इतिहास की दृष्टि से इस्लाम का उदय तथा प्रसार बहुत पुराना नहीं है। इस्लाम को धरती पर आए हुए केवल 1400 साल हुए हैं किंतु इतने कम समय में ही धरती का ऐसा कोई कोना नहीं है जहाँ इस्लाम के किसी न किसी फिरके का कोई न कोई अनुयायी न रहता हो!
मध्य एशिया में स्थित ‘सउदी अरेबिया’ नामक देश के ‘मक्का’ नगर में रहने वाले ‘कुरेश कबीले’ में ई.570 में ‘हजरत मुहम्मद’ का जन्म हुआ। लगभग चालीस वर्ष की आयु में उन्होंने ‘इस्लाम’ की स्थापना की तथा मूर्तिपूजा का विरोध किया।
ई.622 में हजरत मुहम्मद, मक्का से मदीना गये, वहाँ उन्होंने अपने अनुयायियों की एक सेना संगठित करके मक्का पर आक्रमण कर दिया तथा सैन्य-बल से मक्का में सफलता प्राप्त की। मुहम्मद, न केवल इस्लाम के प्रधान स्वीकार कर लिये गये वरन् राजनीति के भी प्रधान बन गये और उनके निर्णय सर्वमान्य हो गये। जिस तेजी से इस्लाम का उदय तथा प्रसार हुआ, उतनी तेजी से किसी अन्य मजहब का नहीं हुआ।
इस प्रकार पैगम्बर मुहम्मद के जीवन काल में इस्लाम तथा राज्य के अध्यक्ष का पद एक ही व्यक्ति में संयुक्त हो गया और मुहम्मद के जीवन काल में ही इस्लाम को सैनिक तथा राजनीतिक स्वरूप प्राप्त हो गया। हजरत मुहम्मद के बाद उनके उत्तराधिकारी ‘खलीफा’ कहलाये। मुहम्मद के बाद उनके ससुर अबूबकर, प्रथम खलीफा चुने गये। उनके प्रयासों से मेसोपोटमिया तथा सीरिया में इस्लाम का प्रचार हुआ। अबूबकर की मृत्यु होने पर ई.634 में ‘उमर’ खलीफा बने। उन्होंने इस्लाम के अनुयायियों की एक विशाल सेना संगठित की और साम्राज्य विस्तार तथा धर्म प्रचार का कार्य साथ-साथ आरम्भ किया।
इस्लाम का उदय तथा प्रसार मध्य एशिया में बड़ी क्रांति लेकर आया। जिन देशों पर उनकी सेना विजय प्राप्त करती थी वहाँ के लोगों को मुसलमान बना लेती थी। इस प्रकार थोड़े ही समय में फारस, मिस्र आदि देशों में इस्लाम का प्रचार हो गया। खलीफाओं ने इस्लाम का दूर-दूर तक प्रचार किया। खलीफाओं के समय में भी इस्लाम तथा राजनीति में अटूट सम्बन्ध बना रहा क्योंकि खलीफा, न केवल इस्लाम के अपितु राज्य के भी प्रधान होते थे।
उनके राज्य का शासन कुरान के अनुसार होता था। इस कारण शासन पर मुल्ला-मौलवियों का प्रभाव रहता था। इस प्रकार इस्लाम का प्रचार शान्तिपूर्ण विधि से उपदेशकों द्वारा नहीं, वरन् खलीफा के सैनिकों द्वारा तलवार के बल पर किया गया। जहाँ कहीं इस्लाम का प्रचार हुआ वहाँ की धरा रक्त-रंजित हो गई। इस्लामी सेनाध्यक्ष, युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिये ‘जेहाद’ अर्थात् धर्म युद्ध का नारा लगाते थे जिसका अर्थ था, विधर्मियों का विनाश।
इस्लाम का भारत में प्रवेश
इस्लाम का उदय भारतवासियों के लिए बड़ा संकट था। ई.711 में ईरान के गवर्नर हज्जाज ने बगदाद के खलीफा की आज्ञा लेकर अपने भतीजे ‘मुहम्मद बिन कासिम’ जो कि हज्जाज का दामाद भी था, की अध्यक्षता में एक सेना सिन्ध पर आक्रमण करने भेजी। यह भारत पर इस्लाम का प्रथम आक्रमण था।
इसका प्रभाव बहुत कम समय के लिये तथा बहुत कम स्थान तक सीमित था किंतु जब अफगानिस्तान में इस्लाम के अनुयायियों का शासन स्थिर हो गया, तब भारत पर इस्लामी सेनाओं के आक्रमण बढ़ गये तथा अंततः ई.1193 में दिल्ली उनके अधीन चला गया। इस प्रकार इस्लाम के अनुयायियों ने आक्रांताओं तथा विजेताओं के रूप में भारत में प्रवेश किया।
सांस्कृतिक संघर्ष
विजेता इस्लामी सेनाओं तथा उनके नेताओं की वेष-भूषा, खान-पान, लिपि एवं भाषा, दर्शन एवं अध्यात्म आदि के रूप में एक परिपक्व संस्कृति थी जो भारत की मूल संस्कृति से काफी अलग थी। चूंकि वे विजेता के रूप में आये थे इसलिये उन्होंने पराजित भारतीय संस्कृति को अपनाने से मना कर दिया तथा उन्होंने अपनी हर बात को पराजित भारतीय संस्कृति पर थोपने की चेष्टा की। इस प्रकार इस्लाम का उदय तथा प्रसार भारत के शांत लोगों के जीवन में बड़ी उत्तेजना लेकर आया।
इस कारण स्वाभाविक ही था कि भारतीय लोग इस संस्कृति को नकार देते तथा उनसे घृणा करते। इस प्रकार राजनीतिक संघर्ष के साथ-साथ सांस्कृतिक संघर्ष भी आरम्भ हो गया जिसके कारण दोनों संस्कृतियों के बीच इतनी गहरी खाई उत्पन्न हो गई जिसे पाटना लगभग असंभव हो गया। इस सांस्कृतिक संघर्ष को रोकने तथा चौड़ी होती जा रही खाई को पाटने के लिये इस्लाम के भीतर एक अध्यात्मिक क्रांति हुई जिसे सूफी मत कहा जाता है।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता