पर रख देगा और हुमायूं की तलवार भी मुराद की कमर में बांध देगा।
मुराद को खुश करने के लिए औरंगजेब ने उसे 233 घोड़े और 20 लाख रुपए भी दिए। औरंगजेब द्वारा दी गई भेंट तथा आश्वासन से मुराद शांत हो गया किंतु अब औरंगजेब समझ गया कि मुराद को अधिक दिन तक शांत नहीं रखा जा सकेगा। इसलिए औरंगजेब ने दारा से भी पहले मुराद से निबटने का निर्णय लिया। सामूगढ़ की लड़ाई में मुराद के चेहरे पर राजपूतों के कुछ तीर लग गए थे जिनके कारण उसके चेहरे पर घाव हो गए थे।
हकीमों की दवा से वे घाव अब ठीक होने लगे थे। इस खुशी में मुराद मथुरा के पास शिकार खेलने गया। शाम को जब वह थककर वापस अपने शिविर में लौटा तो औरंगजेब ने मुराद को दावत के लिए अपने खेमे में आमंत्रित किया।
औरंगजेब ने अपने शिविर से बाहर आकर मुराद का इस्तकबाल किया तथा उसे बधाई दी कि अब वह कुछ ही दिनों में दिल्ली पहुंचकर बादशाह बन जाएगा। औरंगजेब के व्यवहार से मुराद फूल कर कुप्पा हो गया।
औरंगजेब के डेरे में मुराद के लिए ईरान से आई शराब एवं ईरानी नृत्यांगनाओं के नाच का प्रबंध किया गया। इसके बाद औरंगजेब ने मुराद से कहा कि चूंकि शराब और नृत्य से मेरा कोई वास्ता नहीं है, इसलिए आप दावत का मजा लीजिए। मैं कहीं और आराम कर लूंगा।
औरंगजेब ने अपने आदमियों को पहले से ही समझा रखा था कि उन्हें क्या करना है। औरंगजेब द्वारा नियुक्त हिंजड़ों ने मुराद को खूब शराब पिलाई। ईरानी नृत्यांगनाओं ने भी मुराद का खूब दिल बहलाया।
जब मुराद शराब के नशे में धुत्त होकर लुढ़क गया तो हिंजड़ों ने नृत्यांगनाओं को खेमे से बाहर जाने के लिए कहा और मुराद के पाजामे का नाड़ा खोलकर मुराद के हाथ बांध दिए। उन्होंने मुराद को कई लातें मारीं किंतु मुराद नशे में इतना धुत्त था कि उसे अपने शरीर का कोई होश नहीं था।
इसके बाद औरंगजेब फिर से अपने खेमे में प्रकट हुआ। उसने मुराद को एक बंद घोड़ा-गाड़ी में डालकर उसी समय दिल्ली के लिए रवाना हो गया। जब सुबह मुराद के आदमियों की नींद खुली तब तक मुराद की घोड़ागाड़ी मथुरा से बहुत दूर निकल चुकी थी। मुराद के आदमी कभी नहीं जान सके कि उनका मालिक कहाँ चला गया।
अगली सुबह जब मुराद की शराब उतरी तो उसने देखा कि न तो आगरा का लाल किला और न दिल्ली का लाल किला, न तो कोहिनूर और न मुगलों का अकूत खजाना, कुछ भी उसके पास नहीं बचा है। शाही तख्त और ताज एक हसीन सपने की तरह उसकी आंखों से बहुत दूर जा चुके हैं।
मुराद को तो दिल्ली ले जाकर सलीमगढ़ के दुर्ग में बन्द कर दिया गया तथा औरंगजेब का दिल्ली के शालीमार बाग में शानदार राज्याभिषेक किया गया।
कुछ दिनों बाद मुराद को ग्वालियर ले जाया गया। तीन साल तक वह ग्वालियर के दुर्ग में अपने दुर्भाग्य पर आंसू बहाता रहा। दिसम्बर 1661 में मुराद पर बगावत करने का आरोप लगाया गया। बादशाह के आदेश से दुर्ग में नियुक्त गुलामों ने शहजादे मुराद की हत्या कर दी गई।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता