प्रातः 4 बजे आंख खुल गई। लगभग पूरी रात बरसात होती रही इसलिए सुबह तक ठण्ड काफी बढ़ गई थी। विजय की आंख भी मेरे साथ ही खुल गई थी। उसने चाय बनाई और मैं कल की यात्रा का विवरण लिखने बैठ गया। 8 बजे तक लिखता रहा। इस बीच दो कप चाय और पी ली। आज हमारा केवल एक ही जगह जाने का कार्यक्रम था।
विजय ने नेट पर पढ़ा था कि सोमवार को प्रातः 11 बजे एक नहर में नावों पर सब्जी मार्केट लगता है। यह विदेशी पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण का केन्द्र होता है। आज हमने वहीं जाने का निर्णय लिया। यह स्थान हमारे अपार्टमेंट से केवल 1 किलोमीटर दूर था। हम प्रातः 11.00 बजे सर्विस अपार्टमेंट से निकले। धीमी बूंदा-बादी अब भी हो रही थी। इसलिए पिताजी घर में ही रहे।
हम लोग छतरियां और बरसातियां लेकर चले। अब तक हमें याद हो चला था कि यहाँ घर से बाहर निकलने से पहले छतरी या बरसाती लेनी चाहिए।
नावों का विशेष साप्ताहिक सब्जी-बाजार
संकरी गलियों, पतली नहरों एवं उन पर बनी छोटी पुलियाओं से होते हुए हम लगभग 20 मिनट में उस स्थान पर पहुँच गए जहाँ नावों में विशेष साप्ताहिक बाजार लगता है। हमें यह बाजार देखकर बहुत निराशा हुई। वहाँ केवल दो नावें थीं जिन पर दो-दो युवतियां सब्जी बेच रही थीं। उन पर सब्जियां बहुत कम थीं ज्यादातर तो फल एवं फूल थे। खरीददार भी एकाध ही मौजूद था। विदेशी खरीददार तो हम अकेले ही थे। सब्जी और फल ताजी तो थे किंतु उनके भाव वेजेनिया की अन्य नियमित दुकानों जैसे ही बहुत ऊँचे थे। फिर भी हमने कुछ सब्जियां और फल खरीदें ताकि वे कल रास्ते में काम आ सकें। जब मैंने कुछ फल छांटे तो नाव की मालकिन ने आकर मुझे टोका- ‘नो सैल्फ सर्विस। लीव इट।’
मैंने छांटे हुए फलों को फिर से टोकरी में रख दिया। उसने स्वयं फल और सब्जियां छांटकर हमें दीं। ऐसा लगता था जैसे वह इस बात को पसंद नहीं करती थी कि कोई हिन्दुस्तानी व्यक्ति उसकी सब्जियों को छुए! उसकी आंखों में गर्व के भाव को मैं स्पष्ट पढ़ सकता था।
महंगा म्यूजियम!
पास में ही एक चौक पर लियोनार्डो दा विंची के नाम से एक म्यूजियम है जिसमें लियोनार्डो द्वारा बनाए गए चित्रों में प्रदर्शित मशीनों के मॉडल बनाकर रखे गए हैं। एक टिकट 8 यूरो का है। इस छोटे से म्यूजियम के लिए यह टिकट बहुत महंगा है।
व्यापारियों की कुटिल वृत्ति
शेक्सपीयर के नाटक ‘ए मर्चेण्ट ऑफ वेनिस’ में वेनिस के व्यापारी की जो कुटिल वृत्ति दिखाई गई है, वह इटली के व्यापारियों में साफ दिखाई देती है। एयर पोर्ट पर …. रुपए का यूरो और बाहर बाजार में …. रुपए का यूरो! एयरपोर्ट पर पानी की बोतल 200 रुपए की, यह क्या है! 13 किलोमीटर की बस यात्रा के लिए 640 भारतीय रुपए, यह क्या है! पेशाब करने के लिए 160 रुपए, यह क्या है! हमारे चार दिन के अनुभव के आधार पर हम कह सकते हैं कि वेनिस के लोग अधिक कंजरवेटिव, घमण्डी और पैसे के भूखे लगते हैं।
अश्वेत भिखारी की गिड़गिड़ाहट
एक पुलिया पर अफ्रीकी या अमरीकी अश्वेत युवक भीख मांग रहा था। इसके जींस और टी-शर्ट भी ठीक दिख रहे थे और इसके पास रखा एयर बैग भी अच्छी किस्म का था। सिर पर टोपी से लेकर पैरों में जूते तक सभी कुछ तो ठीक लग रहा था!
मुझे उसका गिड़गिड़ाना बहुत ही कृत्रिम जान पड़ा। वह संभवतः इटेलियन भाषा में कुछ शब्द उच्चारित कर रहा था। इतना हट्टा-कट्टा नौजवान भीख मांगता हुआ इस शहर के वैभव से मैच नहीं करता है। वहाँ से गुजर रही इटैलियन महिलाओं ने उस युवक से इटैलियन भाषा में कुछ नाराजगी भरे शब्द भी कहे। उनकी नाराजगी उनकी मुखमुद्रा से व्यक्त हो रही थी! बूंदा-बांदी अब भी हो रही थी।
इसलिए पर्यटक अपने निवास स्थानों में ही दुबके पड़े थे। सारा शहर निर्जन सा दिखाई पड़ रहा था। गलियां सुनसान थीं और चौक में पड़ी कुर्सियों पर बैठकर वाइन, पिज्जा और सिगरेट का आनंद लेने वाले लोग गायब थे। हम भी अपने सर्विस अपार्टमेंट के लिए लौट लिए।