आज 19 मई हो चुकी थी। जावा के समयानुसार प्रातः चार बजे मेरी आंख खुल गई। मैंने हिसाब लगाया, इस समय बाली द्वीप पर सुबह के तीन ही बजे होंगे और भारत में रात के बारह बज रहे होंगे। यह शरीर भी कितना विचित्र है! इसमें लगी जैविक घड़ी स्वतः ही स्वयं को स्थानीय समय से समायोजित कर लेती है। कैसे होता है यह सब! पूरी दुनिया को जानने की लालसा रखने वाले हम, स्वयं अपने शरीर की क्षमताओं के बारे में कितना कम जानते हैं! मैंने देखा कि परिवार के अन्य सदस्य भी ठीक पांच बजे उठ गए थे। मानो वे भारत में हों और उनके उठने का सही समय हो गया हो!
मि. अन्तो को हमने प्रातः 9 बजे आने का समय दिया था। वह ठीक समय पर गाड़ी लेकर आ गया। इस समय आकाश साफ था। धूप में तेजी नहीं थी और मौसम सुहावना था। हम सुबह का नाश्ता कर चुके थे और दोपहर का भोजन अपने साथ ले चुके थे। अतः मि. अन्तो के साथ चलने में हमें अधिक समय नहीं लगा। हमारा आज का सबसे पहला लक्ष्य बोरोबुदुर बौद्ध विहार था किंतु वहाँ जाने से पहले हम कम से कम दो काम करना चाहते थे। हमारी इण्डोनेशियाई मुद्रा समाप्त हो चली थी इसलिए हमें किसी विश्वसनीय मनी एक्सचेंजर से डॉलर के बदले इण्डोनेशियाई रुपए लेने थे। हम एक साथ अपने डॉलर एक्सचेंज नहीं कर रहे थे क्योंकि हम नहीं चाहते थे कि जब हम इण्डोनेशिया से विदा हों तो हमें अपनी इण्डोनेशियाई मुद्रा फिर से डॉलर में कन्वर्ट कराने की फीस देनी पड़े। दूसरा काम यह था कि हम रेलवे स्टेशन जाकर, आने वाले कल की ट्रेन यात्रा के बोर्डिंग पास लेना चाहते थे। विजय ने नई दिल्ली से इस ट्रेन के लिए ऑनलाइन बुकिंग करवाई थी जिसका प्रिण्ट-आउट हमारे पास था किंतु ट्रेन में बैठने से पहले बोर्डिंग पास प्राप्त करने आवश्यक थे।
करंसी एक्सचेंजर
मि. अन्तो हमें सेंट्रल जावा के जालान मालियो क्षेत्र में बने एक पांच सितारा होटल में ले गया, जिसमें घुसते ही एक प्रतिष्ठित एवं विश्वसनीय मनी एक्सचेंजर ऑफिस था। हमने अपनी आवश्यकता के अनुसार कुछ डॉलर एक्सचेंज कराए। हमने देखा कि यहाँ भी समस्त काउण्टरों पर बीस-बाइस साल की लड़कियां दुनिया भर के देशों से आए विदेशियों की करंसी एक्सचेंज कर रही थीं। काउण्टर पर बैठी लड़की ने हमें छोटा सा फार्म भरने के लिए तथा अपना पासपोर्ट दिखाने के लिए कहा। हमने उससे पूछा कि वह हमें एक डॉलर के बदले में कितने इण्डोनेशियाई रुपए देगी। उसने हमें एक इलेक्ट्रोनिक बोर्ड देखने के लिए संकेत किया जिसमें उस समय की इण्टरनेशनल रेट्स डिस्प्ले हो रही थीं। हमने संतोष में सिर हिलाया और उसे डॉलर दे दिये। उस लड़की ने फिर से हिसाब लगाया और हमें एक कागज पर लिखकर दिखाया कि हमें कितने इण्डोनेशियाई रुपए मिलेंगे। बिल्कुल सुलझी हुई कार्यवाही, कहीं कोई छिपाव-दुराव नहीं। समस्त व्यवहार बहुत ही मृदुल और कम शब्दों में। उसने हमारे पासपोर्ट से हमारी फार्म की डिटेल्स का मिलान किया और राशि हमें पकड़ा दी। इस पूरे काम में कठिनाई से पांच मिनट लगे होंगे। हम मनी एक्सचेंजर के ऑफिस से निकल कर जालान मालियो में आ गए।
जालान मालियो में चहल-कदमी
हमने जालान मालियो में कुछ दूर तक चहल-कदमी करने का निर्णय लिया। जावाई भाषा में जालान का अर्थ होता है गली ;ैजतममजद्ध और मालियो से आशय जावा के मालियो सरनेम ;ैनतदंउमद्ध वाले लोगों से है। जावा में 55 लाख लोगों का सरनेम मालियो है। यह गली उन्हीं में से किसी प्रतिष्ठित मालियो के नाम से जानी जाती है। सेंट्रल जावा प्रांत का जालान मालियो, नई दिल्ली के कनाट प्लेस की तरह भीड़ वाला क्षेत्र है। यहाँ शानदार चमचमाते हुए मॉल खड़े हैं। विदेशी सैलानियों का जमघट लगा रहता है। मालियो की चौड़ी सड़क के दोनों ओर चार सितारा और पांच सितारा होटलों की संख्या का कोई पार ही नहीं है। इस पूरी स्ट्रीट में बेचाक और डोकार काफी संख्या में चलते हुए दिखाई दिए जिन पर विदेशी पर्यटकों को घूमते हुए आसानी से देखा जा सकता है।
तुगु स्टेस्यन
मि. अन्तो हमें जालान मालियो से योग्यकार्ता शहर के तुगु रेलवे स्टेशन ले गया। यह जालान मालियो से अधिक दूर नहीं था। यद्यपि इस रेलवे स्टेशन को वर्तमान में योग्यकार्ता स्टेस्यन कहते हैं किंतु इसका पुराना नाम तुगु स्टेस्यन है तथा स्थानीय जनता में वही प्रचलित है। जावा में स्टेशन को स्टेस्यन उच्चारित किया जाता है। रेलेवे स्टेशन के मुख्य भवन पर बाहर की ओर बड़े-बड़े केसरिया रंग के अक्षरों एवं रोमन लिपि में केवल जोगजकार्ता लिखा हुआ है। यह क्षेत्र डच औपनिवेशिक युग में जावा का प्रसिद्ध स्थान हुआ करता था। प्रायः समस्त प्रमुख डच औपनिवेशिक अधिकारी इसी क्षेत्र में निवास करते थे। योग्यकार्ता का राजा भी उस काल में बताविया से तुगु स्टेशन के बीच यात्रा किया करता था। ई.2000 में इस स्टेशन का आधुनिकीकरण करके वर्तमान स्वरूप दिया गया। तभी इसका नाम तुगु की बजाय योग्यकार्ता किया गया। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि तुगु शब्द का सम्बन्ध औपनिवेशिक काल के डच शासकों से रहा होगा।
मैंने और विजय ने स्टेशन पर बने ग्लास कैबिन में बैठे एक रेलवे अधिकारी के केबिन में जाकर पूछा कि हमें बोर्डिंग पास कहाँ से मिलेंगे। उस अधिकारी ने कहा कि बाहर एक वेंडिंग मशीन है, वहाँ से प्रिण्ट कर लीजिए। वह अधिकारी अंग्रेजी में बोल रहा था किंतु उसका लहजा ऐसा था मानो जावा द्वीप की किसी भाषा में बोल रहा हो। इसलिए मैं उसकी बात का एक भी शब्द नहीं समझ सका किंतु पता नहीं विजय को कैसे उसकी बात समझ में आ गई! मैं आज भी इस बात को सोचकर हैरान होता हूँ कि आखिर विजय ने उसकी बात को समझा कैसे! वेंडिंग मशीन पूरी तरह से ऑटोमैटिक थी। जैसे ही विजय ने ऑनलाइन बुकिंग के प्रिण्टआउट पर लगे बार कोड को मशीन के स्कैनर के सामने दिखाया, हमारे टिकट निकल कर बाहर आ गए। यदि यह काम मुझे करना होता तो कई लोगों के समझाए जाने के बाद ही मुझे समझ में आता कि बोर्डिंग टिकट का प्रिंट आउट कैसे लिया जायेगा! यह जैनरेशन गैप था। कोडिंग बार को समझने वाली आधुनिक मशीनों पर काम करना मेरी प्रौढ़ पीढ़ी के लोगों को कठिनाई से ही समझ में आता है।
आधुनिकतम सुविधाओं से लैस इण्डोनेशिया
अब तक मैं इस बात को कई बार अनुभव कर चुका था कि भले ही इण्डोनेशिया गरीब देश है और दुनिया का सबसे बड़ा मुस्लिम देश है, किंतु यहाँ की हर बात हैरान करने वाली है। यहाँ की दुकानों, मंदिरों, सरकारी कार्यालयों, स्टेशनों तथा ट्रेनों सहित हर स्थान पर अत्याधुनिक कम्प्यूटराइज्ड उपकरण लगे हैं। छोटी-छोटी लड़कियां इन्हें धड़ल्ले से संचालित करती हैं। भारत अभी इन सुविधाओं से कोसों दूर है। इण्डोनेशिया के नगरों से लेकर गांव और कस्बे अच्छी साफ-सफाई के कारण बहुत सुंदर दिखाई देते हैं। भारत को सफाई का यह स्तर छूने में संभवतः कई शताब्दियां लगेंगी। यहाँ कहीं भी भीड़-भाड़, चिल्ल-पों तथा शोर-शराबा नहीं है। भारत के लोगों को इस नागरिक-समझ (Civic sense) तक पहुंचने में संभवतः कई हजार वर्ष लगेंगे।
मुस्लिम देश होने के बावजूद इण्डोनेशिया में हर उम्र की लड़कियां और औरतें वाणिज्यिक संस्थाओं, सार्वजनिक स्थलों एवं सरकारी विभागों में खुलकर काम करती हैं। कोई औरत बुरका नहीं पहनती। वे केवल अपना सिर और कान ढंकती हैं, वह भी अनिवार्य नहीं है। बहुत सी लड़कियां, मिनी स्कर्ट में दिखाई देती हैं। सभी लड़कियां अपने काम में दक्ष हैं। हमने किसी लड़की को या कर्मचारी को आपस में या मोबाईल फोन पर बात करते हुए नहीं देखा। अधिकतर स्थानों पर ड्रेस कोड लागू है। समस्त लड़कियां ड्रेस कोड का अनुसरण करती हैं। यदि लाउड स्पीकरों पर बजने वाली नमाज को छोड़ दें तो वहाँ गली-मुहल्लों और सड़कों पर न दिन में, न रात में, किसी तरह का शोर सुनाई नहीं देता।
फलों की खरीददारी
जब रेलेवे स्टेशन से रवाना हुए तो कार में बैठते ही पिताजी ने कहा कि रास्ते में किसी दुकान से फल खरीदने हैं। हमने मि. अन्तो से अनुरोध किया कि वह ऐसी जगह कार रोक ले जहाँ से हम फल खरीद सकें। मि. अन्तो कार चलाता रहा किंतु कहीं भी ऐसा स्थान नहीं मिला जहाँ कार रोकी जा सके। इण्डोनेशिया में ट्रैफिक नियम बहुत कड़े हैं। यदि कोई ड्राइवर या नागरिक उनकी अवहेलना करता है तो वह बड़े संकट में फंस सकता है। हम मध्य जावा से बाहर निकलकर ग्रामीण क्षेत्र में आ गए। अंततः एक क्योस्क-नुमा दुकान पर मि. अन्तो ने कार रोकी। उसने हमसे माफी मांगी कि वह शहर में फलों की किसी दुकान पर क्यों नहीं रुक सका था। यहाँ चूंकि किसी तरह की कठिनाई नहीं है इसलिए आप लोग यहाँ से फल खरीद लें। हम उसकी कठिनाई को समझते थे। इसलिए हमने बिना किसी तरह का मुंह बिगाड़े हुए उसे यहाँ रुकने के लिए धन्यवाद दिया।
यह एक छोटी सी दुकान थी जिसमें कई तरह के फल रखे हुए थे। यहाँ चमचमाते हुए विशाल मॉल में उपलब्ध रहने वाले विदेशी फलों का जखीरा नहीं था अपितु इण्डोनेशिया में पैदा होने वाले देशी फल थे। इनमें पीले रंग के छोटे-छोटे वे केले भी शामिल थे जो खाने में मीठे कम और खट्टे ज्यादा होते हैं। हमने वही केले लिए। इसी प्रकार छोटी-छोटी लीचियों जैसे गुच्छों में बंधा कोई भूरे रंग का फल था। इसे जावा की देशी लीची कहा जा सकता था। इसमें गूदा, रस और सुगंध तीनों ही कम थे। संतरों का आकार भी बहुत छोटा था। सेब अवश्य ही विदेशी रहे होंगे, पर वे भी छोटे आकार के थे।
फल विक्रेता अंग्रेजी का एक शब्द भी नहीं समझता था किंतु विदेशियों को अपनी दुकान पर देखकर खुशी के मारे फूला नहीं समाया। उसके लिए उस गांव में यह गौरव का विषय था कि वह विदेशियों को अपनी दुकान से फल बेचे। वह दुकानदार भले ही नहीं समझता हो किंतु हम अब तक अच्छी तरह समझ चुके थे कि इण्डोनेशिया में खरीदरारी कैसे की जा सकती है। इसलिए हमने उससे थोड़ी-थोड़ी मात्रा में कई प्रकार के फल लिए। दुकानदार का रोम-रोम पुलकित था। उसने शायद ही कभी सोचा होगा कि एक दिन वह उन विदेशियों को सफलता पूर्वक अपना सौदा बेच देगा जिनकी भाषा भी वह नहीं जानता। उसे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि हमारी जेब में इण्डोनिशाई रुपए थे जिनका इस्तेमाल करना भी हमें बखूबी आता था। फलों की खरीददारी हो चुकी थी। मि. अन्तो की कार फिर से बोरोबुदुर विहार की तरफ बढ़ने लगी। हमें यह देखकर आश्चर्य हुआ कि कस्बाई फलों की दुकान के आसपास भी किसी तरह का कचरा या छिलके नहीं पड़े हुए थे।