वेदों, उपनिषदों, ब्राह्मणों, आरण्यकों एवं पुराणों सहित किसी भी प्राीचन ग्रंथ में माधवी की कथा का उल्लेख नहीं है। पुराणों में ययाति के पांच पुत्रों- यदु, तुर्वसु, अनु, द्रह्यु और पुरू का ही उल्लेख है। ये नाम वेदों में भी आए हैं किंतु माधवी का उल्लेख केवल महाभारत में बताया जाता है।
माधवी की कथा असंभव दोषों से भरी हुई है। विश्वामित्र द्वारा श्वेत वर्ण एवं श्यामकर्ण वाले 800 अश्व मांगने के पीछे कोई उद्देश्य दिखाई नहीं देता है। माधवी का पुत्र उत्पन्न करके वापस कन्या बन जाना असंभव सी बात है। वैदिक कालीन आर्यों से लेकर पौराणिक काल के आर्यों में कन्या के विक्रय का कोई अन्य उदाहरण नहीं मिलता है।
वैदिक आर्य परम्परा के अनुसार कुंवारी कन्या से संतान उत्पन्न करना तथा उससे नवीन राजकुल का उत्पन्न होना संभव नहीं है। विवाह के बिना संतान उत्पन्न करना वेद-विरुद्ध है।
इस तरह माधवी की कथा आर्य-परम्परा एवं इतिहास-परम्परा के विरुद्ध है तथा निंदनीय है। संभवतः चार्वाकों एवं वामाचारियों द्वारा आर्यों को बदनाम करने की नीयत से इसक कथा की कपोल-कल्पना करके इसे महाभारत में घुसा दिया गया है।
कुछ आधुनिक विद्वानों ने माधवी की कथा को लेकर आर्यों की संस्कृति पर हेय होने के आरोप लगाने के प्रयास किए हैं। अपनी बात के समर्थन में वे नियोग प्रथा का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि आर्यों में संतानोत्पत्ति के लिये देवपुरुष से संतान प्राप्त करने की प्रथा थी।
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उनके अनुसार आर्यों का ही एक वर्ग देव कहलाता था। वे अत्यंत पराक्रमी होते थे। इसलिए आर्य पुरुष अपनी पत्नी से अच्छी संतान पाने के लिए अपनी पत्नी को किसी भी देव से संतानोत्पत्ति की आज्ञा देते थे।
वास्तविकता यह है कि भारतीय आर्यों में देवपुरुष जैसी कोई प्रथा नहीं थी, जिसका उल्लेख हिन्दू धर्म को एवं प्राचीन आर्यों को कलंकित करने के लिए किया गया है।
यह सही है कि अथर्ववेद में नियोग का उल्लेख हुआ है। महाभारतकालीन आर्यों में भी नियोग प्रथा प्रचलित थी। महाराज मनु ने भी मनुस्मृति में नियोग प्रथा का समर्थन किया है, किंतु नियोग एक सामान्य परम्परा नहीं थी। इसे आपद-धर्म के रूप में अपनाया गया था। यदि किसी स्त्री का पति क्लीव होता था, अथवा शारीरिक रूप से अक्षम होता था, अथवा कोई स्त्री संतान प्राप्ति से पहले ही विधवा हो जाती थी, तब उसे नियोग करने की अनुमति दी जाती थी ताकि उसका परिवार चलता रहे और समाज में व्यभिचार न बढ़े। किसी भी स्त्री को केवल एक बार नियोग से संतान उत्पन्न करने की अनुमति होती थी। वह एक से अधिक पुरुषों से नियोग करके पुत्र प्राप्त नहीं करती थी।
माधवी ने चार पुरुषों से चार पुत्र उत्पन्न किए। ऐसा नियोग-प्रथा के अंतर्गत नहीं किया जाता था। कुछ विद्वानों ने लिखा है कि यदि महाभारत में दी गई कथा सत्य है तो फिर यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि माधवी कौन थी जिसने कुंवारी कन्या होते हुए भी एक से अधिक पुरुषों से पुत्र उत्पन्न किए जिनसे नवीन राजकुलों का निर्माण हुआ!
कुछ वेदज्ञों का कहना है कि माधवी धरती का एक नाम है। धरती पर अनेक राजा राज्य करते हैं जो अपनी भूमि के पति होते हैं। अतः उन्हीं पर व्यंग्य करने के लिए वामाचारियों ने इस कथा का निर्माण किया है।
कुछ वेदज्ञों के अनुसार किसी भी उपजाऊ भूमि को माधवी कहा जाता था और राजा ययाति ने धन और अश्व न होने पर ऋषि गालव को माधवी अर्थात् भूमि का दान दिया था।
वाल्मीकि रामायण के उत्तरकाण्ड में कम से कम तीन श्लोकों में धरती के लिए माधवी शब्द का प्रयोग किया गया है। पहले श्लोक में कहा गया है- ‘यथाहम राघवादंयम मनसपि न चिन्तये तथा मे माधवी देवी विवरं दतुर्रमहती।’
दूसरे श्लोक में कहा गया है- ‘मनसा कर्मणा वाचा यथा रामं समर्चये तथा मे माधवी देवी विवरं दतुर्रमहती।’
वाल्मीकि रामायण के उत्तरकांड के तीसरे श्लोक में कहा गया है- यथैतत सत्यामुक्तम मे वेद्धि रामात परम् न च तथा मे माधवी देवी विवरं दतुर्रमहती।’
इन श्लोकों में माता सीता कह रही हैं कि- ‘हे धरती माँ। यदि मैंने मन, कर्म एवं वचन से प्रभु श्रीराम के अतिरिक्त किसी को मन में न लाया हो तो तुम फट जाओ और मुझे अपनी गोद में शरण दे दो।’
इन श्लोकों से स्पष्ट होता है कि पौराणिक भारत में धरती को माधवी कहा जाता था। अतः यदि माधवी की कथा सत्य है तो भी उसका आशय केवल इतना है कि सार्वभौम चक्रवर्ती राजा ययाति ने गालव मुनि को भूमि का एक टुकड़ा दिया था।
अब प्रश्न यह उठ सकता है कि यदि माधवी का अर्थ भूमि के टुकड़े से होता है तो विभिन्न राजाओं को उसका पति क्यों कहा गया है?
भूमि का स्वामी होने के कारण ही राजाओं को भूपति भी कहा जाता है। और यही पृथ्विस्वरूपा माधवी और उनके चार पतियों अर्थात भूपतियों का उल्लेख महाभारत के माधवी प्रसंग का रहस्य भी है।
गोस्वामी तुलसीदासजी ने रामचरित मानस के बालकाण्ड में यह चौपाई लिखी है-
दीप दीप के भूपति नाना। आये सुनि हम जो पनु ठाना।
अर्थात्- एक ही समय में धरती के छोटे-बड़े खण्डों के कई स्वामी होते हैं।
कुछ विद्वानों का मानना है कि माधवी के चार पुत्र होने का तात्पर्य- धरती पर रहकर धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्राप्त करने से है। एक से अधिक पतियों को धारण करने वाली धरती व्यभिचारिणी नहीं होती। अतः माधवी को मानवी कन्या बताकर उसकी आड़ में, वैदिक एवं सनातन संस्कृति पर प्रहार करने की कुचेष्टा मात्र है।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता